केदारनाथ में उमड़ी भीड़ से पर्यावरण विशेषज्ञ चिंतित, एक्सपर्ट को किस बात का डर
हाल के दशकों से उच्च हिमालयी क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन का असर साफ नजर आ रहा है। केदारनाथ में लोग ग्लेशियर के बेहद करीब तक जा रहे हैं। लोग वहां रात बिताएंगे तो ऊर्जा खपत भी होगी ।
केदारनाथ में पहले दिन उमड़ी भीड़ से पर्यावरण विशेषज्ञ चिंतित हैं। उनका मानना है कि उच्च हिमालयी शिखरों में बढ़ रही भीड़ और मानवीय गतिविधियों पर नियंत्रण जरूरी है। पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. एसपी सती के मुताबिक, अब समय आ गया है कि हर पहाड़ी कस्बे-शहर की केयरिंग कैपेसिटी निर्धारित की जाए। हमने हिम शिखरों के बेस पर बड़े-बड़े निर्माण और ढांचे खड़े कर दिए हैं।
मानवीय गतिविधियों से हम कई टन कचरा-अपशिष्ट वहां छोड़कर आ रहे हैं। केदारनाथ के कपाट खुलने के पहले ही दिन हजारों लोगों ने वहां रात बिताई। यह जगह अति-संवेदनशील है। यहां न तो हवाई गतिविधियों को स्वंछद होना चाहिए और न ही मानवीय गतिविधियों को।
हाल के दशकों से उच्च हिमालयी क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन का असर साफ नजर आ रहा है। केदारनाथ में लोग ग्लेशियर के बेहद करीब तक जा रहे हैं। लोग वहां रात बिताएंगे तो ऊर्जा खपत भी होगी और कार्बन भी ग्लेशियर तक पहुंचेगा।
केदारघाटी पर हो चुका शोध
केदारघाटी आपदा के बाद नैनीताल निवासी डॉ. कमलेश जोशी ने 2013 में वहां तीर्थाटन और पर्यटन को लेकर शोध किया। बकौल जोशी, इसका नतीजा यह निकला कि केदारनाथ जैसे उच्च क्षेत्रों में पर्यटन और तीर्थाटन गतिविधियों पर नियंत्रण बहुत जरूरी है।
तीर्थाटन-पर्यटन में अंतर
डॉ. कमलेश जोशी के मुताबिक, लोगों को तीर्थाटन और पर्यटन के अंतर को समझना होगा। केदारनाथ पिकनिक स्पॉट नहीं है। भौगोलिक और भूगर्भीय संवेदनशीलता को देखते हुए रोजाना जाने वाले यात्रियों की संख्या निर्धारित होनी चाहिए। शीतकालीन गद्दीस्थलों के दर्शन को बढ़ावा मिले।