अमेठी नेहरू-गांधी परिवार कर गढ़ है। यहां गांधी परिवार की जड़ें बहुत मजबूत रही हैं। दो बार ऐसा भी हुआ है जब यहां पर मुकाबला गांधी बनाम गांधी रहा था। पहली बार 1984 में राजीव गांधी के सामने मेनका गांधी थीं और दूसरी बार 1989 में राजीव के ही सामने महात्मा गांधी के पौत्र राज मोहन गांधी थे। हालांकि दोनों ही बार मुकाबला राजीव गांधी ने जीता। दिलचस्प बात यह भी है कि कवि कुमार विश्वास भी साल 2014 के आम चुनाव में आप के टिकट पर सांसदी का चुनाव लड़ चुके हैं। साल 1967 में लोकसभा क्षेत्र बनने के बाद यहां गांधी परिवार का दबदबा रहा है। कुल 13 चुनाव और दो उपचुनाव में कांग्रेस को सिर्फ तीन बार हार मिली। पहली बार 1977 में जब 2 बार के विजेता विद्याधर को हराकर जनता पार्टी के रविन्द्र प्रताप सिंह ने ये सीट अपने नाम कर ली। हालांकि अगले ही चुनाव में कांग्रेस ने दोबारा यहां अपनी सत्ता जमा ली। इस बार यहां के सांसद बने इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी, लेकिन यहां के सांसद बनने के कुछ ही महीनों बाद संजय की एक हवाई जहाज दुर्घटना में मौत हो गई। फिर 1981 में अमेठी में उप-चुनाव हुए, जिसमें उनके बड़े भाई राजीव गांधी विजयी रहे। राजीव इसके बाद लगातार 4 बार इस सीट से जीते और 10 सालों तक यहां के सांसद रहे। अपने कार्यकाल के दौरान ही 1991 में मद्रास के एक गांव श्रीपेरुमबुदुर में उनकी हत्या कर दी गयी। अमेठी की सांसद की सीट खाली होने के बाद उसी साल दोबारा यहां उप-चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस नेता सतीश शर्मा विजयी हुए। सतीश शर्मा अगले आम चुनाव में भी जीते, लेकिन 1998 में दूसरी बार कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा। इस बार कांग्रेस को हराने वाली पार्टी थी भारतीय जनता पार्टी। भाजपा नेता डॉ. संजय सिंह इस बार यहां के सांसद बने। अगले ही चुनाव में फिर ये सीट कांग्रेस को वापस मिल गयी और इस बार राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी सांसद चुनी गईं। 2004 से 2014 तक राहुल गांधी यहां तीन बार सांसद रहे। लेकिन 2019 में उन्हें भाजपा की स्मृति ईरानी के हाथों शिकस्त का सामना करना पड़ा था। यह अमेठी सीट पर कांग्रेस की तीसरी हार थी। जातीय समीकरण की बात करें तो दलित वोटर 26 और मुसलमान वोटर 20 फीसदी हैं। 18 फीसदी ब्राह्मण, 11 फीसदी क्षत्रिय, 16 फीसदी यादव और मौर्या जबकि 10 फीसदी लोध और कुर्मी वोटर हैं।और पढ़ें