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बिहार की सियासत के दो उभरते चेहरे; एक आरजेडी का थिंक टैंक, दूसरे जेडीयू के खेवनहार

राज्यसभा चुनाव के लिए आरजेडी की ओर से मनोज झा ने दूसरी बार, तो वहीं जेडीयू की ओर से संजय झा ने पहली बार नामांकन भरा है। ये दोनों ह नेता बिहार की राजनीति के उभरते चेहरे हैं। जिनमें कई समानताएं भी हैं।

बिहार की सियासत के दो उभरते चेहरे; एक आरजेडी का थिंक टैंक, दूसरे जेडीयू के खेवनहार
Sandeepहिन्दुस्तान ब्यूरो,पटनाFri, 16 Feb 2024 06:18 AM
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जदयू नेता संजय झा और राजद नेता मनोज झा बिहार की राजनीति में तेजी से बड़े चेहरे के रूप में उभर रहे हैं। संजय झा और मनोज झा वैसे तो अलग-अलग दलों, जदयू और राजद से आते हैं लेकिन दोनों में कई सारी समानताएं हैं। कुशल रणीनीतिकार, भरोसेमंद राजनेता, अच्छे वक्ता हैं। दोनों मीडिया फ्रेंडली हैं। मीडिया घरानों से इनके अच्छे ताल्लुकात रहे हैं। संजय झा ने पहली बार राज्यसभा जाने के लिए बुधवार को तो मनोज झा ने गुरुवार को दूसरी बार रास के लिए नामांकन किया।

संजय झा कमला कछार के हैं तो मनोज झा कोसी किनारे के। दोनों एक ही इलाके व एक समाज से आने वाले। संजय मधुबनी जिला तो मनोज सहरसा के हैं। मिथिलांचल की मृदुता दोनों की ही वाणी में शामिल है। दोनों ही 56 साल के हैं। सन् 1967 में पैदा हुए। एक दिसम्बर तो एक अगस्त माह में। दोनों ही नेता अपने-अपने नेतृत्व के बेहद करीबी व भरोसेमंद चेहरे हैं।

संजय झा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेहद नजदीक हैं। बड़े और गंभीर अभियानों में जिम्मा पाते रहे और संजीदगी से निभाते भी रहे हैं। पार्टी के दिल्ली प्रदेश प्रभारी की भूमिका निभानी हो, देश में संगठन विस्तार करना हो या हाल ही इंडिया गठबंधन में समन्वय या नीति बनाने में जदयू की ओर से अगुआ रहे। वर्ष 2017 हो या अभी (28 जनवरी 2024), जदयू को एनडीए गठबंधन में वापस लाने में इनकी भूमिका अहम रही।

वहीं मनोज झा फिलहाल राजद के थिंक टैंक माने जाते हैं। लालू प्रसाद के स्नेही तो तेजस्वी यादव के करीबी हैं। दल के लिए रणनीति बनाने में अगुआ रहते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी की प्रखर आवाज बन चुके हैं। पार्टी के नारे से लेकर नेताओं के संबोधन तक तैयार करने में राजद में नियामक बन गये हैं। संजय झा और मनोज झा उच्चशिक्षा धारी राजनेता हैं। संजय ने जवाहर लाल नेहरू विवि तो मनोज ने दिल्ली विवि से स्नातकोत्तर डिग्री ली है। मनोज झा पीएचडी धारक भी हैं तथा लंबे समय तक अध्यापन भी किया है।

एक पढ़े-लिखे समझदार राजनेता के रूप में दोनों ही किसी भी विषय पर अपनी बात बेहद तैयारी और गंभीरता के साथ रखने के लिए जाने जाते हैं। मनोज झा की तो देशभर में प्रखर वक्ता की पहचान रही है।विचारधारा के स्तर पर दोनों नेताओं में भिन्नता है। एक समावेशी विचारधारा तो दूसरे प्रगतिशील सोच के लिए जाने जाते हैं।

2016-17 में लालू प्रसाद के करीब आए मनोज झा
मनोज झा ने दिल्ली विवि से स्नात्तकोत्तर व पीएचडी करने के बाद सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अपनी शुरुआत की। प्रगतिशील सोच के लोगों के सम्पर्क में आए। सामाजिक कार्यों से जुड़े तथा वाम विचारधारा के करीब रहे। वर्ष 2016-17 में लालू प्रसाद तथा तेजस्वी यादव के करीब आए और राजद ने इन्हें वर्ष 2018 में जब राज्यसभा भेजा तो अचानक से मनोज झा सुर्खियों में आ गये। उसके बाद अपनी प्रखर तथा ओजस्वी वाणी से उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई है।

2012 से संजय झा जदयू में आगे बढ़ते गए
संजय झा ने अपनी शुरुआत भारतीय जनता पार्टी से की है। अरुण जेटली के सहयोगी के रूप में नीतीश कुमार से तब परिचय हुआ जब बिहार भाजपा के जेटली प्रभारी थे। बाद के दिनों में उन्होंने संजय झा को नीतीश कुमार को सौंप दिया। वर्ष 2012 से संजय जदयू में दिनोंदिन आगे बढ़ते गए। राज्य योजना परिषद के सदस्य, दरभंगा से लोकसभा के प्रत्याशी, बिहार विधान परिषद के सदस्य, राज्य सरकार में हाल-हाल तक जल संसाधन व आईपीआरडी मंत्री।