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Hindi News झारखंडसुप्रीम फैसले को हेमंत सोरेन का बढ़ा इंतजार, सिब्बल ने मांगा टाइम; SC में क्या-क्या दलीलें

सुप्रीम फैसले को हेमंत सोरेन का बढ़ा इंतजार, सिब्बल ने मांगा टाइम; SC में क्या-क्या दलीलें

कथित जमीन घोटाले में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री को गिरफ्तार किया गया था। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाकर अपने लिए राहत की मांग की। ईडी ने सोरेन की याचिका का विरोध किया है।

सुप्रीम फैसले को हेमंत सोरेन का बढ़ा इंतजार, सिब्बल ने मांगा टाइम; SC में क्या-क्या दलीलें
Sudhir Jhaलाइव हिन्दुस्तान,नई दिल्लीTue, 21 May 2024 01:03 PM
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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तरह क्या झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भी चुनाव प्रचार में शामिल होने के लिए अंतरिम जमानत मिलेगी? कथित जमीन घोटाले में गिरफ्तार झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) नेता की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को भी सुनवाई हुई। जस्टिस दीपांकर दत्त और सतीश चंद्र शर्मा की अवकाशकालीन बेंच के सामने दोनों पक्षों ने दलीलें रखी। हालांकि, हेमंत सोरेन के वकील ने अपनी दलीलें रखने के लिए एक और दिन की मांग की जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया और केस को बुधवार के लिए सूचीबद्ध कर दिया। 

हेमंत सोरेन की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि यह 8.86 एकड़ जमीन का मसला है। जोकि आदिवासी भूमि है छोटानागपुर टीनेंसी ऐक्ट के तहत, इसको ट्रांसफर नहीं किया जा सकता है। मैं दिखाना चाहता हूं कि यह क्या भूमि है। सिब्बल ने सोरेन की तरफ से कहा- 12 प्लॉट हैं, 76 से 86 के बीच गैर आदिवासी की रजिस्टर में एंट्री हुई। तब मैं चार साल का था। मैं 75 में पैदा हुआ। मेरा इससे कुछ लेनादेना नहीं।

सोरेन ने कहा- आरोप है कि 2009-10 में मैंने जमीन पर जबरन कब्जा किया। मेरे खिलाफ 20 अप्रैल 2023 को केस चलाया जाता है। इस जमीन पर बिजली का कनेक्शन आरोपी नंबर चार के नाम पर है। 2015 में हुए लीज में यह खेती वाली जमीन है। साफ है कि यह मेरे कब्जे में नहीं। लीज का मालिक राजकुमार है। सिब्बल ने शिकायतकर्ता बैजनाथ मुंडा और श्यामलाल पाहन का नाम लेते हुए कहा कि ये जमीन के मालिक होने का दावा करते हैं। उन्होंने कहा कि यह भुइंहारी जमीन है। इसलिए मुंडा और पाहन  का दावा विवादित है। मामला बेनामी प्रतीत होता है। उन्होंने कहा कि यह सिविल मामला है और इसलिए ईडी जांच नहीं कर सकती है।

ईडी की तरफ से पेश हुए एएसजी ने सिब्बल की दलीलों पर कहा कि वह इस तरह दलीलें दे रहे हैं जैसे यह ट्रायल हो। इस पर जस्टिस दत्ता ने कहा, 'पिछली बार जब मेरे और जस्टिस खन्ना के सामने मामला सूचीबद्ध हुआ था तो हमने कहा था कि पथम दृष्टया संतुष्टि होनी चाहिए।' एएसजी ने कहा कि माननीय अदालत ने उनके खिलाफ संज्ञान लिया। जमानत सेक्शन 45 के तहत खारिज हो चुकी है। उन्हें चुनाव के ऐलान के कुछ दिनों बाद नहीं गिरफ्तार किया गया। एएसजी ने कहा, 'यदि सभी दस्तावेजों की जांच गिरफ्तारी के चरण में हो तो कभी खत्म नहीं होगा। उन्होंने 15 अप्रैल को जमानत याचिका दायर की थी। 13 मई को खारिज कर दिया गया। समान आधार थे।' 

एएसजी ने यह भी कहा कि पीएमएल के तहत कब्जा होना ही पर्याप्त है, मालिकाना की जरूरत नहीं। उन्होंने कहा कि पहले नोटिस के बाद सोरेन ने एक असली मालिक से संपर्क किया और परिस्थिति बदलने की कोशिश की। छेड़छाड़ की कई कोशिशें हुईं। एएसजी ने कहा, '2009-10 से उनका (हेमंत सोरेन) का अवैध कब्जा था। 8.86 एकड़ का टाइटल सोरेन के नाम पर नहीं, ना ही उनका नाम किसी रिकॉर्ड में शामिल है। लेकिन कब्जा उनका था, जोकि एक अपराध है।'

एएसजी ने कहा कि 20 अप्रैल को हुए सर्वे से पता चला कि मुंडा जमीन के केयरटेकर थे। जस्टिस दत्ता ने कहा कि कोई अंतरिम आदेश नहीं हो सकता है। इस पर सिब्बल ने कहा, 'मैं बेल नहीं मांग रहा हूं। मैं कह रहा हूं कि सबकुछ स्वीकर कर लीजिए, तब भी कोई केस नहीं है। मैंने हाई कोर्ट के सामने गिरफ्तारी को चुनौती दी। यह 2-2.5 महीने तक पड़ा रहा। मैं जमानत नहीं मांग सकता।' जस्टिस दत्ता ने कहा कि आपने बेल के लिए तब अर्जी दी जब यह पेंडिंग था। सिब्बल ने न्यूजक्लिक केस का उदाहरण दिया और कहा कि कोर्ट ने गिरफ्तारी को गलत बताया और मामला खत्म किया। 

सिब्बल ने कहा कि गिरफ्तारी का कोई आधार नहीं बताया गया था। सोरेन को 31 जनवरी को गिरफ्तार किया गया और सेक्शन 19 नहीं लगाया गया था। पीएमएलए लगाने को कुछ नहीं था। जस्टिस दत्ता ने कहा, 'यहा कुछ तथ्यात्मक असमानताएं हैं। संज्ञान ले लिया गया है, इसलिए कोर्ट प्रथम दृष्टया संतुष्ट है। जब एक ज्यूडिशियल फोरम ने प्रथम दृष्टया तथ्यों को देखा है और इसे चुनौती नहीं दी गई है। क्या एक रिट कोर्ट गिरफ्तारी की वैधता को देखेगा?' 

सिब्बल ने यह भी कहा कि सोरेन और केजरीवाल के केस में एक अंतर है। एएसजी और एसजी मेहता ने कुछ कहना चाहा तो सिब्बल ने कहा कि वे इतने उत्सुक क्यों हैं। सिब्बल ने कहा कि जमीन का कब्जा अनुसूचित अपराध नहीं है। जस्टिस दत्ता ने कहा कि पुरकायस्थ का केस अलग था। जस्टिस दत्ता ने कहा कि आवदेन दायर करते वक्त भी समान दलीलें दी गईं थीं जिससे सिब्बल ने इनकार किया।