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Hindi News अनोखी हेल्थकामयाबी: अब पेड़ों को नुकसान पहुंचाने की जरूरत नहीं, लैब में ही बना ली जाएगी कैंसर रोधी दवा की सामग्री

कामयाबी: अब पेड़ों को नुकसान पहुंचाने की जरूरत नहीं, लैब में ही बना ली जाएगी कैंसर रोधी दवा की सामग्री

अब कैंसर रोधी दो प्रमुख दवाओं के निर्माण के लिए पेड़ों को क्षति पहुंचाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। आईआईटी मद्रास के वैज्ञानिकों ने इसके लिए वैकल्पिक तरीके से जरूरी पदार्थ तैयार किया है।  आईआईटी...

कामयाबी: अब पेड़ों को नुकसान पहुंचाने की जरूरत नहीं, लैब में ही बना ली जाएगी कैंसर रोधी दवा की सामग्री
लाइव हिन्दुस्तान,नई दिल्लीSat, 27 Feb 2021 07:01 AM
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अब कैंसर रोधी दो प्रमुख दवाओं के निर्माण के लिए पेड़ों को क्षति पहुंचाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। आईआईटी मद्रास के वैज्ञानिकों ने इसके लिए वैकल्पिक तरीके से जरूरी पदार्थ तैयार किया है। 

आईआईटी मद्रास के वैज्ञानिकों ने प्राकृतिक स्रोतों के संरक्षण के लिए कैंप्टोथेसिन के निर्माण का एक वैकल्पिक तरीका विकसित किया है। उन्होंने एक माइक्रोबियल फर्मेटेशन प्रोसेस विकसित किया है। इस प्रक्रिया से कैंप्टोथेसिन को लैब में तैयार किया जा सकता है। यह शोध आईआईटी मद्रास की जैव प्रौद्यौगिकी विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डा. स्मिता श्रीवास्तव के नेतृत्व में हुआ है। इसे हाल में जर्नल आफ साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित किया गया है।

डा. श्रीवास्तव ने कहा कि कैंप्टोथेसिन तीसरा सर्वाधिक मांग वाला अल्कालाइड है। लेकिन प्राकृतिक स्रोतों से लगातार इसे हासिल करना मुश्किल है। डा. श्रीवास्तव के साथ इस शोध में प्रोफेसर सुरेश कुमार रायला, पीएचडी रिसर्च स्कॉलर ख्वाजामोइनुद्दीन तथा सीनियर रिसर्च फेलो राहुल कनुमूरी शामिल हैं। जबकि कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय बेंगलुरु के दो शोधकर्ताओं केएन तथा आर उमाशंकर ने भी इसमें योगदान दिया। 

कैंप्टोथेसिन नामक पदार्थ का इस्तेमाल होता

कैंसर की दो प्रमुख दवाओं टोपोटेकन तथा इरिनोटेकन के निर्माण में कैंप्टोथेसिन नामक पदार्थ का इस्तेमाल किया जाता है। यह एक अल्कालायड है जिसे चीन में पाए जाने वाले पेड़ कैम्पटोथेकैमिनुमैटा और भारत में पाए जाने वाले पेड़ नोथापोडीट्स निमोनीना से निकाला जाता है। एक टन कैंप्टोथेसिन निकालने के लिए इन पेड़ों की एक हजार टन सामग्री चाहिए होती है। बाजार की मांग पूरा करने के चलते चीन और भारत में तेजी से पेड़ों की ये प्रजातियां खतरे में पड़ने लगी हैं। भारत में निमोनीना पेड़ों की संख्या में 20 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।