पीछे क्यों हट गए? ओवैसी के मुस्लिम कैंडिडेट ने वापस लिया नाम तो तिलमिला उठे पाक कट्टरपंथी; दे डाली धमकी
ओवैसी के कैंडिडेट परवेज अशरफी के नामांकन वापस लेने के बाद उन्हें पाकिस्तान से धमकियां मिल रही हैं। इस सिलसिले में उन्होंने ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है।
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महाराष्ट्र के अहमदनगर से एआईएमआईएम के परवेज अशरफी ने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली है। ऐसा बताया जा रहा है कि मुस्लिम समुदाय के कुछ पदाधिकारियों के भारी दबाव के कारण परवेज अशरफी को पीछे हटना पड़ा। मगर अब अशरफी के नामांकन वापस लेने के बाद उन्हें पाकिस्तान से धमकियां मिल रही हैं। इस सिलसिले में अशरफी ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है। महाराष्ट्र टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, अशरफी ने दावा किया है कि उन्हें पाकिस्तान से कॉल आया है। ऐसे में भारतीय लोकसभा चुनावों पर पाकिस्तान के कट्टरपंथियों की पैनी नजर बनी हुई है। इससे साफ है कि अहमदनगर जैसे निर्वाचन क्षेत्रों में होने वाली हलचलें उनकी नजरों से बच नहीं पाई है।
अहमदनगर से महायुति प्रत्याशी डॉ. सुजय विखे पाटिल और महाविकास अघाड़ी के उम्मीदवार नीलेश लंका के बीच मुकाबला है। एमआईएम पार्टी से जिला अध्यक्ष परवेज अशरफी ने अपनी उम्मीदवारी दाखिल की थी। इसके बाद इस बात पर चर्चा शुरू हो गई कि उनकी उम्मीदवारी से बीजेपी उम्मीदवार को फायदा होगा। मुस्लिम समुदाय के कुछ पदाधिकारियों ने नागर और छत्रपति संभाजीनगर के पदाधिकारियों के माध्यम से दबाव बढ़ाया। इससे अशर्फी ने अपना नामांकन वापस ले लिया।
वहीं संभाजीनगर की बात करें तो कांग्रेस और एनसीपी (शरदचंद्र पवार) की सहयोगी शिवसेना (यूबीटी) ने चार बार के सांसद चंद्रकांत खैरे पर भरोसा जताया है। खैरे 2019 में एआईएमआईएम के इम्तियाज जलील से सिर्फ 4,492 वोटों से हार गए थे। वहीं शिंदे सेना ने कैबिनेट मंत्री संदीपनराव भूमरे को मैदान में उतारा है, जो पैठण से विधायक हैं। मगर इस सीट का सिरमौर कौन बनेगा यह स्थिति मराठा और ओबीसी वोटर्स द्वारा ही साफ हो सकेगी। शिंदे की शिवसेना के लिए फिलहाल यह सीट इसलिए मुश्किल है क्योंकि मराठा आरक्षण और विरोध के बाद राज्य सरकार द्वारा उन्हें दी गई रियायत ने ओबीसी के एक खास वर्ग को नाराज कर दिया। उन्हें आरक्षण में अपना हिस्सा खोने का डर है। इससे दोनों समुदायों के बीच दरार पैदा हो गई है। जो मराठवाड़ा क्षेत्र में एक प्रमुख मुद्दा हो सकता है।
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के लिए इस सीट पर प्रतिष्ठा की लड़ाई है। पिछले लोकसभा चुनाव में हैदराबाद के बाहर यह उनकी पार्टी की पहली जीत थी। जिसे ओवैसी की पार्टी ने नाक का सवाल बना लिया है। इसके अलावा दोनों शिवसेना में बहुत कुछ दांव पर है। यह विभाजन के बाद मुंबई के बाहर दोनों गुटों की पहली चुनावी परीक्षा है। जहां 1990 के दशक की शुरुआत से ही बाल ठाकरे ने अपने पैर जमाए लिए थे।
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