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रेलवे फ्रेट कॉरिडोर के भूमि अधिग्रहण के विरुद्ध याचिकाएं खारिज़

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गौतम बुद्ध नगर व ग्रेटर नोएडा में रेलवे के डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर के लिए अधिग्रहीत भूमि के विरुद्ध दाखिल याचिकाएं खारिज कर...

रेलवे फ्रेट कॉरिडोर के भूमि अधिग्रहण के विरुद्ध याचिकाएं खारिज़
हिन्दुस्तान टीम,प्रयागराजSun, 05 Sep 2021 03:42 AM
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गौतम बुद्ध नगर व ग्रेटर नोएडा में रेलवे के डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर के लिए अधिग्रहीत भूमि के विरुद्ध दाखिल याचिकाएं खारिज कर दी हैं। हालांकि कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि याचियों को वर्तमान बाजार मूल्य के अनुसार मुआवजे का भुगतान किया जाए। साथ ही राज्य सरकार से उन दोषी अधिकारियों के खिलाफ जांच करने को कहा है, जिन्होंने केंद्र सरकार को इस बात की गलत रिपोर्ट प्रेषित की कि याचियों की ओर से मुआवजे के निर्धारण को लेकर के कोई आपत्ति नहीं की गई।

यह आदेश न्यायमूर्ति मनोज मिश्र और दिनेश पाठक की खंडपीठ ने जयवीर सिंह व अन्य किसानों की ओर से दाखिल चार याचिकाओं पर दिया है। याचिकाओं में 11 फरवरी 2019 को रेलवे एक्ट की धारा 20ए और धारा 20ई के तहत प्रकाशित अधिसूचना को चुनौती दी गई थी। साथ ही इन अधिसूचनाओं को रद्द करने की मांग की गई थी। याचियों का कहना था की रेलवे ने डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर के लिए भूमि अधिग्रहण की अधिसूचना प्रकाशित की थी। भूमि का अर्जन हो जाने के बाद ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी की मांग पर अतिरिक्त भूमि के अधिग्रहण के लिए अधिसूचना प्रकाशित की गई।याचियों ने मुआवजे के निर्धारण को लेकर आपत्ति दाखिल की लेकिन उनका पक्ष सुने बगैर यह रिपोर्ट भेज दी गई कि किसी ने कोई आपत्ति नहीं की है। जबकि रेलवे का कहना था की परियोजना राष्ट्रीय महत्व की है । इसके लिए 824 करोड़ रुपये जारी किए गए थे। जिसमें 614 करोड़ रुपये का काम हो चुका है और केवल 1.36 किमी का काम ही शेष है। कुल 54.38 किलोमीटर का कॉरिडोर बनाया जाना है। कोर्ट ने कहा की याचियों ने समयसीमा के भीतर आपत्ति दाखिल की थी लेकिन उस पर सुनवाई किए बिना या गलत रिपोर्ट दी गई कि किसी ने कोई आपत्ति नहीं की है। मौजूदा हालात में जब प्रोजेक्ट लगभग पूरा हो चुका है, अधिसूचना रद्द करने से जनता के पैसे का भारी नुकसान होगा और प्रोजेक्ट फिर से बनाना पड़ेगा। इस स्थिति में कोर्ट ने अधिसूचना रद्द करने से इनकार कर दिया लेकिन केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि याचियों को वर्तमान बाजार मूल्य के अनुसार मुआवजा दिया जाए और उन अधिकारियों की जांच की जाए जिन्होंने इस बात की गलत रिपोर्ट दी कि याचियों ने समयसीमा के भीतर आपत्ति नहीं की थी। कोर्ट ने आदेश की प्रति प्रदेश शासन के मुख्य सचिव को जांच के लिए भेजने का निर्देश भी दिया है।