फोटो गैलरी

अगला लेख

अगली खबर पढ़ने के लिए यहाँ टैप करें

Hindi News लाइफस्टाइलस्वरोजगार की संभावनाओं की प्रयोगशाला है 'खुरपी नेचर विलेज'

स्वरोजगार की संभावनाओं की प्रयोगशाला है 'खुरपी नेचर विलेज'

'कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो।' कवि दुष्यंत कुमार की इन पंक्तियों को चरितार्थ करते हुए युवा सिद्धार्थ राय ने खाँटी गवई अंदाज में एक गांव में जाकर...

स्वरोजगार की संभावनाओं की प्रयोगशाला है 'खुरपी नेचर विलेज'
एजेंसी ,गाजीपुरSun, 31 Jan 2021 06:56 PM
ऐप पर पढ़ें

'कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो।' कवि दुष्यंत कुमार की इन पंक्तियों को चरितार्थ करते हुए युवा सिद्धार्थ राय ने खाँटी गवई अंदाज में एक गांव में जाकर स्वरोजगार की श्रृंखला खड़ी कर दिया जो आज गांव गिराव के युवाओं के लिए एक प्रयोगशाला के रूप में काम करने लगी हैं। महज डेढ़ एकड़ के परिसर में सिद्धार्थ द्वारा तैयार किया गया गांव 'खुरपी नेचर विलेज' आज गांव गिराव में स्वरोजगार की संभावनाओं के प्रयोगशाला के रूप में काम करने लगा है। दिल्ली और बैंगलोर जैसे बड़े शहर से उच्च शिक्षा प्राप्त सिद्धार्थ राय अच्छे पैकेज पर जॉब कर रहे थे। लेकिन वर्ष 2014 में चुनाव के दौरान गाजीपुर आ गए। चुनाव बाद तत्कालीन रेल राज्य मंत्री व संचार मंत्री मनोज सिन्हा के निजी सचिव बन गए। कम उम्र में ही बड़े प्रोफाइल का पद पाए जाने के बावजूद सिद्धार्थ ने अपने पैर जमीन पर ही रखें व कर्तव्य परायणता अपनी मृदुभाषीता से सबके चहेते बने रहे।
सिद्धार्थ शुरू से ही कुछ नया करने को तत्पर रहते थे। ऐसे में उनके द्वारा विकसित गाजीपुर की परिकल्पना को साकार करने के क्रम में अल्प संसाधन में स्वच्छ व सुंदर गाजीपुर के लिए सतत प्रयत्नशील रहे। लगातार नगर गलियों व घाटों की सफाई करने के साथ ही दलित निर्बल असहाय बच्चों की पढ़ाई के लिए भी प्रयासरत लगे रहे। इन सभी कार्यों में खुद उनका प्रोफाइल बड़ा होने के चलते कभी कोई समस्या नहीं आई। लेकिन एक बड़ा मुद्दा आया स्वरोजगार का। ऐसे में सिद्धार्थ राय द्वारा गाजीपुर वाराणसी राष्ट्रीय राजमार्ग से लगभग 5 किलोमीटर दूर अगस्ता गांव के पास खेतों के बीच में अपने मित्र अभिषेक की मदद से लगभग डेढ़ एकड़ जमीन में गाय पालन का शुरू शुरूआत किया। जिससे उन्होंने दुग्ध व्यवसाय का छोटा सा कार्य शुरू किया। धीरे-धीरे अगल बगल के गांव वालों को गाय और भैंस के लिए आर्थिक मदद उपलब्ध कर उनसे भी दूध लेने का कार्य शुरू कर दिए। एमबीए की पढ़ाई करने के बाद बड़ी कंपनी में अच्छे पैकेज पर काम करने वाले सिद्धार्थ जहां लगातार पांच वर्षों तक केंद्रीय मंत्री के निजी सचिव के रूप में अपनी पहचान हाई प्रोफाइल व्यक्तित्व के रूप में बना चुके थे। अभिषेक अचानक गाय भैंस के बीच जाकर गोबर उठाने का काम करने लगे। गायों को खिलाया जाने वाला अनाज गोबर में निकलता देख उन्होंने मुगीर् पालन का कार्य शुरू किया और इतना ही नहीं गायों के गोबर को ही वह मुर्गियों के सामने परोस देते थे। जिनमें से दाना चुन-चुन कर मुगीर् हजम कर जाया करती। बचे हुए गोबर के अवशेष को केंचुए की मदद से देसी खाद बनाकर पैक किया जाने लगा। वही बीच में एक तालाब बनाकर मछली पालन, बत्तख पालन का कार्य शुरू हो गया। सब कुछ लगभग ठीक ठाक चलने लगा। लेकिन शहरी भीड़ भाड़ के बीच रहने वाले सिद्धार्थ के दिमाग में अचानक से जंगल में मंगल करने की योजना जन्म लेने लगी। फिर क्या सिद्धार्थ ने उक्त स्थल को नाम दिया 'खुरपी नेचर विलेज' जहां गो पालन, मछली पालन, बत्तख पालन के साथ ही तालाब में उन्होंने मोटर बोट की व्यवस्था कर दी। जहां आस्ट्रेलियन पक्षी, खरगोश देसी व विलायती मुर्गियों की प्रजाति कुत्ते, घोड़े, ऊंट का प्रबंध कर दिया। जिससे अब वहां पर्यटकों की आमद भी होने लगी। जिससे खुरपी नेचर विलेज आज गाजीपुर में एक मिनी पर्यटन स्थल का स्वरूप अख्तियार कर लिया है।
इस संबंध में सिद्धार्थ राय ने बताया कि दुग्ध व्यवसाय के लिए गो पालन हमारा प्रमुख उद्देश्य रहा लेकिन उसके बाद गोबर के अनाज से मुगीर् पालन, गोबर के ही अवशेष से मछली पालन, मछलियों को चलाने के लिए बत्तख पालन व उसके बाद मोटर बोट डाल देने से हमारा कार्यस्थल अपने आप में एक बड़े पार्क का स्वरूप अख्तियार कर लिया। जिसे हमने बाद में पूर्ण रूप से व्यवसायिक स्वरूप देते हुए आसपास गांव वालों की मदद से उनके ऊपज को बाजार देने का काम करने लगे। देखते देखते स्थिति यह हो गई कि 'खुरपी नेचर विलेज' आसपास के युवाओं के लिए स्वरोजगार के परिपेक्ष में प्रयोगशाला का काम करने लगा। जहां प्रतिदिन दर्जनों युवाओं को गांव में उपलब्ध होने वाले रोजगारों की बारीकियां विस्तृत रूप से समझाई जाती हैं। सिद्धार्थ ने कहाकि बड़े पैकेज पर काम करने के बाद केंद्रीय मंत्री के निजी सचिव के रूप में काम करने का अनुभव मिला। मैं चाहता तो बड़े महानगरों में कहीं बस गया होता। लेकिन जिले के युवाओं के भविष्य के प्रति मेरी जागरूकता ने मुझे गांव में रोके रखा जिससे मैं आज काफी सुकून महसूस करता हूं।