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रेलवे अफसरों की कवायद से टूटने से बच गई 1883 की चिमनी

प्रयागराज जंक्शन को एयरपोर्ट सरीखा बनाया जा रहा है। इसके लिए रेलवे 960 करोड़ रुपये खर्च कर रहा है। सिविल लाइंस साइड से लेकर सिटी साइड तक नए निर्माण...

रेलवे अफसरों की कवायद से टूटने से बच गई 1883 की चिमनी
हिन्दुस्तान टीम,प्रयागराजFri, 08 Dec 2023 11:30 AM
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प्रयागराज। प्रयागराज जंक्शन को एयरपोर्ट सरीखा बनाया जा रहा है। इसके लिए रेलवे 960 करोड़ रुपये खर्च कर रहा है। सिविल लाइंस साइड से लेकर सिटी साइड तक नए निर्माण हो रहे हैं। पुरानी इमारतें तोड़ी जा रही हैं। सिविल लाइंस साइड लोको कॉलोनी में रेलवे की ऐतिहासिक चिमनी अपनी कहानी बयां कर रही है। वर्ष 1883 में बनी इस चिमनी को बचाने की कवायद काफी वक्त से चल रही थी। रेलवे अफसर, यूनियन नेताओं के साथ ऐतिहासिक स्थलों की रक्षा करने वाले संगठन ने इस चिमनी के न तोड़े जाने की मांग उठाई थी। मामला रेलवे बोर्ड दिल्ली तक गया। चिमनी की खासियत, कुम्भ नगरी प्रयागराज में अन्य ऐतिहासिक धरोहरों के मद्देनजर फैसला हुआ कि सौ साल से भी अधिक पुरानी इस चिमनी को ऐतिहासिक धरोहरों में शुमार कर इसे न सिर्फ सुरक्षित रखा जाए बल्कि इसे रेलवे संरक्षित भी करे। अब चिमनी को छोड़ उसके आसपास के इलाके में तोड़फोड़ जारी है। जेसीबी, बुलडोजर की कार्रवाई चिमनी तक नहीं पहुंच पाएगी। खास बात तो यह है कि रेलवे चिमनी के आसपास के क्षेत्र को भी सजाने, संवारने में लगेगा ताकि ऐतिहासिक धरोहरों को देखने वाले आएं तो उन्हें हरियाली मिले। उत्तर मध्य रेलवे के सीपीआरओ हिमांशु शेखर उपाध्याय के मुताबिक, सालों पुराने इतिहास को देखते हुए चिमनी को बचा लिया गया है।

तैयार होते थे स्टीम इंजन और उनके पुर्जे

भारत का दूसरा स्टीम इंजन लोको वर्कशॉप इलाहाबाद अब प्रयागराज में बनाया गया था। स्टीम इंजन का एक वर्कशॉप कोलकाता में स्थापित हुआ था, जबकि दूसरा प्रयागराज में। इसकी स्थापना 1883 में हुई थी। यहां 100 सालों से अधिक वक्त तक यहां भाप का इंजन तैयार होता रहा। स्टीम इंजन के पार्ट्स भी यहीं बनते रहे। इस चिमनी वाले भट़्टा में लोहा पक्का करने के साथ ही गलाने, छोटे टुकड़ों में विभाजित करने, मोड़ने आदि का काम किया जाता था।

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