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Hindi News मध्य प्रदेशविश्वविख्यात गामा पहलवान का रीवा कनेक्शन, MP से कुश्ती के दांव-पेच सीखकर लंदन में बने थे विश्व विजेता

विश्वविख्यात गामा पहलवान का रीवा कनेक्शन, MP से कुश्ती के दांव-पेच सीखकर लंदन में बने थे विश्व विजेता

गामा पहलवान यह नाम कुश्ती के क्षेत्र में जब भी लिया जाता है, हमेशा अदब और सम्मान के साथ लिया जाता है। क्योंकि गामा पहलवान कुश्ती की दुनिया की वह शख्सियत थे जिनका आज भी कोई सानी नहीं है।

विश्वविख्यात गामा पहलवान का रीवा कनेक्शन, MP से कुश्ती के दांव-पेच सीखकर लंदन में बने थे विश्व विजेता
Vishva Gauravलाइव हिंदुस्तान,रीवा।Mon, 19 Sep 2022 11:40 AM
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गामा पहलवान यह नाम कुश्ती के क्षेत्र में जब भी लिया जाता है, हमेशा अदब और सम्मान के साथ लिया जाता है। क्योंकि गामा पहलवान कुश्ती की दुनिया की वह शख्सियत थे जिनका आज भी कोई सानी नहीं है। वो एक ऐसे पहलवान थे जिन्होंने कभी कोई कुश्ती नहीं हारी। लेकिन बहुत ही कम लोग होंगे जो ये जानते होंगे कि गामा पहलवान का मध्य प्रदेश के रीवा से विशेष नाता रहा था। उन्होंने रीवा अखाड़ा घाट में ही कुश्ती के दांव पेंच सीखकर लंदन में अपना परचम लहराया था और रीवा को एक पहचान दी थी।

प्रख्यात पहलवान गामा का जन्म 22 मई 1878 ई. में झांसी के पास दतिया में हुआ था। गामा का असली नाम गुलाम हुसैन था। उनके पिता अजीज पहलवान दतिया महाराजा के शाही पहलवान थे। जब गामा 4 वर्ष के थे तभी उनके पिता का निधन हो गया था। मामा मीरा बख्श के संरक्षण में गामा ने कुश्ती की शुरुआत की। खलीफा के तौर पर भाई माधौ सिंह ने उन्हें दांव-पेच बताए। अपने कुश्ती जीवन के शुरुआती दौर में गामा ने उस दौर के नामी पहलवान रहीम सुलतानी और यहाउद्दीन से दो-दो हाथ किए, दोनों की कुश्ती बराबरी पर छूटी। सन् 1890 में महाराजा जोधपुर ने कुश्ती का एक मुकाबला करवाया जिसमें 400 सौ पहलवानों ने हिस्सा लिया था, इसमें 12 साल के गामा को विजेता घोषित किया गया था।

गामा का रीवा आगमन
गामा पहलवान की ख्याति दिन प्रति दिन बढ़ने लगी थी। रुस्तम-ए-हिन्द होने के बाद तो पूरी हिन्दुस्तानी रियासतों में उनका नाम हो चुका था। गामा पहलवान के मामा रुस्तम-ए-हिन्द मीरा बख्श पहले ही रीवा दरबार में शाही पहलवान थे। वो अपने भांजे गामा को रीवा बुला लाये। रीवा नरेश महाराजा वेंकट रमण सिंह उनसे मिलकर बहुत खुश हुए। 

सरदार सिंह के अखाड़े में अभ्यास
मीरा बक्स एवं गामा के पहले महाराजा वेंकटरमण सिंह के पास जोधपुर से आये हुए सरदार सिंह नाम के एक पहलवान थे। इनके कुश्ती अभ्यास के लिए बड़ी दरगाह के निकट अमहिया मोहल्ला में अखाड़ा खोदवाया गया था वहीं पर सरदार सिंह अपने शिष्यों को दांव पेच सिखाते थे। गामा पहलवान उसी अखाड़े में कुश्ती का दांव पेच शिष्यों को बताने लगे तथा स्वयं बहुत कड़ा रियाज करने लगे। रीवा नरेश महाराजा वेंकट रमण सिंह ने गामा की रोज की खुराक में 6 माह के एक बकरे का मांस, 4 बाल्टी दूध, 1 टोकरी फल, 2 किलो घी, पिस्ता बादाम 750 ग्राम लगा दिया था। गामा अखाड़े में रखी 98 किलो वजन की पत्थर की चकरी में जंजीर बांध कर अपने गले में जंजीर फंसाकर सैकड़ों बैठक लगाते थे। इसके अलावा 5 हजार बार दण्ड बैठक लगाते थे। दण्ड बैठक के दौरान जमीन उनके पसीने से तर हो जाती थी। उसी दौरान गामा के शिष्य बाल्टी में रखे दूध को मग से पीने के लिए देते रहते थे।

विश्व चैम्पियनशिप के लिए गामा का चयन
वर्ष 1910 ई. में इंग्लैंड के लन्दन शहर में कुश्ती की विश्व चैम्पियनशिप मुकाबला होना था, जिसके लिए हिन्दुस्तान से गामा पहलवान को चयनित किया गया। उस वक्त गामा रीवा महाराजा के दरबार में थे। उधर ब्रिटिश भारतीय हुकुमत ने आने-जाने व उसका अन्य खर्च उठाने से इनकार कर दिया। ऐसा लगने लगा कि गामा उस मुकाबले में भाग लेने नहीं जा पायेंगे। जब यह बात रीवा नरेश महाराजा वेंकटरमण सिंह जूदेव को मालूम हुई तो वो आगे आये तथा भारत के गर्वनर जनरल से सिफारिश की तथा आर्थिक सहयोग प्रदान किया। तब गामा स्पर्धा में भाग लेने लन्दन भेजे गये।

लन्दन पहुंचने पर भारतीय कुश्ती दल को उस वक्त गहरा धक्का लगा जब गामा को छोटे कद का कहकर आयोजकों ने उन्हें आयोग्य करार दे दिया। गामा ने बेचैन होकर अपने मैनेजर बिन जामिन की मदद से इंग्लैण्ड के अखबारों में यह चुनौती प्रकाशित करवाई कि दुनिया का कोई पहलवान उसके सामने अखाड़े में अगर 5 मिनट भी टिक जाएगा तो उसे पांच पौंड का नगद ईनाम दिया जायेगा। गामा की यह चुनौती दंगल लन्दन के एक थियेटर में दो दिनों तक चली जिसका फायदा गामा को हुआ। प्रथम दिन गामा ने तीन पहलवानों को और दूसरे दिन 12 पहलवानों को 5 मिनट से भी कम समय में पछाड़ दिया। इस कामयाबी का असर यह हुआ कि विश्व कुश्ती प्रतियोगिता में आयोजकों को बाध्य होकर गामा को अवसर देना पड़ा।

गामा को लंदन में इस तरह मिली जीत
दुनिया उस वक्त स्तब्ध रह गई जब चोटी के 8 पहलवानों को शिकस्त देकर गामा फाइनल में पहुंच गये। उनका आखिरी फाइनल मुकाबला यूरोप के स्टेनले जेविस्को नाम के एक खूंखार चैम्पियन पहलवान के साथ हुआ। मुकाबला शुरू होने से पहले जेबिस्को ने गामा को ब्रिटिश हुकूमत का गुलाम कहकर मजाक उड़ाया, तो ये बात गामा को चुभ गई। 10 दिसम्बर 1910 को लंदन का शैफर्डविश स्टेडियम दर्शकों से भरा हुआ था। कुश्ती शुरू हुई। गामा जेविरको को अखाड़े में लगभग 3 घण्टे तक रगड़ते रहे, बदकिस्मती से वे उसे चित्त नहीं कर पाये। अपनी दुर्गती देखकर जेविस्को ने रेफरी से मुकाबला स्थगित करने का अनुरोध किया। उसने कहा कि वह बहुत थक गया है, मुकाबला अगले दिन के लिए घोषित कर दिया जाये। अगले दिन जेविस्को गामा से लड़ने ही नहीं आया और गामा को विश्व विजेता घोषित कर दिया गया।

गामा के प्रिय शार्गिद
गामा पहलवान रीवा में रहते हुए 10-12 साल तक के बच्चों को भी कुश्ती सिखाते थे। गामा के रीवा आगमन पर उस्ताद मुमताज खाँ बिछिया रीवा ने अपने द्वारा तैयार किए पट्टे हरिहर प्रसाद पाण्डेय की बेहतरी के लिए 1934 में उन्हें गामा के सुपुर्द कर दिया था। उनके प्रिय शार्गिदों में पं. राम भाऊ शुक्ला (बड़ी हर्दी) हरिहर प्रसाद पाण्डे (मकरवट), हनीफ खाँ (बिछिया रीवा) थे। इनमें रामभाऊ शुक्ला रीवा स्टेट चैम्पियन, हरिहर पाण्डेय रीवा स्टेट चैम्पियन के अलावा इलाहाबाद चैम्पियन, बुन्देलखण्ड चैम्पियन थे। जबकि हनीफ खाँ 1935 के युवा वर्ग के रीवा स्टेट चैम्पियन बने थे। गामा पहलवान के सर्वाधिक निकट हरिहर प्रसाद पाण्डेय थे गामा ने हरिहर प्रसाद को महाराजा गुलाब सिंह से अपने साथ ले जाने के लिए यह कहते हुए मांगा था कि हरिहर को में रुस्तमे हिन्द 1 साल के भीतर बना दूंगा पर महाराजा गुलाब सिंह हरिहर प्रसाद को नहीं जाने दिया।

गामा का आखरी बार रीवा आगमन 
गामा पहलवान सन् 1935-36 ई. में आखरी बार रीवा आये उनकी अगवानी करने खुद महाराजा गुलाब सिंह चंदुआ नाले तक गये तथा उन्हें राज अतिथि बनाकर रीवा में रखा। गामा के रीवा आने से उनके शिष्य तथा उनके मित्र प्रफुल्लित हो गये उन्होंने सभी से मुलाकात की। रीवा नरेश महाराजा वेंकटरमण सिंह ने उन्हें 30 किलो वजन के चांदी का भारी भरकम गदा देकर सम्मानित किया था गामा जहां भी जाते वो गदा लेकर चलते थे। प्रतापगढ़ (नादन) के इलाकेदार लाल कप्तान प्रताप सिंह उनके निकट मित्रों में से थे। गामा जब रीवा में कुछ महीने रुकने के बाद यहां से पटियाला जाने लगे तो उन्होंने अपने दो मुग्दर लाल कमान प्रताप सिंह को भेंट कर दिया था। उस मुग्दर में उर्दू भाषा में गामा का नाम व फारसी में शेर लिखा हुआ था उसकी परत देखने में चांदी सी प्रतीत होती है। वह मुग्दर कप्तान प्रताप सिंह के परपोते अशोक सिंह के पास आज भी मौजूद है।

पाकिस्तान चले गए थे गामा
गामा पहलवान अपने भतीजों की हत्या से दुखी होकर बंटवारे के समय पाकिस्तान चले गये पर वहां पर हिन्दुस्तान जैसे उनके कद्रदान नहीं थे। उन्होंने पाकिस्तान जाकर शादी कर ली थी। 82 साल की उम्र में लाहौर के एक अस्पताल में 23 मई 1960 को मुफलिसी की हालत में विश्व विजेता गामा पहलवान ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। वह रीवा नरेश महाराजा वेंकट रमण सिंह के प्रति हमेशा कृतज्ञ रहे। तथा रीवा में अपने शिष्यों व दोस्तों का हाल ख़त के द्वारा हमेशा मालूम करते रहे। गामा पहलवान अपने जीवन काल में कोई भी कुश्ती नहीं हारी उनका पहलवानी कैरियर लगभग 50 वर्षों का अपराजेय रहा।