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पोस्ट कोरोना के बाद ब्रेन फॉग और न्यूरोसाइकाइट्रिक का खतरा, सामने आई नई रिसर्च

कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति को ठीक होने के बाद भी कई तरह की दिक्कतों की सामना करना पड़ा है। कोरोना मरीजों के लिए एक नई रिसर्च सामने आई है जिसमें कुछ हैरान करने वाले दावे किए गए हैं।

पोस्ट कोरोना के बाद ब्रेन फॉग और न्यूरोसाइकाइट्रिक का खतरा, सामने आई नई रिसर्च
Ashutosh Rayलाइव हिन्दुस्तान,नई दिल्लीThu, 18 Aug 2022 05:26 PM

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कोरोना वायरस से संक्रमण को लेकर एक नई रिसर्च सामने आई है। रिसर्च में दावा किया गया है कि पोस्ट कोरोना के बाद न्यूरोलॉजिकल और मनोरोग संबंधी स्थितियां कोविड-19 के कई चिंताजनक परिणामों में से एक हैं। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने पिछले साल बताया था कि तीन में से एक मरीज को कोविड संक्रमण के छह महीने बाद मूड डिसऑर्डर, स्ट्रोक या डिमेंशिया का अनुभव हुआ। अब एक नए रिसर्च में शोधकार्ताओं ने 12.5 लाख कोविड मरीजों पर किए अध्ययन का एक विश्लेषण जारी किया है। इस अध्ययन में बच्चों को भी शामिल किया गया है।

ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ की रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना संक्रमण के दो साल बाद तक मस्तिष्क संबंधी और मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों जैसे मनोविकृति, ब्रेन फॉग और दौरे पड़ने के विकसित होने का जोखिम अधिक रहता है। यह अध्ययन अब तक का सबसे बड़ा रिसर्च होने का दावा करता है।

टेंशन और अवसाद तो दो महीने में ही ठीक हो जाते हैं

विऑन न्यूज डॉट कॉम की रिपोर्ट के मुताबिक, लैंसेट साइकियाट्री में बुधवार को यह रिसर्च प्रकाशित हुआ। रिसर्च में कहा गया है कोरोना के ठीक होने के तुरंत बाद चिंता और अवसाद होते हैं जो कि दो महीने के बाद खत्म हो जाते हैं जैसा कि फ्लू जैसे संक्रमण के बाद होता है।

बच्चों को लेकर किए गए रिसर्च में बताया गया है कि कोरोना से संक्रमित होने के दौ साल तक उनमें चिंता या अवसाद की संभावना नहीं दिखी, लेकिन अन्य सांस संबंधी संक्रमणओं से उबरने वाले बच्चों की तुलना में उनमें दौरे और मानसिक विकारों से पीड़ित होने का जोखिम बहुत अधिक है।

अलग-अलग वैरिएंट का अलग-अलग असर

यह देखने पर कि कोरोना के अलग-अलग वैरिएंट ने स्वास्थ्य जोखिमों को कैसे प्रभावित किया, तो यदि अल्फा वैरिएंट की तुलना में डेल्टा वैरिएंट ने चिंता के मामलों के साथ-साथ ब्रेन फॉग के केस में भी बढ़ोतरी हुई। ओमिक्रॉन वैरिएंट को लेकर भी कुछ इसी तरह के रिसर्च सामने आए हैं। ब्रेन फॉग की स्थिति में व्यक्ति को सोचने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
 

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