निर्दलीय खड़ा हो जाऊंगा, लोकसभा चुनावों से पहले बंगाल भाजपा में बगावत की चेतावनी
पश्चिम बंगाल भाजपा के प्रवक्ता समिक भट्टाचार्य ने कहा कि पार्टी स्थिति पर नजर रख रही है और उचित समय पर निर्णय लेगी। उन्होंने कहा कि पार्टी विष्णु शर्मा से बात करेगी। हम स्थिति पर नजर रख रहे हैं।
इसी साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले पश्चिम बंगाल के एक भाजपा विधायक ने बगावत की धमकी दी है। कर्सियांग के भाजपा विधायक बिष्णु प्रसाद शर्मा ने कहा कि अगर उनकी पार्टी दार्जिलिंग सीट पर किसी 'बाहरी' व्यक्ति को अपना उम्मीदवार बनाती है तो उन्हें निर्दलीय के रूप में लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
विष्णु शर्मा अलग गोरखालैंड राज्य के मुखर समर्थक हैं। उन्होंने दार्जीलिंग हिल्स सीट पर 2009 से भाजपा की ऐतिहासिक सफलता की ओर ध्यान खींचा है। हालांकि, उन्होंने लगातार ऐसे उम्मीदवारों का चयन करने के लिए पार्टी की आलोचना की जिनका दार्जिलिंग पहाड़ियों से कोई संबंध नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘वे आते हैं, पार्टी टिकट पर चुनाव लड़ते हैं, जीतते हैं और फिर कहीं नजर नहीं आते। इस बार हम एक अच्छा उम्मीदवार चाहते हैं जो इस माटी का सपूत होना चाहिए।’’
विष्णु शर्मा ने अपनी पार्टी से स्थानीय मूल के उम्मीदवार को नामांकित करने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा, "अगर मांग पूरी नहीं हुई, तो मैं अपनी पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार के खिलाफ एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ूंगा। मुझे हिल्स सीट की जनता की आकांक्षाओं का सम्मान करना है।"
पश्चिम बंगाल भाजपा के प्रवक्ता समिक भट्टाचार्य ने कहा कि पार्टी स्थिति पर नजर रख रही है और उचित समय पर निर्णय लेगी। उन्होंने कहा, "पार्टी विष्णु शर्मा से बात करेगी। हम स्थिति पर नजर रख रहे हैं। नामांकन का मुद्दा पार्टी नेतृत्व तय करेगा और हम सभी को इसका पालन करना होगा।" दार्जिलिंग को अक्सर "पहाड़ियों की रानी" कहा जाता है। यह एक अलग गोरखालैंड राज्य की मांग को लेकर चर्चा में रहा है।
भाजपा के साथ-साथ गोरखा जनमुक्ति मोर्चा और गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट सहित पारंपरिक पहाड़ी दलों ने 2022 में अर्ध-स्वायत्त परिषद चुनावों का बहिष्कार किया था। इस क्षेत्र को पश्चिम बंगाल से अलग करने की मांग दशकों पुरानी है, हालांकि गोरखालैंड राज्य आंदोलन ने 1986 में जीएनएलएफ नेता सुभाष घीसिंग के नेतृत्व में रफ्तार भरी थी। इस आंदोलन के परिणामस्वरूप कई लोग हताहत हुए और 1988 में दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल के गठन के साथ इसकी नई शुरुआत हुई। दार्जिलिंग पहाड़ियों में 104 दिनों की लंबी हड़ताल के दौरान 2017 में भी इस क्षेत्र में और अधिक अशांति देखी गई थी।
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