सतुआन का पर्व क्यों मनाया जाता है? जानिए इसका महत्व
सूर्य देव की उत्तरायण की आधी परिक्रमा पूरी होने के बाद शुभ कार्यों की शुरुआत होती है और इसी दिन सतुआन का पर्व मनाया जाता है। जौ, गेहूं और चने की नई फसल की कटाई के बाद सतुआन पर्व को मनाते हैं।
सतुआन
सतुआन में सूर्य भगवान की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन लोग सूर्य देव को सत्तू, गुड़ और आम का टिकोरा (कच्चा आम) अर्पित करते हैं।
सूर्य देव की पूजा
सतुआन के दिन सूर्य देव की पूजा समृद्धि, स्वास्थ्य और सुख की कामना के लिए की जाती है। माना जाता है कि सतुआन के दिन सत्तू का दान करने से सूर्य और शनि की कृपा प्राप्त होती है।
सत्तू का दान
सतुआन के दिन सूर्योदय से पहले स्नान कर मंदिरों में सत्तू, गुड़ और कच्चे आम चढ़ाया जाता है। इस दिन घरों में सत्तू से बने व्यंजन, जैसे सत्तू का शरबत और चटनी, तैयार किए जाते हैं।
सतुआन की परंपराएं
सतुआन पर्व प्रकृति के साथ गहरे जुड़ाव का प्रतीक है। यह पर्व नए फल, जैसे आम के टिकोरे और फसलों के उपयोग की शुरुआत का समय है।
प्रकृति से संबंध
सतुआन को अलग-अलग क्षेत्रों में विभिन्न नामों से मनाया जाता है। बिहार में इसे सतुआन या सतुआनी, मिथिलांचल में जुड़ शीतल, बंगाल में नबा वैशाख कहते हैं।
क्षेत्रीय विविधता
वैज्ञानिक दृष्टि से, सतुआन गर्मी के मौसम की शुरुआत का संकेत देता है। सत्तू का सेवन शरीर को ठंडक और कच्चे आम की चटनी लू से बचाव करती है।
सतुआन का वैज्ञानिक आधार
सतुआन पर्व प्रकृति, संस्कृति और स्वास्थ्य का अनूठा संगम है। यह पर्व हमें पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी सिखाता है।
संस्कृति के साथ प्रकृति का संगम
यह जानकारी सिर्फ मान्याताओं, धर्मग्रंथों और विभिन्न माध्यमों पर आधारित है। किसी भी जानकारी को मानने से पहले विशेषज्ञ से सलाह लें।
नोट
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