By Navaneet Rathaur
PUBLISHED Nov 10, 2023

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भारत में कैसे आया पहली बार पटाखा, जानिए रोचक इतिहास

मान्यता है कि चीन में बुरी शक्तियों को भगाने के लिए आतिशबाजी की शुरुआत हुई थी। चीन के अहम खोजों में बारूद भी शामिल है।

पटाखों की खोज

रंगीन आतिशबाजी का चलन सबसे पहले 1830 में यूरोप में शुरू हुआ था और आकाश में चमकने वाली आतिशबाजी 20वीं शताब्दी में शुरू हुई थी।

आतिशबाजी का चलन

पटाखों का शौक लोगों को पहले से भी था, लेकिन चीन के लोग बांस से प्रकृति को नुकसान ना पहुंचाने वाले पटाखों का इस्तेमाल करते थे।

पटाखों का शौक

इन पटाखों से तेज आवाज और रोशनी जलती थी, लेकिन आज के समय में नाइट्रेट, सल्फर, पोटैशियम जैसे जहरीले रासयनिक पदार्थों से पटाखे बन रहे हैं।

पटाखों में रासयनिक पदार्थ

19वीं सदी में एक मिट्टी की छोटी मटकी में  बारुद भरकर पटाखा बनाया जाता था और इसे जमीन पर पटक कर फोड़ा जाता था।

कैसे पड़ा पटाखा नाम?

मटकी वाले पटाखे को जमीन में पटक कर फोड़ा जाता था। लोगों का मानना है इसलिए इसका नाम पटाखा पड़ा होगा।

मटकी वाले पटाखे

इतिहासकारों के मुताबिक, पानीपत के पहले युद्ध में सन् 1526 में मुगलों ने बारूद का इस्तेमाल किया था, तभी से भारत में पटाखों का चलन माना जाता है।

भारत में कैसे आया पटाखा?

देश में धीरे-धीरे शादियों और शुभ कार्यों में आतिशबाजी की शुरुआत हुई, फिर पटाखा महंगा होने के कारण केवल राजसी और अमीर घरानों में आतिशबाजी होती थी।

राजसी ठाठ-बाठ

बता दें कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने ब्रिटिश हुकुमत में भारत में पटाखों की पहली फैक्ट्री सन् 1900 में कोलकाता में लगाई थी।

देश में पटाखों की पहली फैक्ट्री

पटाखा उत्पादन में भारत चीन के बाद दूसरे नंबर पर आता है। इस समय देश में पटाखों का सबसे ज्यादा उत्पादन तमिलनाडु के शिवकाशी में होता है।

पटाखों का उत्पादन

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