भारत में हाई कोर्ट के जज को कैसे हटाया जा सकता है? जानिए प्रोसेस
न्यायपालिका हमारे देश के लोकतंत्र की एक महत्वपूर्ण संस्था है। ऐसे में न्यायपालिका के स्वतंत्र और निष्पक्ष संचालन के लिए संविधान में विशेष प्रावधान किए गए हैं।
न्यायपालिका
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों को आजीवन कार्यकाल नहीं दिया जाता है। लेकिन उन्हें मनमाने तरीके से हटाया भी नहीं जा सकता है।
जजों को हटाना
बता दें कि किसी भी जज को हटाने की प्रक्रिया Impeachment Process कहलाती है, जो बेहद कठिन और जटिल होती है।
Impeachment Process
संविधान का अनुच्छेद 124(4) सुप्रीम कोर्ट के जजों को हटाने की प्रक्रिया को बताता है। जबकि अनुच्छेद 217(1)(b) हाई कोर्ट के जजों के लिए यही प्रक्रिया लागू करता है।
संविधान का अनुच्छेद
बता दें कि भारत में जज को केवल दो कारणों से हटाया जा सकता है, एक है अयोग्यता और दूसरा अक्षम्यता।
जज को पद से हटाने के कारण
अगर कोई जज अपने पद का दुरुपयोग करता है, भ्रष्टाचार में शामिल होता है या कोई गंभीर नैतिक गलती करता है, तो उसे अयोग्या करार दिया जाता है।
अयोग्यता
अगर जज मानसिक या शारीरिक रूप से काम करने में असमर्थ हो जाता है, तो इसे अक्षम्यता माना जाता है।
अक्षम्यता
बता दें कि किसी जज को हटाने के लिए संसद में एक महाभियोग प्रस्ताव पेश किया जाता है। इस महाभियोग प्रस्ताव पर लोकसभा के 100 सांसदों और राज्यसभा के 50 सांसदों के हस्ताक्षर जरूरी होते हैं।
महाभियोग प्रस्ताव
संसद के दोनों सदनों से महाभियोग पास होने के बाद जांच समीति का गठन किया जाता है। इस समिति में सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ जज और हाई कोर्ट के एक मुख्य न्यायाधीश और एक न्यायविद शामिल होते हैं।
जांच समीति
जांच समीति आरोपों की जांच कर सदन को रिपोर्ट सौंपती है। अगर समिति जज को दोषी पाती है, तो प्रस्ताव को संसद में रखा जाता है।
आरोपों की जांच
संसद के दोनों सदनों में जांच समीति के प्रस्ताव को पास कराना होता है। सदन के कुल सदस्यों के 50 फीसदी से अधिक और उपस्थित सदस्यों के कम से कम दो तिहाई सांसदों को इसके पक्ष में वोट देना होगा।
प्रस्ताव
अगर संसद प्रस्ताव पारित कर देती है, तो इसे अंतिम रूप से राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। राष्ट्रपति इसे मंजूरी देने के बाद जज को पद से हटा सकते हैं।
राष्ट्रपति से मंजूरी
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