Jet Airways CEO ने दुबई से की भारतीय मेट्रो स्टेशनों की तुलना, लोगों ने दिखा दिया आईना
जेट एयरवेज के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) संजीव कपूर ने दुबई और भारतीय मेट्रो स्टेशनों की तुलना कर दी। यह ट्वीट वायरल हो गया। जिसके बाद लोगों ने उन्हें निशाने पर लेते हुए आईना दिखा दिया।

जेट एयरवेज के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) संजीव कपूर ने दुबई और भारतीय मेट्रो स्टेशनों की तुलना कर दी। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि दुबई के मुकाबले भारतीय मेट्रो स्टेशनों की सुंदरता और वास्तुकला काफी खराब है। संजीव कपूर का यह ट्वीट सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। जिसके बाद लोगों ने उन्हें निशाने पर लेते हुए आईना दिखा दिया।
अपने ट्वीट में जेट एयरवेज के सीईओ संजीव कपूर ने दुबई के साथ भारतीय मेट्रो स्टेशनों के बुनियादी ढांचे की तुलना कर दी। उन्होंने भारतीय मेट्रो स्टेशनों को 'कलाहीन' कहा। उनके इस ट्वीट ने बहुत सारे ट्विटर यूजर्स को नाराज कर दिया। उनके बयान का विरोध करने के लिए सोशल मीडिया पर जवाबों की बाढ़ सी आ गई।
संजीव कपूर ने क्या कहा
दरअसल, संजीव कपूर ने ट्विटर पर लिखा, बैंगलोर, गुड़गांव, कोलकाता... हमारे ओवरग्राउंड/ओवरहेड मेट्रो स्टेशन इतने आर्टलेस कंक्रीट आईसॉर्स क्यों हैं? बैंगलोर की तुलना में दुबई पर एक नजर डालें। और ये दुबई स्टेशन शायद 10 साल पहले बनाया गया था! उन्होंने अपनी बात पर जोर देने के लिए दुबई और बेंगलुरु मेट्रो स्टेशनों की तस्वीरें भी साझा कीं।
उनका बयान कई ट्विटर यूजर्स को पसंद नहीं आया।
लोगों ने क्या किए कमेंट
एक ने लिखा, "उन लोगों की विशिष्ट प्रतिक्रिया जो अपने देश की सराहना नहीं करते हैं।" दूसरे ने कहा, "ट्रांजिट को सुंदर नहीं होना चाहिए। यदि आपने शहरीकरण और शहर नियोजन पर अधिक पढ़ा है तो आप ऐसा कभी नहीं करेंगे। दुबई को फिर से बधाई। वह शहर एक शहरी नियोजन दुःस्वप्न है।
तीसरे ने लिखा, ''अगर आपने भारत की प्राचीन वास्तुकला को देखा होता, तो अच्छा होता। तब और अब में फर्क सिर्फ इतना है कि भारत के पास तब पर्याप्त संसाधन थे। भारत अब सौंदर्यशास्त्र पर भी पैसा खर्च नहीं कर सकता है, अगर इसकी कीमत बहुत कम है।''
कई लोगों ने अपनी बात साबित करने के लिए देश भर के कई मेट्रो स्टेशनों की खूबसूरत और अच्छी तरह से डिजाइन की गई कई तस्वीरें भी साझा कीं।
कुछ सहमत भी नजर आए
हालांकि कुछ यूजर्स ऐसे भी थे जो उनके इस बयान से सहमत दिखे। एक यूजर ने लिखा, 'सही बताया। हमारा सार्वजनिक बुनियादी ढांचा पर्यावरण के अनुकूल नहीं है, लागत के अनुकूल या सुंदर नहीं है, और कई लोगों तक पहुंच भी नहीं है। सिर्फ मेट्रो स्टेशन ही नहीं अन्य सार्वजनिक बुनियादी ढांचे भी। आजकल निजी निर्माण ने भी पूरी तरह से गड़बड़ कर दी है। सौंदर्यशास्त्र को कम महत्व दिया गया है।''
एक अन्य ने टिप्पणी की, 'भारत के मेट्रो स्टेशनों' में कलात्मक अपील की कमी वांछित होने के लिए बहुत कुछ छोड़ देती है। इतनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के साथ, यह शर्म की बात है कि देश के सार्वजनिक स्थान दृष्टिगत रूप से अधिक प्रेरक नहीं हैं। आइए एक ऐसे भविष्य की आशा करें जहां रूप और प्रकार्य सह-अस्तित्व में हों।''