एक आउटसाइडर के तौर पर आईं सोनल ये भी कहती हैं कि मैं इतनी छोटी थी कि मुझे ये भी पता नहीं चलता था कि कोई अगर मुझसे डबल मीनिंग बात कर रहा है तो उसका मतलब क्या है। या फिर अगर कोई मुझसे बुरी तरह से बात कर रहा है तो मैं कैसे उसे जवाब दूं इसलिए आज जब उस मासूम लड़की के बारे में सोचती हूं जो मैं उस समय थी तो खुद को गले लगाने का मन करता है। इसी के साथ ही इंडस्ट्री में पनपे नेपोटिज्म के बारे में वह कहती हैं कि मुझे नेपोटिज्म से कोई परेशानी नहीं है लेकिन तब बुरा लगता है कि जब फेवरेटिज्म के चक्कर में आपका काम उस इंसान को दे दिया जाता है जो उस लायक भी...
कितनी गोलियां चलाने का था ऑर्डर, सारे राज़ उगल रहे बिश्नोई के गुर्गे