दहेज के लिए पत्नी और नवजात को छोड़ा
- पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर शुरू की जांच सेलाकुई, संवाददाता। दहेज लोभी पति और उसके परिजनों ने दहेज के लिए महिला और उसके नवजात को छोड़ दिया। महिला की तह

जनजाति क्षेत्र जौनसार बावर में हर त्योहार मनाने का अपना निराला अंदाज है, यहां की लोक संस्कृति और रहन सहन दुनिया से बिल्कुल भिन्न होने से यह क्षेत्र अपनी एक अलग पहचान रखता है। इसी तरह क्षेत्र में मनाए जाने वाले किसानों का पर्व कोदों की नेठावण की अपनी अलग ही रंगत है। मंडुवे की गुड़ाई से जुड़े इस पर्व को आज भी क्षेत्र में मनाया जाता है, लेकिन आधुनिकता की दौड़ में इस त्योहार को मनाने का चलन कम हो गया है। शनिवार को संग्राद पर कोदों की नेठावण मनाया गया। हालांकि क्षेत्र में मंडुवे की खेती करने का प्रचलन दिनोंदिन घटता जा रहा है, लेकिन इस पर्व की रंगत आज भी बरकरार है।
आज भी क्षेत्र के लगभग 50 के करीब गांवों में कोदों की नेठावण का जश्न सावन की संक्रांति को मनाया गया। अपनी अनूठी पौराणिक परंपराओं के लिए देश विदेश में विख्यात जौनसार बावर क्षेत्र में हर पर्व को मनाने की परंपराएं भी अनूठी है। करीब दो लाख की आबादी वाले इस क्षेत्र में रीति रिवाज, मेले खान पान, वेश भूषा, भाषा व संस्कृति देश से मेल नहीं खाती है। जौनसार बावर क्षेत्र में बिस्सू, माघ, नुणाई, जातरा, जौनसारी दीवाली, जागड़ा, ग्यास, पाईता, आदि त्योहारों से तो सब वाफिक हैं, लेकिन किसानों के इस त्योहार कोदों की नेठावण के बारे में क्षेत्र के बाहर के लोग कम ही जानते हैं। मंडुवे की खेती की गुड़ाई से जुड़े इस पर्व को हर साल क्षेत्र के 50 से अधिक गांवों के ग्रामीण मनाते हैं। शनिवार को संक्रांति के दिन कोदों की नेठावण पर्व को क्षेत्र में मनाया गया। क्षेत्र के बुजुर्ग श्रीचंद जोशी, अर्जुन दत्त जोशी, सुरेंद्र सिह चौहान, नैन सिंह राणा का कहना है कि एक समय था कि जब क्षेत्र का मुख्य व्यवसाय कृषि था। 80 व 90 के दशक तक किसान बड़ी संख्या में मंडुवे की खेती करते थे पूरे महीने गांव के लोग एक-दूसरे का सहयोग कर मंडुवे की गुड़ाई करते थे। सावन की संक्रांति तक हर हाल में गुड़ाई पूरी कर जश्न मनाया जाता था। हर गांव में कोदों के गडावणे लगाए जाते थे, लेकिन अब मंडुवे की खेती के लिए युवा पीढ़ी का रुझान भी घट रहा है।
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