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लिव-इन रिलेशनशिप में रहते हुए बच्चे का जन्म हुआ तो उसका क्या होगा? उत्तराखंड CJI ने पूछा रेगुलेट करने में गलत क्या है

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि निजता के हनन की आड़ में किसी व्यक्ति के आत्मसम्मान की बलि नहीं दी जा सकती, खासतौर से तब जब वह लिव-इन रिलेशनशिप के दौरान जन्मा बच्चा हो।

Sneha Baluni लाइव हिन्दुस्तानThu, 13 Feb 2025 02:37 PM
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लिव-इन रिलेशनशिप में रहते हुए बच्चे का जन्म हुआ तो उसका क्या होगा? उत्तराखंड CJI ने पूछा रेगुलेट करने में गलत क्या है

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि निजता के हनन की आड़ में किसी व्यक्ति के आत्मसम्मान की बलि नहीं दी जा सकती, खासतौर से तब जब वह लिव-इन रिलेशनशिप के दौरान जन्मा बच्चा हो। कोर्ट ने पूछा कि ऐसे रिश्तों को रेगुलेट (विनियमित) करने में क्या गलत है। चीफ जस्टिस जी नरेंद्र की पीठ उत्तराखंड समान नागरिक संहिता (यूसीसी) अधिनियम, 2024 के प्रावधानों खासकर लिव-इन रिलेशनशिप से संबंधित, को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

अलमासुद्दीन सिद्दीकी ने वकील कार्तिकेय हरि गुप्ता के जरिए दायर याचिका में संहिता में मेंशन निषिद्ध रिश्तों की सूची को भी चुनौती दी है और कहा गया है कि यह न केवल याचिकाकर्ताओं के विवाह करने के धार्मिक अधिकार में बाधा डालता है बल्कि ऐसी शादी को अमान्य घोषित करता है और इसे आपराधिक बनाता है।

उत्तराखंड और केंद्र सरकार की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए छह हफ्ते का समय मांगा, जब चीफ जस्टिस ने कानून की धारा 387(1) पर जस्टिफिकेशन मांगा, जो लिव-इन रिलेशनशिप का पंजीकरण न करने को तीन महीने तक की कैद या 10,000 रुपये का जुर्माना या दोनों के साथ अपराध बनाती है। इसपर मेहता ने कहा, 'हम जवाब देंगे। इसके लिए तर्कसंगतता है। हमने एक स्टडी की है और कई निराश्रित महिलाएं हैं।'

अपने ऑब्जर्वेशन में चीफ जस्टिस ने पूछा कि लिव-इन रिलेशनशिप को रेगुलेट करने में क्या गलत है। सीजेआई ने कहा, 'इसके भी दुष्परिणाम हैं। अगर यह रिश्ता टूट जाता है तो क्या होगा? अगर इस रिश्ते के दौरान कोई बच्चा होता है तो उसका क्या होगा? शादी के मामले में पितृत्व को लेकर एक अवधारणा होती है लेकिन लिव-इन रिलेशनशिप में ऐसी कोई अवधारणा नहीं है? आपकी निजता के हनन की आड़ में क्या किसी दूसरे व्यक्ति के आत्मसम्मान की बलि दी जा सकती है, वह भी तब जब वह आपका बच्चा हो और शादी या पितृत्व का कोई सबूत न हो।'

एसजी ने कहा, 'यह (लिव-इन में रहने पर पंजीकरण) महिला सशक्तिकरण का प्रावधान है।' सीजेआई ने कहा कि लिव-इन को पहले से ही घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम के तहत मान्यता प्राप्त है। उन्होंने कहा, 'समस्या सिर्फ महिलाओं को लेकर नहीं है। हालांकि महिला को कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ेगा - जिसमें पितृत्व साबित करना भी शामिल है। अगर पंजीकरण होता है, तो इससे निश्चित रूप से मदद मिलेगी।'

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