शिक्षा और जागरूकता से सशक्त बनेंगी महिलाएं, देखें VIDEO
शादी के समय फेरे लेने की परंपरा है, लेकिन कहीं कुछ न कुछ हम छोड़ जाते हैं। आपका अपना अखबार ‘हिन्दुस्तान’ इस बार शादीशुदा लोगों के लिए ‘आठवां फेरा’ लेकर आया है। इसके तहत सोमवार...
शादी के समय फेरे लेने की परंपरा है, लेकिन कहीं कुछ न कुछ हम छोड़ जाते हैं। आपका अपना अखबार ‘हिन्दुस्तान’ इस बार शादीशुदा लोगों के लिए ‘आठवां फेरा’ लेकर आया है। इसके तहत सोमवार को ‘हिन्दुस्तान’ ने कर्जन रोड स्थित कार्यालय में संवाद का आयोजन किया। संवाद में समाज के विभिन्न क्षेत्रों से जुड़ी महिलाओं ने बेबाकी से अपनी राय रखी। उन्होंने कहा कि महिला अधिकारों और नारी सशक्तिकरण के लिए घर-परिवार से ही इसकी शुरुआत की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि जब तक महिलाओं को उनके अधिकार, शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा जैसी सुविधाएं मुहैया न करवाई जाएं, तब तक महिला सशक्तिकरण का प्रयास सार्थक नहीं होगा। महिलाओं को समाज में बराबरी का हक दिलाने के लिए आठवें फेरे की दरकार है। आठवें फेरे का अभिप्राय एक ऐसे समाज का निर्माण करना है जिससे महिलाएं पितृ सत्तात्मक समाज में बिना भेदभाव के खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें। समाज में जागरूक महिला संगठनों और संस्थाओं को महिलाओं के बीच जाकर उचित मार्गदर्शन करना चाहिए।
समाज में महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिलाए जाने के लिए बहुत काम करने की जरूरत है। कई घरों में संकुचित सोच के चलते आज भी बेटा-बेटी में भेदभाव किया जाता है। महिला सशक्तिकरण के लिए विवाह में पंडित जी को आठवें फेरे के रूप में कन्या भ्रूण हत्या न करवाने का संकल्प दिलाना चाहिए।
साधना शर्मा, अध्यक्ष उत्तरांचल महिला एसोसिएशन
समाज में बराबरी का हक दिलाए जाने के लिए महिलाओं में शिक्षा और जागरूकता जरूरी है। महिला जब अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों के बारे में परिचित होगी तो स्वयं ही धीरे-धीरे महिला सशक्तिकरण होगा। सामाजिक संगठनों को भी महिलाओं को जागरूक करने के लिए पहल करनी होगी।
मोनिका सूद, सदस्य, उत्तरांचल महिला एसोसिएशन
खुद की समझ को विकसित करना ही महिला सशक्तिकरण है। महिलाएं जब खुद के अधिकारों के प्रति सजग होंगी तो स्वाभाविक तौर पर महिलाओं को बराबरी का हक मिलेगा। उनमें सशक्तीकरण भी होगा। महिलाओं को शिक्षित होने के साथ ही सजग और जागरूक होना जरूरी है।
मंजू काला, लेखिका और धाद साहित्य एकांश सचिव
महिला अधिकारों को लेकर घर से शुरुआत की जानी चाहिए। लड़कियों को लड़कों के सामान शिक्षा दी जाए। आज के युवा ही आज कल का भविष्य हंै। इसलिए बच्चों को घर-परिवार से ही ऐसे संस्कार दिए जाएं जिससे आगे चलकर वे स्वस्थ और सभ्य समाज में सकारात्मक भूमिका अदा कर सकें।
डा. मधु राय, प्रधानाचार्य आईटी चिल्ड्रंस एकेडमी
महिला अपने आप में शक्ति है, जरूरत है खुद को पहचानने की। परिवारों में लड़कियों की शादी के लिए दहेज इकट्ठा करने की बजाय उनकी शिक्षा पर खर्च किया जाए। सामाजिक गतिविधियों में प्रतिभाग करने के लिए लड़कियों को प्रोत्साहित किया जाए। घर से महिला सशक्तिकरण की शुरुआत कर हम समाज में उदाहरण सेट कर सकते हैं।
शम्मी कक्कड़, गायिका
समानता के लिए महिलाओं को शिक्षित होना जरूरी है। शिक्षित होकर ही महिलाएं अधिकारों को लेकर जागरूक होंगी। महिला संगठनों को सकारात्मक भूमिका निभाते हुए जागरूकता का काम करना होगा। शिक्षित होने के साथ ही सही-गलत की समझ विकसित करने पर ही समाज में महिला सशक्तिकरण संभव है।
लक्ष्मी मिश्रा, अभिव्यक्ति संस्था, कंडोली
21वीं शताब्दी में महिलाएं विभिन्न क्षेत्रों में आगे रही हैं, बावजूद इसके आज भी महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए लड़ना पड़ता है। अधिकारों के लिए वही महिला अपनी आवाज उठा सकती है जो जागरूक होगी। इसके लिए शिक्षा और स्वास्थ्य जरूरी है। महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए सरकार को देशव्यापी अभियान चलाना पड़ेगा।
विनोद उनियाल, सामाजिक कार्यकर्ता
शिक्षित और आर्थिक रूप से संपन्न परिवारों के बच्चे खुद अपने फैसले ले रहे हैं। मध्यम परिवारों के बच्चे पूरी तरह से दूसरों पर निर्भर हैं। उन्हें अपनी ताकत का अंदाजा नहीं है। इसके लिए बच्चों को संस्कार दिए जाएं, जिससे स्वस्थ समाज के निर्माण में भूमिका अदा कर सकें। मैं खुद आत्मनिर्भर होकर महिलाओं को जागरूक कर रही हूं।
पूनम गर्ग, साईं स्पर्श ट्रस्ट
मौजूदा दौर में महिलाएं घर से लेकर कार्यस्थल तक किसी न किसी तरह की हिंसा की शिकार हैं। इसके पीछे शिक्षा, जागरूकता और सुरक्षा बड़ी वजह है। इसके लिए सरकार की ओ से किए जा रहे प्रयास नाकाफी हैं। महिलाएं जब तक खुद के अधिकारों के प्रति मुखर नहीं होंगी तब तक पुरुष प्रधान समाज में बराबरी का हक मिलना संभव नहीं।
तनुजा रौतेला गुप्ता, अभिनेत्री
कल्पना बहुगुणा, अध्यक्ष धाद साहित्य एकांश
सोच में बदलाव लाने के बाद ही महिलाओं को समाज में सशक्त किया जा सकता है। दकियानूसी सोच और अंधविश्वास को दूर कर सीखना होगा कि कैसे महिलाओं की भावनाओं की कद्र की जाती है। जिस दिन हम महिला भावनाओं की कद्र करना सीख जाएंगे उसी दिन किसी महिला को कमजोर या अबला कहकर नहीं पुकारा जाएगा।
रागिनी बिंजोला, एमए छात्रा
शांति अमोली बिंजोला, रेडियो उद्घोषिका और संस्कृतिकर्मी
संवाद की प्रमुख बातें
- हिन्दुस्तान संवाद में कुछ प्रमुख बातें उठीं। इसमें समान अधिकारों को लेकर किस तरह की पहल होनी चाहिए, इस पर अपनी राय महिलाओं ने रखी।
- संवाद में सामने आया कि महिलाओं को अपनी लाइन खुद तय करनी होगी। तय करना होगा कि उनकी मंजिल कहां है। वह उसे कैसे हासिल कर सकती हैं।
- आपसी विश्वास से ही उन अधिकारों की बात आगे बढ़ाई जा सकती है, जिनकी महिला असल में हकदार है। इसलिए सबसे पहले एक-दूसरे की इज्जत करनी जरूरी है।
- नीति निर्धारण में महिलाओं को हक, संसाधनों पर महिलाओं स्वामित्व ही उनको समान अधिकार दिला सकता है। यह शुरुआत घर से होनी चाहिए।
- महिलाओं को खुद बदलना होगा, पुरुषवादी समाज से अपेक्षाएं करने के बजाए खुद निर्णय लेने होंगे और अधिकारों के प्रति सजग होना होगा।
- बात बराबरी की नहीं होनी चाहिए, यह प्रतिस्पर्धा भी नहीं है। बस अगर एक-दूसरे की भावनाओं को समझ लिया तो यहीं समस्या का समाधान हो जाता है।
- समय आपका इंतजार नहीं करेगा, आपको खुद बदलना होगा, फिर समाज से बदलाव की उम्मीद करें। अधिकार कहीं से मिलते नहीं हैं, खुद लिए जाते हैं।
- समान अधिकार के लिए शिक्षा जरूरी है और शिक्षा के लिए प्रर्याप्त साधन होने भी जरूरी हैं। एक तबका आज भी शिक्षा से दूर है, यहीं अधिकारों की ज्यादा जरूरत है।
- सामाजिक और धार्मिक आजादी से ही महिलाएं अधिकार संपन्न हो सकती हैं। सामाजिक बाध्यताएं न हों और धर्म की बेड़ियों में महिलाओं को न रखा जाए।
- सबसे बड़ी जरूरत मिथक तोड़ने की है, जो मिथक बने हैं, वही महिलाओं की आजादी में सबसे बड़ा रोड़ा हैं। मिथक तोड़िए और आगे बढ़िए।