Women became lifeline for 41 people trapped in Uttarkashi Tunnel worked in rescue operation उत्तरकाशी टनल में फंसे 41 लोगों के लिए महिलाएं बनी लाइफलाइन, रेस्क्यू ऑपरेशन में लगाई जी-जान, Uttarakhand Hindi News - Hindustan
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उत्तरकाशी टनल में फंसे 41 लोगों के लिए महिलाएं बनी लाइफलाइन, रेस्क्यू ऑपरेशन में लगाई जी-जान

उत्तरकाशी टनल हादसे में बीआरओ की महिला श्रमिक लाइफलाइन बन नहीं है। सुबह से ही ट्रैक बनाने से लेकर अन्य निर्माण कार्यों में अहम भूमिका निभा रहीं हैं। ट्रैक बनाने से लेकर निर्माण कार्य कर रहीं हैं।

Himanshu Kumar Lall उत्तरकाशी, लाइव हिन्दुस्तान, Mon, 20 Nov 2023 09:55 AM
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उत्तरकाशी टनल में फंसे 41 लोगों के लिए महिलाएं बनी लाइफलाइन, रेस्क्यू ऑपरेशन में लगाई जी-जान

उत्तरकाशी टनल हादसे में फंसे 41 लोगों को आठ दिन बाद भी सुरंग के अंदर से रेस्क्यू कर सुरक्षित बाहर नहीं निकाला जा सका है। सिल्कयारा सुरंग में फंसे लोगों को बाहर निकालने के लिए टनल के अंदर सुराख का काम जारी है। इसी के के बीच सीमा सड़क संगठन-(BRO) जनरल रिजर्व इंजीनियर फोर्स-ग्रेफ (GREF) की महिला श्रमिक रेस्क्यू ऑपरेशन में अहम भूमिका निभा रहीं हैं।

सुबह से ही ट्रैक बनाने से लेकर अन्य निर्माण कार्यों में अहम भूमिका निभा रहीं हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, बीआरओ की महिला श्रमिकों ने सिल्कयारा सुरंग के ऊपर एक मिशन में पहाड़ी की चोटी तक जाने के लिए 1.5 किमी लंबे ट्रैक का निर्माण किया। जीआरईएफ की महिला श्रमिकों का एक समूह, जिसमें महिलाएं भी शामिल थीं, अपने कंधों और हाथों पर फावड़े और निर्माण उपकरण से लैस होकर, शाम तक अपने मिशन को पूरा करने के लिए सटीकता के साथ काम किया। 

‘इस साइट पर जाने का आदेश मिलने के बाद मैंने अपना दिन सुबह 3 बजे शुरू किया। जब तक हम अपना काम पूरा नहीं कर लेंगे, हम वापस नहीं जाएंगे।' पिछले एक दशक से जीआरईएफ सदस्य, 39 वर्षीय उत्तरा देवी ने कहा  कि हम यहां फंसे सभी 41 लोगों को बचाने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। उन्होंने 2013 में अपने पति प्यारे लाल को खो दिया था।

हिमाचल की एक अन्य जीआरईएफ महिला और विधवा 35 वर्षीय सुमन देवी ने कहा, “हमें किसी भी परिस्थिति में सभी बाधाओं पर विजय पाने के लिए प्रशिक्षित किया गया है। हम अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध हैं और जब तक हम यहां अपना काम पूरा नहीं कर लेते तब तक हार नहीं मानेंगे।'' 
सुमन, जिन्होंने पिछले साल अपने पति अरविंद कुमार को कार्डियक अरेस्ट से खो दिया था कहतीं हैं कि मुझे खुशी होगी अगर मैं इन कई जिंदगियों को बचाने में योगदान दे सकूं।

काम फिर से शुरू करना मेरे लिए तय नहीं था, लेकिन अगर ये सभी लोग सुरक्षित बाहर आ जाएं तो यह सार्थक होगा। उत्तराखंड में विभिन्न बीआरओ साइटों से ट्रकों में आ रही उत्तरा और तीन अन्य महिलाओं को मिशन के बारे में पहले से कोई जानकारी नहीं थी, लेकिन जैसे ही उन्हें अपने मिशन के बारे में बताया गया, यह उनके लिए प्राथमिकता से तैयार  हो गईं। 

पूजा कुमारी (28) कहतीं हैं कि हम भूखे हैं और जब तक साइट पर खाना बनेगा, तब तक देर हो चुकी होगी। हम यहां जल्दी से कुछ खाने और काम फिर से शुरू करने के लिए आए हैं।' छत्तीसगढ़ की 20 साल की उम्र के दो बच्चों की मां 43 वर्षीय गीता देवी का कहना है कि जीआरईएफ में 15 साल से अधिक समय से काम कर रहीं हैं। 

मनेरी से ऑपरेशन रेस्कयू में शामिल होने वाली एक अन्य जीआरईएफ महिला कविता सिंह का कहना है कि
पहाड़ों पर चढ़ना और सड़कें बनाना मुश्किल नहीं है; हम मिशन मोड में काम करते हैं और यही कुंजी है। हमने 1.5 किमी से अधिक लंबी सड़क बनाई है, और अब केवल मशीन को लाने की जरूरत है।  
 

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