असमंजस: ... तो किसने लिखी थी भगवान बद्रीनाथ की आरती
भगवान बद्रीनाथ की आरती के रचयिता को लेकर असमंजस की स्थिति बन गई है। अब तक यह माना जाता रहा है कि यह आरती एक मुस्लिम भक्त बदरुद्दीन उर्फ नसरुद्दीन निवासी नंद प्रयाग (चमोली) ने लिखी थी। लेकिन अब...
भगवान बद्रीनाथ की आरती के रचयिता को लेकर असमंजस की स्थिति बन गई है। अब तक यह माना जाता रहा है कि यह आरती एक मुस्लिम भक्त बदरुद्दीन उर्फ नसरुद्दीन निवासी नंद प्रयाग (चमोली) ने लिखी थी। लेकिन अब इस आरती के लेखक को लेकर नया दावा किया गया है। इस दावे के मुताबिक यह आरती विजरवाणा सतेरा स्यूपुरी (वर्तमान रुद्रप्रयाग जिले में) के ठाकुर धन सिंह वर्त्वाल ने 1881 में लिखी थी । यह दावा ठाकुर धन सिंह वर्त्वाल के प्रपौत्र महेन्द्र सिंह वर्त्वाल ने एक पुरानी पांडुलिपि के आधार पर किया है, जिसमें आरती की पंक्तियों को लिखा है। इस दावे के प्रमाण के तौर पर महेंद्र सिंह वर्त्वाल ने वह हस्त लिखित पांडुलिपि भी प्रस्तुत की है।
क्या कहते हैं महेन्द्र सिंह वर्त्वाल
भगवान श्री बदरी नारायण की दिव्य आरती की 137 वर्ष पुरानी मूल पाण्डुलिपि है। इस पाण्डुलिपि के अंत में लिखित अंकन के अनुसार ये आरती सम्वत 1938 माघ माह 10 गते (सन् 1881) को ठाकुर धनसिंह बर्त्वाल मौजे विजरवाणा (सतेरा स्यूपुरी) पट्टी तल्ला नागपुर, जनपद रुद्रप्रयाग द्वारा लिखी गयी है। इस पाण्डुलिपि की मुख्य विशेषता ये है कि वर्तमान आरती का प्रथम पद 'पवन मंद सुगन्ध शीतल' इस आरती का पांचवा पद है। वर्तमान आरती से ये आरती 4 पद ज्यादा है । इस पाण्डुलिपि के प्रथम 5 पद वर्तमान आरती में नहीं हैं।
इसी प्रकार वर्तमान आरती और पाण्डुलिपि के पदों में जहां समानता है, वही पद संयोजन में भिन्नता है। पाण्डुलिपि में गढ़वाली भाषा के शब्द प्रयुक्त हैं, जैसे कौतुक के स्थान पर कौथिग, पवन के स्थान पर पौन, वहीं सिद्ध मुनिजन के स्थान पर सकल मुनिजन अंकित है। ये पाण्डुलिपि एक ही पत्र पर आगे पीछे लिखी गयी है। भगवान नारायण की आरती के कुल 11 पदों के बाद चार धाम की आरती है और अंत में लिखने वाले ने भगवान से कल्याण की प्रार्थना की है। लिखने वाला का नाम अंकित है और फिर आरती के लिखने की तिथि लिखी है।