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रंग लाई पर्यावरणविद डॉ. अनिल जोशी की 11 साल लंबी लड़ाई, कहा- जीडीपी की तरह हो जीईपी की चिंता

उत्तराखंड ने ग्रॉस एनवायरनमेंट प्रोडक्ट (जीईपी) जैसे सूचकांक को लागू करने का जो निर्णय लिया है, वह स्वागत योग्य है। पर्यारणविद हेस्को प्रमुख पद्मभूषण डॉ. अनिल प्रकाश जोशी ने इसकी लड़ाई करीब 11 साल...

रंग लाई पर्यावरणविद डॉ. अनिल जोशी की 11 साल लंबी लड़ाई, कहा- जीडीपी की तरह हो जीईपी की चिंता
हिन्दुस्तान टीम,देहरादूनSun, 06 Jun 2021 07:16 AM
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उत्तराखंड ने ग्रॉस एनवायरनमेंट प्रोडक्ट (जीईपी) जैसे सूचकांक को लागू करने का जो निर्णय लिया है, वह स्वागत योग्य है। पर्यारणविद हेस्को प्रमुख पद्मभूषण डॉ. अनिल प्रकाश जोशी ने इसकी लड़ाई करीब 11 साल लड़ी है। वह कहते हैं, ‘अब पर्यावरण की ओर अनदेखी करना संभव नहीं है। हम जीडीपी की चिंता करते हैं तो जीईपी पर भी बात होनी चाहिए।’

डॉ. जोशी के मुताबिक, इकोनॉमिक ग्रोथ की बात तो होती है, मगर इकोसिस्टम ग्रोथ की बात नहीं होती। हम किस तरह से पर्यावरण के लिए क्या कर सकते हैं। इस बारे में सोचने का समय आ चुका है। यह जरूरी है कि हम ऐसे सूचक के बारे में बात करें जो हवा, मिट्टी, जंगल, पानी को बेहतर करने के लिए काम कर सकता है। 

2010 में जीईपी के बारे में सबसे पहले ये विचार बना। तब प्रदेश में डॉ. निशंक सीएम थे। वो कुछ करते तब तक उनकी सरकार नहीं रही। 2011 में डॉ. जोशी इस मसले को पीआईएल के जरिए हाईकोर्ट ले गए। वहां जब चर्चा हुई तो सरकार ने जवाब दिया कि जीईपी पर उन्होंने कुछ भी नहीं बनाया। फिलहाल इस पर कुछ कहना संभव नहीं है।

भारत सरकार ने भी इस पर कोई प्रस्ताव नहीं बनाया। 2013 में केदारनाथ की त्रासदी के बाद इस पर एक बार फिर तेजी बात की गई। उस घटनाक्रम के बाद सरकार ने डॉ. जोशी को बुलाकर चर्चा आगे बढ़ाने पर सहमति बनाई। एक कमेटी भी बनी। तत्कालीन सीएम विजय बहुगुणा ने इस पर काम करने का आश्वासन दिया, लेकिन सरकार बदल गई। नए सीएम से चर्चा शुरू की तो जवाब मिला देखते हैं। 

सरकार के रुख को देखते हुए डॉ. जोशी 2015 में फिर हाईकोर्ट गए। वहां सरकार ने जवाब दिया कि वह जीईपी को स्वीकारते हैं। इसके बाद इस पर दो-तीन साल गुजर गए। इस बीच भारत के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार के साथ इस पर बैठक हुई। डॉ. जोशी शनिवार को विश्व पर्यावरण दिवस के अनेक कार्यक्रमों में दिनभर ऑनलाइन जुड़े रहे। वह करीब 11 राज्यों के कुल 18-20 वेबीनार में जुड़े और सभी जगह उन्होंने जीईपी मुद्दे पर बात की। 

प्रमुख सचिव आनंद वर्द्धन की भी रही अहम भूमिका
राज्य के वन एवं पर्यावरण प्रमुख सचिव आनंद वर्द्धन की भूमिका को डॉ. अनिल जोशी ने काफी अहम माना है। कहा कि प्रमुख सचिव ने जिस तरह से व्यक्तिगत रुचि लेकर इस पर काम किया, यह तभी संभव हो पाया। कहा कि हाईकोर्ट के निर्देश पर 2018 में सरकार ने जीईपी की बात स्वीकार की थी। स्टेट लीगल सर्विस ऑथोरिटी में भी उन्होंने सवाल उठाए। यूपीईएस में जीईपी को लेकर जो बैठक हुई उसमें नीति आयोग के अधिकारी भी आए। अंतत: सरकार ने इसे स्वीकार कर लिया।

सरकार बताएगी कि इस साल कितने जंगल पनपे
डॉ. अनिल प्रकाश जोशी के अनुसार, जीईपी में सरकार बताएगी कि इस साल कितने जंगल पनपाए, कितना बारिश का पानी रोका, प्राणवायु कितनी बेहतर की, मिट्टी को कितना बेहतर किया। इसे मिलाकर जीडीपी की तर्ज पर जीईपी दी जाएगी। यह देश में ही नहीं विश्व में पहली बार होगा कि जीईपी के जरिए इकोसिस्टम ग्रोथ का आकलन किया जाएगा। 

उम्मीद है कि उत्तराखंड के बाद अन्य राज्य सरकारें भी जीईपी लागू करने की पहल करेगी। पुणे का एक संस्थान जीईपी लागू करने के फामूर्ले को तैयार करने में लगा है। एमओयू बनने के बाद संभव है कि अगले वर्ष मार्च में इकोसिस्टम ग्रोथ जारी हो सकेगी। फार्मूला बनने में दो-चार माह में सामने आएगा। इसके बाद राज्य अपने आंकड़े जीईपी में डालेगा।

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