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कॉर्बेट नेशनल पार्क के बाघों को बचाएगी आशा-अलबेली की टीम, जारी हुआ हाई अलर्ट

कॉर्बेट नेशनल पार्क का जंगल बाघों के सबसे सुरक्षित ठिकानों में शुमार है। लेकिन शिकारियों की घुसपैठ के कारण खतरा बढ़ गया है। ऐसे में आशा और अलबेली जैसी एक्सपर्ट हथनियों की जिम्मेदारी बढ़ गई है।  

Krishna Bihari Singh राजू वर्मा, रामनगर (नैनीताल)Thu, 6 July 2023 12:20 AM
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कॉर्बेट नेशनल पार्क के बाघों को बचाएगी आशा-अलबेली की टीम, जारी हुआ हाई अलर्ट

कॉर्बेट नेशनल पार्क का जंगल देश में बाघों के सबसे सुरक्षित ठिकानों में एक है। लेकिन मानसून काल में विषम परिस्थितियों के बीच यहां जंगल की निगरानी करना काफी मुश्किल होता है और शिकारियों की घुसपैठ का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में जरूरत पड़ती है आशा और अलबेली जैसी एक्सपर्ट हथनियों और हाथियों की टीम की। हाथी उन जगहों तक पहुंचते हैं जहां पहुंचना कॉर्बेट के कुशल कर्मचारियों के बस की बात भी नहीं है। बीते दिनों एनटीसीए से आए हाई अलर्ट के बाद इस बार हाथियों की जिम्मेदारी बढ़ गई है।  

अलबेली की टीम में 12 सदस्य
आशा और अलबेली की टीम में शिवगंगे, कंचम्भा, कपिला, गंगा और गजराज समेत कुल 12 सदस्य हैं। यूं तो हाथियों की ये टीम सालभर आराम करती है लेकिन इन दिनों कॉर्बेट की छह रेंजों में जंगल के राजा की सुरक्षा की कमान इनके हाथों में है। शिकारियों पर नजर रखने के लिए सभी हाथी कर्मचारियों को पीठ पर लादकर करीब 180 से 200 किमी तक गश्त कर रहे हैं।

दरिया गिरोह लगा चुका है पार्क में सेंध
कॉर्बेट प्रबंधन के मुताबिक बरसात के मौसम में पार्क के जंगल में गश्त का मतलब कदम-कदम पर खतरों से रूबरू होना है। इसी का फायदा उठाने की फिराक में शिकारी रहते हैं। 2012 में दरिया गिरोह ने पार्क में घुसकर एक बाघ को मार भी दिया था। एसओजी प्रभारी संजय पांडे बताते हैं कि कर्मचारियों की सतर्कता के चलते गिरोह को पकड़ लिया गया था। इसके बाद पार्क के संवेदनशील इलाकों में भी हाथियों से गश्त शुरू कराई गई।

इस साल बढ़ी जिम्मेदारी
बीते सालों तक अधिकांश समय सीमावर्ती इलाकों की सुरक्षा में लगे हाथियों को इस बार कॉर्बेट की सभी छह रेंजों में गश्त की जिम्मेदारी दी गई है। हाथियों की टीम भी कर्मचारियों के कदम से कदम मिलाकर गश्त कर रही है।

जहां नहीं पहुंचते कर्मचारी वहां पहुंचते हैं हाथी
रेंजर बिंदरपाल सिंह ने बताया कि कॉर्बेट पार्क करीब 1 हजार 318 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। यहां 250 से ज्यादा बाघ हैं। पार्क के भीतर कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां बरसात के मौसम में इंसानों का पहुंचना आसान नहीं होता। ऐसे में हाथियों की मदद लेनी पड़ती है। घने जंगल और नदियां हाथियों पर बैठकर ही पार किए जा सकते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक इन्हीं रास्तों से शिकारियों के पार्क में घुसने का खतरा ज्यादा रहता है। 

यूपी से सटा 50 किमी का क्षेत्र अतिसंवेदनशील
कॉर्बेट की यूपी से सटी 50 किमी की सीमा अतिसंवेदनशील है। यहां से ही बावरिया गिरोह का सरगना भीमा समेत कई संदिग्ध लोग कॉर्बेट में घुसपैठ करते हुए दबोचे जो चुके हैं। यूपी से सटी सीमाओं पर भी हाथी की गश्त काफी कारगर है।

625 किमी गश्त कर रहे कर्मी
पार्क के डायरेक्टर डॉ. धीरज पांडेय ने बताया कि हाथियों के साथ कर्मचारी पार्क में विभिन्न जगहों पर गश्त कर रहे हैं। छह रेंजों में छह सौ से ज्यादा कर्मचारी रोज करीब 625 किमी चलकर जंगल की निगरानी कर रहे हैं। इस तरह हाथियों और कर्मचारियों से रोजाना करीब 800 किमी में गश्त कराई जा रही है।
 
पार्क में हाई अलर्ट 
कॉर्बेट नेशनल पार्क रामनगर नैनीताल के वार्डन अमित ग्वासीकोटि ने कहा- कॉर्बेट पार्क की सुरक्षा को देखते हुए हाथियों से गश्त कराई जा रही है। यूपी से सटी जगहों पर ड्रोन, डेली गश्त, संयुक्त गश्त आदि से नजर रखी जा रही है। पार्क में हाई अलर्ट किया गया है।

बढ़ाई गई हाथियों की जिम्मेदारी 
कॉर्बेट निदेशक डॉ. धीरज पांडेय ने कहा- हाई अलर्ट के बीच कर्मचारियों के साथ ही गश्त करने वाले हाथियों की भी जिम्मेदारी बढ़ाई गई है। खासकर पानी वाली जगह, घने जंगल, नदियों को पार करने लिए हाथियों का सहारा लिया जा रहा है। कौन सा हाथी कहां गश्त करेगा, इसके लिए रोजाना चार्ट भी बनाया जा रहा है।

अलबेली की मां ने भी कॉर्बेट में सेवा की
कॉर्बेट बाघ बचाओ समिति के अध्यक्ष मदन जोशी बताते हैं कि अलबेली, पवन परी की बेटी है। पवन परी ने भी काफी साल तक कॉर्बेट की सेवा की। उसकी कुछ साल पहले मौत हो गई थी। अब बेटी अलबेली भी कॉर्बेट के बड़े अभियानों में शामिल होती है। कई साल से साथ रह रहीं आशा और अलबेली में अटूट मित्रता है। दोनों एकसाथ ही रहती हैं और महावत के एक इशारे पर ही काम शुरू देती है। दोनों स्थानीय होने की वजह से जंगल से भली भांति परिचित हैं। जबकि कर्नाटक से लाए गए अन्य हाथियों को करीब एक साल तक प्रशिक्षण दिया गया। उन्हें हिंदी बोलने वालों के इशारे पर काम करना सिखाया गया है। इसके लिए कर्नाटक से ही महावत बुलाये गए थे।

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