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साढ़े चार साल में कई तरह से बदला उत्तराखंड विधानसभा का स्वरूप 

उत्तराखंड की चौथी निर्वाचित विधानसभा का अंतिम सत्र शनिवार को समाप्त हो गया है। विधायक अब सत्ता के गलियारों से जन के बीच नया जनादेश लेने के लिए कूच करने वाले हैं। इसी के साथ मौजूदा विधानसभा की बहस अब...

साढ़े चार साल में कई तरह से बदला उत्तराखंड विधानसभा का स्वरूप 
देहरादून। संजीव कंडवाल Sun, 12 Dec 2021 10:52 AM

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उत्तराखंड की चौथी निर्वाचित विधानसभा का अंतिम सत्र शनिवार को समाप्त हो गया है। विधायक अब सत्ता के गलियारों से जन के बीच नया जनादेश लेने के लिए कूच करने वाले हैं। इसी के साथ मौजूदा विधानसभा की बहस अब इतिहास के पन्नों में दर्ज होने को है। देखा जाए तो मार्च 2017 में गठन के समय से अब अवसान तक सदन का चेहरा मोहरा काफी हद तक बदल चुका है।   

मार्च 2017 में सदन गठित होने के समय भाजपा को विधानसभा में दो तिहाई से अधिक बहुमत मिला था। तब त्रिवेंद्र रावत नेता सदन निर्वाचित हुए। चार साल तक पूरे स्थायित्व के साथ सरकार चलाने वाली भाजपा ने अंतिम साल में दो- दो बार सीएम की कुर्सी बदल डाली।  इसी साल मार्च में पहले त्रिवेंद्र की जगह तीरथ रावत को कमान सौंपी गई। लेकिन जुलाई में फिर तीरथ को भी बदलते हुए कमान पुष्कर सिंह धामी को सौँप दी गई।

इस तरह वर्तमान विधानसभा तीन- तीन बार नेता सदन से परिचित हुई। मौजूदा विधानसभा में नेता विपक्ष का भी चेहरा बदला। इसी साल जून में कांग्रेस नेता इंदिरा हृदयेश का निधन होने से कांग्रेस ने प्रीतम सिंह को नेता विपक्ष की जिम्मेदारी दी। इस विधानसभा ने कोविड का संकट भी देखा, इस कारण विधानसभा के दो सत्र में विधायकों को ऑनलाइन उपस्थिति का मौका दिया गया।

यह पहली बार हुआ कि विधायकों ने ऑनलाइन माध्यम से सत्र की कार्रवाई में भाग लिया। मौजूदा विधानसभा के दौरान साल 2018 में पहली बार गैरसैंण में बजट सत्र आयोजित किया गया, इसके बाद 2020 में बजट सत्र के दौरान तत्कालीन सीएम त्रिवेंद्र रावत ने गैरसैंण को अधिकारिक रूप से ग्रीष्मकालीन राजधानी का दर्जा देने का ऐलान किया। 

छूटा साथ  
2017 में निर्वाचित विधायक मगल लाल शाह, प्रकाश पंत, सुरेंद्र सिंह जीना, गोपाल सिंह रावत, इंदिरा हृदयेश का अलग - अलग समय में निधन हुआ। जो किसी एक कार्यकाल में सर्वाधिक संख्या है। 

इधर से उधर 
यशपाल आर्य, संजीव आर्य कांगेस में गए तो कांग्रेस से राजकुमार भाजपा में आए हालांकि तीनों अब विधानसभा से इस्तीफा दे चुके हैं। निर्दलीय प्रीतम पंवार, राम सिंह कैडा भी भाजपा में आए।

लेट एंट्री 
चौथी विधानसभा में थराली, पिथौरागढ़, सल्ट के लिए उपचुनाव हुआ। यहां से क्रमश: मुन्नी देवी शाह, चंद्रा पंत और महेश जीना निर्वाचित हुए। 

खाली सीटें रह गईं
विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने तक सदन में गंगोत्री और हल्द्वानी विधानसभा सीट रिक्त ही रह गई। गंगोत्री में एक बार तत्कालीन सीएम तीरथ रावत के उपचुनाव लड़ने के कयास लगते रहे।

सबसे कम कार्यकाल का रिकॉर्ड
महज 114 दिन के लिए सीएम बने तीरथ रावत का नाम सदन का सामना न कर पाने वाले एक मात्र सीएम के तौर पर रिकॉर्ड में दर्ज हुआ। राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा ही रिकॉर्ड पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह का भी रहा।  

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