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उत्तर भारत की नदियों-नहरों का जल स्तर होगा औसत से ज्यादा

उत्तराखंड में मौजूद ग्लेशियरों में, खासकर गोमुख ग्लेशियर में इस बार हिमपात ने 16 साल का रिकॉर्ड तोड़ा है। गोमुख ग्लेशियर में लगभग 15 फीट बर्फ पड़ी है। इसी से उम्मीद की जा रही है कि अन्य ग्लेशियरों में...

उत्तर भारत की नदियों-नहरों का जल स्तर होगा औसत से ज्यादा
मनमीत,देहरादून,Fri, 01 Feb 2019 11:55 AM
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उत्तराखंड में मौजूद ग्लेशियरों में, खासकर गोमुख ग्लेशियर में इस बार हिमपात ने 16 साल का रिकॉर्ड तोड़ा है। गोमुख ग्लेशियर में लगभग 15 फीट बर्फ पड़ी है। इसी से उम्मीद की जा रही है कि अन्य ग्लेशियरों में भी दस फीट से ज्यादा हिमपात हुआ होगा। सन् 2002 में आखिरी में गोमुख ग्लेशियर में दस फीट से ज्यादा हिमपात हुआ था। अमूमन, हर मौसम में ग्लेशियरों में औसत पांच से सात फीट बर्फ गिरती है। रिकॉर्ड बर्फ गिरने का फायदा पूरे उत्तरी भारत को होगा। इस बार सिंचाई, बांधों और तमाम जल श्रोतों को पानी भरपूर मिलेगा।

ग्लोबल वार्मिंग का खामियाजा हिमालय के तमाम ग्लेशियर भी भुगत रहे थे। पिछले कुछ सालों में कम बर्फबारी से जहां ग्लेशियर में 'स्नो लेयर' कम होती जा रही थी, वहीं प्रदूषण के चलते ग्लेशियर 'ब्लेक कार्बन' से भी पिघल रहे थे। लेकिन, इस बार जनवरी में हिमपात ने पिछली सारी भरपाई पूरी कर दी।

वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान के वरिष्ठ ग्लेशियर वैज्ञानिक डा.डीपी डोभाल ने बताया कि गोमुख ग्लेशियर में इस बार 15 फीट तक बर्फ पड़ी है। ये अभी सूचनाओं के आधार पर मिले आंकड़े हैं। अभी एक टीम जल्द ही ग्लेशियरों के दौरे पर जाएगी। औसतन हर साल जनवरी में पांच से सात फीट तक हिमपात होता है। इस बार बहुत अच्छा हिमपात हुआ है। जिसके दूरगामी फायदे होंगे।

केदारनाथ में आठ फीट बर्फ
केदारनाथ में भी इस बार आठ फीट तक हिमपात हुआ है। हालांकि ये रिकॉर्ड नहीं है। क्योंकि 2014 में भी केदारनाथ में लगभग आठ फीट बर्फ पड़ी थी। गंगोत्री, यमुनोत्री और बद्रीनाथ में भी इस बार लगभग पांच फीट तक हिमपात हुआ है।

ग्लेशियरों के रिचार्ज होने के फायदे
उत्तरी भारत की लाइफ लाइन गंगा और यमुना है। इन दोनों नदियों में लगभग दस सहायक नदियां मिलती हैं। गंगा, यमुना, भिलंगना, अलकनंदा, पिंडर, सरयू, कोशी, राम गंगा, शारदा आदि सभी ग्लेशियर से निकली नदी हैं। अच्छा हिमपात होने से गर्मियों में इन नदियों में औसत से ज्यादा जलस्तर रह सकता है। जिसका फायदा, सिंचाई नहरों, बांध, जलवायु और पेयजल सप्लाई को होगा। इसके साथ ही महान हिमालय की जैव विविधता के लिये भी ये दूरगामी फायदेमंद होगा।

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