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लिखने की कला भूलते जा रहे स्कूली बच्चे, मोबाइल-कंप्यूटर के अत्यधिक इस्तेमाल पर एक्सपर्ट को इस बात की चिंता

लैपटाप पर भी वर्ड डॉक्यूमेंट्स में काम करते समय बच्चे बोलकर ही लिख रहे हैं। लिखने का प्रयास और अभ्यास धीरे-धीरे कम व बिल्कुल बंद होने से लिखने की कला में हमारे बच्चे पिछड़ रहे हैं। 

लिखने की कला भूलते जा रहे स्कूली बच्चे, मोबाइल-कंप्यूटर के अत्यधिक इस्तेमाल पर एक्सपर्ट को इस बात की चिंता
Himanshu Kumar Lallदेहरादून। शैलेन्द्र सेमवालTue, 21 Nov 2023 09:42 AM
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मोबाइल, कम्प्यूटर और ऑनलाइन दुनिया में अधिक वक्त बिता रहे बच्चे लिखने की कला भूलते जा रहे हैं। इसकी वजह व्हाट्सएप, यू-ट्यूब, गूगल में वाइस रिकॉगनाइजेशन सिस्टम का बढ़ता प्रयोग है। यानी बच्चे टाइप करने के बजाय बोलकर काम कर रहे हैं।

लैपटाप पर भी वर्ड डॉक्यूमेंट्स में काम करते समय बच्चे बोलकर ही लिख रहे हैं। लिखने का प्रयास और अभ्यास धीरे-धीरे कम व बिल्कुल बंद होने से लिखने की कला में हमारे बच्चे पिछड़ रहे हैं। राइटिंग स्किल को विशेषज्ञ फाइन मोटर स्किल में से एक मानते हैं। यानी बच्चों का उछल-कूद करना, दौड़ना, भागना, हाथ-पांव चलाना ग्रोथ मॉडल स्किल में आता है, इससे शरीर का विकास होता है।

जबकि बारीक काम करने में रंग भरना, सूइयां चलाना, पेंसिल चलाना उंगलियों का काम है, यह फाइन मोटर स्किल में आता है। बाल संरक्षण आयोग की मनोवैज्ञानिक निशांत इकबाल का मानना है कि हम जो पढ़ते हैं।

वही हमारे दिमाग में जाता है और उसी की अमिट छाप हमारे मनमस्तिष्क पर रहती है। राइटिंग स्किल की एक खासियत यह भी है कि यह लर्निंग डिसेबिलिटी में आता है, जिसे हम डिस्ग्रफिया भी कहते हैं। यह समस्या 42 से 43बच्चों तक पहुंच चुकी है।

कोविड ने बढ़ाई चुनौती
कोविड के बाद ऑनलाइन माध्यमों के बढ़े इस्तेमाल से राइटिंग स्किल की समस्या अधिक देखी जा रही है। कोविड काल में प्राइमरी के बच्चों की ग्रोथ काफी प्रभावित हुई। हमने बच्चों को मोबाइल तो थमा दिया मगर अब वह छूटते नहीं बन रहा। न सिर्फ वह लेखन कला भूले, बल्कि उनका व्यवहार भी अधिक आक्रामक हुआ है।

ऐसे बच्चों पर दें विशेष ध्यान
मनोवैज्ञानिक निशांत इकबाल का कहना है कि कोविड के समय कक्षा एक, दो, तीन, चार और पांच में पढ़ने वाले सभी बच्चों पर इस समय पूरा ध्यान देने की जरूरत है। कई बच्चे ऐसे हैं जो अंदरूनी स्तर पर इस समस्या का सामना कर रहे हैं। ऐसे में शिक्षक और उससे बढ़कर अभिभावकों की ये जिम्मेदारी है कि वह ऐसे बच्चों को ज्यादा समय दें।

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