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लॉकडाउन-3: हजारों लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट हो गया पैदा, जानें जिलों का हाल   

लॉकडाउन का तीसरा चरण शुरू हो गया है। इस बीच उत्तराखंड में हजारों की संख्या में प्रवासी लोग वापस अपने गांव लौट आए हैं,  इनके सामने अब आजीविका का संकट है। साथ ही राज्य के भीतर पहले से  रह रहे...

लॉकडाउन-3: हजारों लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट हो गया पैदा, जानें जिलों का हाल   
हिन्दुस्तान टीम, देहरादूनWed, 06 May 2020 12:55 PM
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लॉकडाउन का तीसरा चरण शुरू हो गया है। इस बीच उत्तराखंड में हजारों की संख्या में प्रवासी लोग वापस अपने गांव लौट आए हैं,  इनके सामने अब आजीविका का संकट है। साथ ही राज्य के भीतर पहले से  रह रहे मजदूर भी बीते करीब डेढ़ महीने से खाली बैठे हैं।  इन सभी के सामने अब रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। पेश है ‘हिन्दुस्तान’ की रिपोर्ट :

 

देहरादून: अब नहीं झेल सकते शर्मिंदगी, घर भिजवा दो 
शाहजहांपुर यूपी के रमाकांत देहरादून के गांधी ग्राम में किराए पर रहते हैं। फिलहाल लोगों की मदद से लॉकडाउन के बावजूद परिवार पल गया, लेकिन कहते है कि इस तरह हाथ फैलाने में बहुत शर्मिंदगी होती है।

सरकार से गुहार है कि अब उन्हें घर भिजवा दें। टर्नर रोड पर रहने वाले पेंटर समीर डेढ माह से खाली हैं, कहते हैं कि लॉकडाउन खुले तो कुछ काम मिले। यहीं रहने वाले वाहन चालक अयूब कहते है कि यहां रोजगार के सिलसिले में आए थे। अब यहां फंसकर रह गये। ना रोजगार मिला, किराया भी नहीं दे पा रहे।

माजरा के नौशाद नाई की दुकान चलाते है, परिवार का गुजारा मुश्किल हो गया है। जाखन निवासी मो. शारिक नाई की दुकान चलाते है, मदद से काम चल रहा है। पिता की दवाई नहीं ला पा रहे।

 

अल्मोड़ा: अभी फंसे हैं बिहार-नेपाल के कामगार 
जिले से अब तक यूपी के 543 मजदूरों को उनके घर भेजा जा चुका है। अब भी यहां बिहार के करीब 800 और नेपाल के करीब दो हजार श्रमिक फंसे हैं। नोडल अधिकारी एसके उपाध्याय ने बताया कि किराये के कमरों में रह रहे बिहार के मजदूर बिहार सरकार के आदेश का इंतजार कर रहे हैं।

करीब छह साल से जिले में काम कर रहे नेपाल के मजदूर घर जाना चाहते हैं लेकिन बॉर्डर सील होने के चलते उन्हें दिक्कत हो रही है। अल्मोड़ा में फंसे अधिकांश कामगारों का कहना है कि अगर सरकार उचित व्यवस्था नहीं करती है, तो वे पैदल ही घर जाएंगे। 


पौड़ी : काम-धंधे को लेकर पूछी जा रही प्रवासियों की राय
पौड़ी में बाहर से करीब 13 हजार प्रवासियों की आमद हुई है। प्रवासियों की भविष्य की योजना को लेकर जिला प्रशासन ने उन्ही से फीडबैक लेना प्रारंभ किया है। इसके लिए जिलाधिकारी ने कंट्रोल रूम बनाया है। मसलन यदि कोई प्रवासी बागवानी में काम करना चाहता है तो उसे उद्यान महकमा मदद करेगा, कृषि , डेयरी और होम स्टे आदि स्वरोजगार के इच्छुक़ है तो संबंधित महकमों से सम्पर्क कराया जाएगा।

नोडल अधिकारी और डीपीआरओ पौड़ी एमएम खान ने बताया है कि कुछ लोग वापस जाना चाहते हैं, जबकि नैनीडांडा में दुबई से लौटे दो प्रवासियों ने यहीं रहकर स्वरोजगार की इच्छा जाहिर की है। 

 

चमोली : बहन की शादी के लिए कमाई रकम भी नहीं मिली 
लॉकडाउन के तीसरे चरण के शुरुआत में ही 1381 प्रवासी अपने गांवों में लौट आए हैं । जिले के निवासी देवेन्द्र सिंह, भानुप्रकाश, सत्येन्द्र सिंह कहते हैं कि एक महीने से काम नहीं मिला, घर आने के लिए भी कर्जा लेना पड़ा। गुड़म के यशवन्त सिंह कहते हैं बहन की शादी है, पर मालिक ने कमाई गई आधी रकम ही लौटाई है।

सुतोल के दीवान सिंह कहते हैं अब घर पर खाली हाथ जाने में शर्म महसूस होती है। चारधाम यात्रा चलती तो गोविन्दघाट से हेमकुंड या केदारनाथ खच्चर ले जाता। पर अब यह विकल्प भी नहीं है। इधर प्रशासन गांव लौटे ऐसे बेरोजगार लोगों की सूची बना रहा है। 

 

चम्पावत: स्वरोजगार योजनाएं चलाए सरकार
जिले में अब तक 250 से अधिक लोगों की घर वापसी हो चुकी है। एडीएम टीएस मर्तोलिया बताते हैं कि अधिकतर को संस्थागत क्वारंटाइन के बाद घर भेज दिया गया है। तल्लादेश निवासी दान सिंह ने बताया कि लॉकडाउन के चलते युवाओं का रोजगार खत्म हो गया है।

क्षेत्र के लगभग 80 फीसदी युवा दूसरे राज्यों में होटल इंडस्ट्री अथवा निजी कंपनियों में कार्य करते थे। अब उन्हें दोबारा काम मिलने के आसार कम हैं। सरकार को अब गांवों में ही स्वरोजगार योजनाएं चलानी चाहिए, ताकि उन्हें फिर से बाहर जाने को विवश न होना पड़े।

 

टिहरी : काम नहीं तो घर वापस भेज दो 
जनपद में लगभग साढ़े आठ हजार मजदूर बाहरी प्रदेशों के हैं। जिनमें से अधिकांश चंबा सुरंग, चारधाम प्राजेक्ट और रेलवे लाइन निर्माण के कार्य में लगे हुए हैं। इसके अलावा साढ़े तीन मजदूर काम न होने से खाली बैठे हैं। इनका काम अब तक बांटी गई राशन किट और उधार के भरोसे चल गया।

लेकिन अब सभी लोग अपने घर भेजे जाने की मांग कर रहे हैं। मजदूर सरकार से घर भिजवाने या राशन उपलब्ध कराने को कह रहे हैं। नेपाली प्रीत बहादूर और मन बहादूर का कहना है कि काम के बिना उनका गुजारा नहीं है, अब घर वापस जाना ही एक मात्र विकल्प है।


बागेश्वर: बाहर से लौटे कामगार अपने खेतों में जुटे
जिले में लौटे 3800 से ज्यादा प्रवासी कामगार तो फिलहाल अपने गांवों में गेहूं का कटाई और मढ़ाई के काम में जुटे हैं। उनकी उम्मीदें सरकार पर टिकी हैं कि जल्दी की हालात सामान्य हों, तो वे अपने काम पर लौट सकेंगे। जिले की खड़िया खानों में करीब 3700 बाहरी मजदूरों को काम मिल रहा है। बिहार-यूपी के 2300 से ज्यादा मजदूर यहां से अपने घर जाने के इच्छुक हैं।

पिछले दिनों गरुड़ में दो लोगों के सामने अपने बच्चों और पप्पू तैराक के सामने इलाज की समस्या आई थी। जिसे जिला पंचायत उपाध्यक्ष नवीन परिहार और एसपी रचिता जुयाल की पहल पर मदद मिल गई। एसडीएम राकेश चंद्र तिवारी ने बताया कि वापसी के लिए मजदूरों के पास बनाने की प्रक्रिया चल रही है।

 

पिथौरागढ़: जमा पूंजी से चल रही गृहस्थी की गाड़ी
जिले में अब तक लगभग 450 से अधिक प्रवासी कामगार लौटे हैं। क्वारंटाइन अवधि पूरी कर घर लौटे गोवा के होटल में काम करने वाले वल्थी गांव के रमेश और दुबई से लौटे मल्ला घोरपट्टा के देवेंद्र ने कहा फिलहाल मामूली जमा पूंजी से गृहस्थी की गाड़ी चल रही है।

लेकिन हालात यही रहे तो आगे रोजगार का संकट गहरा सकता है। ये दोनों कहते हैं कि सरकार को ग्रामीण स्तर पर रोजगार के अवसर बढ़ाकर पलायन को रोकने के प्रयास करने चाहिए। इससे बेरोजगारों को रोजगार के लिए भटकना नहीं पड़ेगा।


नैनीताल: वापस लौटे 500 से अधिक प्रवासी बेरोजगार
जनपद में बीते तीन दिनों में 500 से अधिक प्रवासी कामगार अपने घर लौटे हैं। इन लोगों को ं होम क्वारंटाइन में रखा है। घर वापसी के बाद इनके सामने आजीविका का संकट है। मुक्तेश्वर के गोपाल सिंह बताते हैं हाथरस के एक होटल में काम कर रहे थे जहां से मार्च का वेतन मिला लेकिन आगे गुजारा कैसे होगा?

कहते हैं कि सरकार को मदद करनी चाहिए। दमुवाढूंगा के मनोज ने बताया कि डेढ़ माह की बेरोजगारी में कमाई खर्च हो चुकी है। खाली जेब घर लौटे हैं। बीमार मां-पिता के इलाज तक के लिए पैसा नहीं है।

 

यूएस नगर: सरकारी राशन से कर रहे हैं गुजारा
जिले में बाहरी प्रदेशों से अब तक करीब 636 कामगार लौटे हैं। नोडल अधिकारी एएसपी डॉ.जगदीश चंद्र ने बताते हैं कि इन लोगों में से ज्यादातर को राहत शिविर में या होम क्वारंटाइन किया गया हैं। काशीपुर में कुछ मजदूर सरकारी राशन से गुजारा कर रहे हैं। प्रवासी कामगार अब उत्तराखंड में ही काम करना चाहते हैं।

तुरंत काम न मिलने पर आगे की दिक्कतों को लेकर चिंतित हैं। बाहरी प्रदेशों से आए अधिकतर कामगारों ने बताया कि फिलहाल सरकारी राशन के अलावा मामूली जमा पूंजी का ही सहारा है।

 

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