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ईमान की मजबूती और मगफिरत का जरिया ‘माह-ए-रमजान’

मजान की आमद होते ही रूहानी नूर से फिजाएं रोशन हो गई। मस्जिदों में मोमीनों की बड़ी संख्या में इजाफा होने से गुलजार हो गई है। मुस्लिम बहुल इलाकों में मस्जिदों एवं घरों में दुआओं में उठते हाथ और मोमीनों...

ईमान की मजबूती और मगफिरत का जरिया ‘माह-ए-रमजान’
लाइव हिन्दुस्तान, देहरादून। चांद मोहम्मद Tue, 07 May 2019 11:47 AM
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मजान की आमद होते ही रूहानी नूर से फिजाएं रोशन हो गई। मस्जिदों में मोमीनों की बड़ी संख्या में इजाफा होने से गुलजार हो गई है। मुस्लिम बहुल इलाकों में मस्जिदों एवं घरों में दुआओं में उठते हाथ और मोमीनों के लबों पर अल्लाह-अल्लाह की सदाओं की गूंज सुनाई देने लगी हैं। हर कोई अपने गुनाहों की तौबा कर अल्लाह से पनाह चाह रहा है। उलमा का कहना है कि इस पाक माह में दोजख (नरक) के दरवाजे बंद कर कर जन्नत (स्वर्ग) के दरवाजे खोल दिए जाते हैं। सोमवार को चांद का दीदार होने पर रात में तरावीह का दौर शुरू हो गया। मंगलवार को मोमीनों ने पहला रोजा रखा। शहर काजी मोहम्मद अहमद कासमी और शहर मुफ्ती सलीम अहमद कासमी कहते है कि रमजान इंसान को अपने अंदर झांकने और खुद को अल्लाह की राह पर ले जाने की प्रेरणा देता है। इंसान के भूख-प्यास और तमाम शारीरिक इच्छाओं तथा झूठ बोलने, चुगली करने, खुदगर्जी, बुरी नजर डालने जैसी सभी बुराइयों को छोड़ने से रोजेदार अल्लाह के बेहद करीब पहुंच जाता है। अल्लाह अपने उस इबादत गुजार रोजेदार बंदे को अपनी अपनी रहमतों और बरकतों से नवाजता है। 


तीन अशरों में बांटा गया है रमजान : नायब शहर काजी सुन्नी सैय्यद अशरफ हुसैन कादरी ने बताया कि रमजान माह को तीन अशरों (खंडों) में बांटा गया है। पहला अशरा ‘रहमत’ का है। इसमें अल्लाह अपने बंदों पर रहमत की दौलत लुटाता है। दूसरा अशरा ‘बरकत’ का है जिसमें खुदा बरकत नाजिल करता है जबकि तीसरा अशरा ‘मगफिरत’ का है। इस अशरे में अल्लाह अपने बंदों को गुनाहों से पाक कर देता है। बताया कि हर बालिग मर्द-औरत मुसलिम के लिए रोजा फर्ज है, जिसे उसे पूरा करना ही है। बीमार, बच्चों और बुजुर्ग को अल्लाह की माफी मिल सकती है। 

वह बातें जिन से रोजा मकरूह नहीं होता
भूल-चूक से खा-पी लेने से, मिस्वाक करने से, गर्मी कि शिद्दत में सर पर पानी बहाने (नहाने) से, माजी ख़ारिज होने या एह्तेलाम होने से, सर में तेल डालने, कंघी करने या आंखों में सुरमा लगाने से, हंडिया का जाये चखने से, मक्खी हलक में चले जाने या उसे बाहर निकलने से थूक निगलने से, नाक में दवा डालने से, खुद ब खुद कै (उल्टी) आने से। 

ऐसे करें गर्मी से बचाव
मोमिनों को मई और जून माह की चिलचिलाती गर्मी में शिद्दत के साथ रोजे रखने होंगे। रमजान माह में 29 रोजे 15 घंटे से अधिक के होंगे। गांधी अस्पताल के वरिष्ठ फिजीशियन डा. प्रवीण पंवार के मुताबिक गर्मी से बचाव के लिए अनावश्यक धूप में जाने से बचे, अगर जाए तो सिर पर तौलिया रखें, सहरी और अफ्तार में तरल पदार्थ ले, चिकनाई की चीजे न खाए।

पांच बुनियादों में शामिल है रोजा 
शहर काजी मौलाना मोहम्मद अहमद कासमी बताते हैं कि इस्लाम की पांच बुनियादों में रोजा भी शामिल है। इस पर अमल के लिए ही अल्लाह ने रमजान का महीना मुकर्रर किया है। खुद अल्लाह ने कुरान शरीफ में इस महीने का जिक्र किया है। रमजान में की गई हर नेकी का सवाब कई गुना बढ़ जाता है। 
 

 

 

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