शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे ने कहा कि प्राइवेट स्कूलों की मनमानी को रोकने के लिए सरकार प्रवेश एवं फीस नियंत्रण ऐक्ट लाने को प्रतिबद्ध हैं। सोमवार को विधान सभा स्थित अपने दफ्तर में प्राइवेट स्कूल संचालकों के साथ हुई अहम बैठक में शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे ने सरकार का रुख साफ किया। प्राइवेट स्कूलों की ओर से ऐक्ट के विरोध पर उन्होंने कहा कि ऐक्ट किसी को परेशान या खुश करने के लिए नहीं बनाया जा रहा है। अभी ऐक्ट का ड्राफ्ट तैयार किया गया है। हर स्कूल में उपलब्ध सुविधा-संसाधनों के अनुसार सर्वसम्मति से ही फीस तय की जाएगी। भाजपा नेता पुनीत मित्तल के नेतृत्व में मिले प्रतिनिधिमंडल ने शिक्षा मंत्री को ज्ञापन दिया। राज्य अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष डॉ. आरके जैन भी उनके साथ थे। एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रेम कश्यप ने कहा कि दक्षिण भारत के राज्यों ने ऐक्ट लागू किया था, वहां शिक्षा की गुणवत्ता गिरती चली गई। इस कानून के लागू से राज्य में क़ुख्यात इंस्पेक्टर राज की वापसी होने की पूरी संभावना है। शिक्षा मंत्री ने एसोसिएशन के प्रतिनिधिमंडल को आश्वस्त किया कि ऐक्ट से किसी के हित प्रभावित नहीं होंगे। प्राइवेट स्कूल संचालकों के प्रतिनिधिमंडल में रमेश बत्ता, राकेश ओबराय, डीएस मान,अमरजीत, अनुराग जदली,गीता खन्ना शामिल रहे।
प्रवेश एवं फीस नियंत्रण एक्ट राज्य और स्कूलों के हित में भी है। प्रतिष्ठित स्कूलों के नाम पर कई छोटे स्कूल मनमानी कर रहे हैं। सरकार का उद्देश्य इस अराजकता को रोकना है। शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के हर प्रयास में सरकार प्राइवेट स्कूलों का साथ देगी
अरविंद पांडे, शिक्षा मंत्री
हमने अपनी बात सरकार के समक्ष रख दी है। मुख्यमंत्री जी, मुख्य सचिव के संज्ञान में भी लाया जाएगा। फीस एक्ट लागू होना शिक्षा के हित में नहीं है। यदि जबरन थोपा जाता है तो एसोसिएशन भी शिक्षा गुणवत्ता की रक्षा के लिए हर संभव प्रयास करेगी।
प्रेम कश्यप, अध्यक्ष, प्रिंसिपल प्रोग्रेसिव स्कूल एसोसिएशन
मंत्री जी, फीस ऐक्ट रहने ही दीजिए
प्रवेश एवं फीस नियंत्रण एक्ट को लेकर प्राइवेट स्कूल संचालकों ने सोमवार को खुलकर शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे के सामने मन की बात रखी। शिक्षा मंत्री के कार्यालय में दोपहर सवा एक से पौने दो बजे तक चली अहम
शिक्षा मंत्री: ऐक्ट परेशान करने या किसी को लाभ पहुंचाने के लिए नहीं है। जो शिक्षा को कारोबार बना रहे है, केवल उन्हीं को नियंत्रित करना चाहते हैं।
प्रेम कश्यप: जब भी सरकार किसी चीज पर नियंत्रण के लिए व्यवस्था करती है, उसे फायदा नहीं होता। नए नियम लागू हो रहे हैं। बार-बार मान्यता लेनी पड़ती है। अफसर चक्कर कटवाते हैं। किसी से पांच लाख मिल गए, एक लाख मिल गए तो ठीक, जिसने नहीं दिए उसकी फाइल बंद। बंदिशें इतनी बढ़ाई जा रही है कि क्यों बाहर आकर कोई यहां पैसा निवेश करेगा? यह ऐक्ट उत्तराखंड के लिए अच्छा नहीं होगा। प्राइवेट स्कूल शिक्षक, अभिभावक और लाखों छात्रों के विनाश का रास्ता बनाया जा रहा है।
आरके जैन: मुझे लगता है कि सरकार और स्टेक होल्डर की एक कमेटी बनानी चाहिए। ये कमेटी सब कुछ रिव्यू कर लें। उसके बाद ही लागू किया जाए।
रमेश बत्ता: हमारे यहां जिन स्कूलों ने नाम कमाया है, क्या हम इसप्रकार की पॉलिसी लाकर उनकी भी टांग तो नहीं खींचना चाह रहे?
गीता खन्ना: हर किसी ने अपने घर के पोर्च में स्कूल खोल दिया है। न तो एनओसी है न कोई मान्यता। सबसे पहले इन सो-काल्ड नर्सरी स्कूलों को कसना होगा।
दोपहर 1: 45: बजे मंत्री मीटिंग से उठकर भीतरी कक्ष में चले गए हैं। गीता कहती हैं कि देखिए आए दिन अखबारों में खबर आती रहती है। लोग प्राइवेट स्कूलों को चोर मानते लगते हैं।