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‘शहर की सरकार’ में घट जाएगी इनकी हिस्सेदारी, उत्तराखंड सरकार को नगर निकाय चुनावों पर रिपोर्ट सौंपने की तैयारी

उत्तराखंड में आगामी नगर निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षित वार्डों की संख्या घट सकती है। ओबीसी आबादी की गणना वार्डवार किए जाने के कारण यह नौबत आ सकती है। उत्तराखंड सरकार को रिपोर्ट सौंपने की तैयारी है।

‘शहर की सरकार’ में घट जाएगी इनकी हिस्सेदारी, उत्तराखंड सरकार को नगर निकाय चुनावों पर रिपोर्ट सौंपने की तैयारी
Himanshu Kumar Lallदेहरादून, संजीव कंडवालSun, 19 Feb 2023 09:36 AM
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उत्तराखंड में आगामी नगर निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षित वार्डों की संख्या घट सकती है। ओबीसी आबादी की गणना वार्डवार किए जाने के कारण यह नौबत आ सकती है। एकल सदस्यीय आयोग अप्रैल अंत तक अपनी रिपोर्ट उत्तराखंड सरकार को सौंपने की तैयारी कर रहा है।प्रदेश में नवंबर माह के अंत तक नगर निकाय चुनाव प्रस्तावित हैं।

इसी क्रम में ओबीसी आरक्षण तय करने के लिए गठित एकल सदस्यीय वर्मा आयोग ने काम तेज कर दिया है। आयोग ने सभी निकायों से इस माह के अंत तक वार्डवार ओबीसी सर्वे और पिछली बार चुनाव लड़े ओबीसी प्रत्याशियों का विवरण तलब किया है। अब तक वार्डवार आरक्षण जिला प्रशासन तय करता था, इसमें पहाड़ के निकायों में ओबीसी आबादी कम होने के कारण ओबीसी के लिए निर्धारित 14 प्रतिशत कोटे को बड़े मैदानी जिलों में ही खपाया जाता था।

इस कारण यहां ओबीसी आरक्षित सीटों की संख्या जनसंख्या अनुपात में अधिक हो जाती थी। लेकिन अब आयोग प्रत्येक वार्ड में उपलब्ध आबादी के अनुसार ही ओबीसी आरक्षण का निर्धारण करेगा। इसी फार्मूले के तहत कुछ माह पूर्व हुए हरिद्वार पंचायत चुनाव में भी ओबीसी आरक्षित ग्राम प्रधानों की संख्या 171 से घटकर 69 रह गई, जबकि वहां ओबीसी को कुल आबादी के अनुसार 22 प्रतिशत आरक्षण दिया गया। आयोग सिर्फ आबादी के अनुपात में आरक्षण की सीमा बताएगा, आरक्षण का अंतिम निर्धारण वार्ड के मामले में जिला प्रशासन और नगर प्रमुख, मेयर के मामले में शासन करेगा।

कम प्रतिनिधित्व से होगा नुकसान
ओबीसी आयोग के अनुसार ज्यादातर ओबीसी जातियां ग्रामीण क्षेत्रों में निवासरत हैं, इस कारण निकायों में कम आबादी होने के कारण, समुदाय की हिस्सेदारी घट सकती है। ओबीसी की राजनैतिक हिस्सेदारी घटने से नया नेतृत्व उभरने की संभावनाएं कमजोर हो सकती हैं। साथ ही ओबीसी के मुद्दे उठाने की संभावनाएं कमजोर हो सकती हैं।

ओबीसी कोटा बढ़ाने की मांग
ओबीसी आयोग के पूर्व अध्यक्ष और देहरादून नगर निगम में कई बार पार्षद रहे अशोक वर्मा के मुताबिक, एकल सदस्यीय आयोग को ओबीसी आबादी के हितों का ध्यान रखना होगा। वर्मा के मुताबिक राज्य गठन के बाद कई समुदाय ओबीसी में शामिल हुए हैं। इस कारण ओबीसी आरक्षण की सीमा 14 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत किए जाने की मांग लंबे समय से की जा रही है। उनके समय वो खुद यह मांग शासन को भेज चुके हैं, लेकिन इस पर अमल नहीं हुआ। इसलिए मौजूदा आरक्षण सीमा बढ़ाने के बजाय इसमें किसी भी तरह की कमी ठीक नहीं है।

पहाड़ी इलाकों में बढ़ी है ओबीसी आबादी
उत्तराखंड में 14 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण 2001 की जनगणना के आधार पर निर्धारित हुआ है। तब मुख्य तौर पर मैदानी क्षेत्रों में ही ओबीसी आबादी थी, लेकिन बीते दो दशक में पहाड़ में भी कई समुदायों को ओबीसी का दर्जा दे दिया गया है। अब उत्तरकाशी, टिहरी के बड़े क्षेत्र को इसका लाभ मिल रहा है। लेकिन ओबीसी के लिए अब भी अधिकतम आरक्षण की सीमा 14 प्रतिशत ही तय है। राज्य में करीब 90 जातियां इसमें शामिल हैं।

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