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उत्तराखंड के पहाड़ों पर बारिश की कमी से बढ़ रहा पलायन, शोध में एक्सपर्ट को इस बात की चिंता

उत्तराखंड में पहाड़ों से बारिश की बेरुखी हर साल बढ़ रही है। इससे पहाड़ के सामाजिक और आर्थिक हालात भी प्रभावित हो रहे हैं। कुमाऊं विश्वविद्यालय के एक शोध में पता चलता है कि बदलते मौसम से भी फर्क पड़ा।

उत्तराखंड के पहाड़ों पर बारिश की कमी से बढ़ रहा पलायन, शोध में एक्सपर्ट को इस बात की चिंता
Himanshu Kumar Lallनैनीताल। नवीन पालीवालSun, 24 Sep 2023 12:19 PM
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उत्तराखंड में पहाड़ों से बारिश की बेरुखी हर साल बढ़ रही है। इससे पहाड़ के सामाजिक और आर्थिक हालात भी प्रभावित हो रहे हैं। कुमाऊं विश्वविद्यालय के एक शोध में पता चलता है कि बदलते मौसम चक्र के कारण लोग पहाड़ छोड़ने के लिए भी मजबूर हो रहे हैं।

शोध के दौरान सामने आए तथ्यों के अनुसार, पहाड़ों में कई स्थानों पर पिछले पांच दशकों में बारिश में औसतन 50 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई है। खेती-किसानी पर इसकी सबसे ज्यादा मार पड़ी है। जिससे लोग लगातार मैदानी क्षेत्रों को पलायन कर रहे हैं।

कुमाऊं विश्वविद्यालय के डीएसबी परिसर में भूगोल विभाग के प्राध्यापक प्रो.पीसी तिवारी और शोधकर्ता डॉ.केवलानंद ने अल्मोड़ा और नैनीताल जिले के बीच हिमालय के जल संसाधनों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव विषय पर शोध किया। शोध के अनुसार पिछले 50 वर्षों में बारिश के कुल 3 हजार 441 दिन रहे। जिसमें से एक हजार 956 दिन ऐसे रहे जिनमें औसत से 50 फीसदी तक कम बारिश हुई।

35 फीसदी से अधिक स्थानीय जलस्रोत सूखे
शोध के दौरान पाया कि जलवायु परिवर्तन के कारण 35 फीसदी से अधिक स्थानीय जलस्रोत सूख चुके हैं। इसके साथ ही बारिश से रीचार्ज होने वाले 30 फीसदी जलस्रोत अब मौसमी जलधाराओं में रीचार्ज हो रहे हैं। जल संसाधनों पर जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों से कृषि एवं कृषि से संबंधित कार्य भी बाधित हुए हैं।

यह हैं उपाय
शोधार्थी डॉ.केवलानंद के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने के लिए सामूहिक प्रयास की जरूरत है। इसके लिए सभी सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों को समन्वय से कदम उठाने होंगे। समुदाय के लोगों के परंपरागत ज्ञान को भी इसमें शामिल करना होगा। यहां कुजगाड़ नदी के उद्गम वाले क्षेत्रों में हॉर्टीकल्चर, चाय के बागान और औषधीय पौधे विकसित करने होंगे। जिससे एक ओर वन क्षेत्र बढ़ेगा और स्रोत रीचार्ज होंगे।

ऐसे हुआ पलायन्र
27 गांवों में शोध के दौरान पता चला कि 1993 और 2013 में तेज बारिश से नदी के तलहटी वाले क्षेत्रों में उपजाऊ जमीन बह गई। क्षेत्र के 270 परिवारों में से 70 प्रतिशत ने खेती छोड़ दी है। ऐसे में लोगों के सामने आजीविका में समस्या हुई और पलायन के लिए मजबूर हुए।

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