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मां ‘मायादेवी’ के मंदिर में सती ने त्यागे थे अपने प्राण

हरिद्वार की कुल देवी के रूप में पहचान रखने वाली मां मायादेवी के मंदिर में इन दिनों भक्तों का मेला लगा हुआ है। माया देवी मंदिर, देवी माया को समर्पित है। माया देवी मंदिर भारत के प्राचीन मंदिरों में से...

मां ‘मायादेवी’ के मंदिर में सती ने त्यागे थे अपने प्राण
लाइव हिन्दुस्तान,हरिद्वार। रविंद्र सिंह Thu, 18 Oct 2018 08:26 PM
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हरिद्वार की कुल देवी के रूप में पहचान रखने वाली मां मायादेवी के मंदिर में इन दिनों भक्तों का मेला लगा हुआ है। माया देवी मंदिर, देवी माया को समर्पित है। माया देवी मंदिर भारत के प्राचीन मंदिरों में से एक है। माया देवी को शाक्ति का एक रूप माना जाता है। मंदिर के पुजारी सेवा गिरी के मुताबिक ऐसा माना जाता है कि देवी सती ने उनके पिता दक्षेस्वर द्वारा किये यज्ञ में जब मां पहुंची थी तो वहां अपने पति शिव का अपमान होता देखा। उन्होंने अपने आप को यज्ञ कुण्ड से जलाने का प्रयास किया था, लेकिन अग्नि देव ने उनको अग्नि में नहीं समाया था।

उस वक्त मां सती मायादेवी मंदिर के स्थान पर पहुंची और यहां उन्होंने योग क्रिया के बल पर तपस्या कर अपने प्राण त्याग दिए थे, तब भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माणड में चक्कर लगा रहे थे। इसी दौरान देवी सती के शरीर का दिल और नाभि इस स्थान पर गिरे थे। बाद मे इस स्थान पर माया देवी का मंदिर बनाया गया था। मां माया देवी को शक्ति की देवी माना जाता है। जो भी यहां बैठकर आराधना करता है, उसे शक्ति का अहसास होता है और उसकी सभी मनोकामना पूरी होती है। 

कुछ लोगों का मानना है माया देवी मंदिर 11वीं शताब्दी का है। माया देवी का यह मंदिर 53 सिद्ध पीठों में तथा हरिद्वार मे पंचतीर्थ स्थलों से एक है। भक्त देवी पर प्रसाद के रूप में नारियल, फल, फुलों की माला और अगरबत्ती अर्पित करते है। नवरात्रों के दौरान बड़ी संख्या में लोग दर्शनों के लिए मंदिर में आते है। लोकल यात्रियों की भी काफी भीड़ मायादेवी में दिखाई देती है। 

मायापुरी के नाम से जाना जाता था हरिद्वार
माया देवी मंदिर में देवी की मूर्ति के चार भुजा और तीन मुंह है। माया देवी की मूर्ति के बायें हाथ पर देवी काली और दायें हाथ पर देवी कामाख्या की मूर्ति है। माया देवी मंदिर हरिद्वार के तीन शक्ति पीठ में से एक है दो अन्य शक्ति पीठ चण्डी देवी और मनसा देवी है। ये तीनों मंदिर मिल कर त्रिभुज की स्थिति की रचना करते है। ऐसा माना जाता है कि कभी हरिद्वार मायापुरी के नाम से जाना जाता था। ये नाम मायादेवी के कारण ही हरिद्वार का पड़ा था। 

 

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