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Hindi News उत्तराखंडमां चंडी देवी: लक्ष्मी, सरस्वती और महाकाली का है ‘संयुक्त रूप’,हरिद्वार में उत्पन्न होकर किया था राक्षकों का वध , VIDEO

मां चंडी देवी: लक्ष्मी, सरस्वती और महाकाली का है ‘संयुक्त रूप’,हरिद्वार में उत्पन्न होकर किया था राक्षकों का वध , VIDEO

नवरात्रों में मां चंडी देवी का विशेष महत्व है। चंडी देवी विश्व के पौराणिक मन्दिरों में से एक है। दुष्टों के संहार के लिए महाकाली, महालक्ष्मी और महा सरस्वती इन तीनों देवियों ने मां चंडी का रूप लिया...

मां चंडी देवी: लक्ष्मी, सरस्वती और महाकाली का है ‘संयुक्त रूप’,हरिद्वार में  उत्पन्न होकर किया था राक्षकों का वध , VIDEO
लाइव हिन्दुस्तान, हरिद्वार। रविंद्र सिंहFri, 12 Oct 2018 11:23 PM
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नवरात्रों में मां चंडी देवी का विशेष महत्व है। चंडी देवी विश्व के पौराणिक मन्दिरों में से एक है। दुष्टों के संहार के लिए महाकाली, महालक्ष्मी और महा सरस्वती इन तीनों देवियों ने मां चंडी का रूप लिया था। देवताओं पर अत्याचार के बाद जब मां चंडी ने दुष्टों का संहार किया तो उसके बाद मां चंडी ने हरिद्वार में ही निवास किया। महंत रोहित गिरी के बताया कि मान्यतों के अनुसार एक समय ऐसा आया जब इंद्र देव का सिंहासन राक्षसों ने छीन लिया। देवता सभी एकत्रित होकर भगवान शिव के पास गए। भगवान शिव ने मां की स्तुति करने को कहा। देवताओं ने मिलकर मां की आराधना की और फिर दुष्टों के संहार के लिए मां सरस्वती, लक्ष्मी और महाकाली ने चंडी का रूप धारण किया। राक्षकों के संहार करने के बाद मां वापस हरिद्वार नील पर्वत पहुंची और यही विराजमान हो गई। तब देवताओं ने मां चंडी के लिए मंगल गान भी गाया।


हरिद्वार नील पर्वत पर मां चंडी के रुद्र और मंगल दो रूप है। दोनों रूपों की यहां भक्त पूजा अर्चना करते है। मान्यता है कि नवरात्र के अष्टी और नवमी में मां का विशेष पूजन किया जाता है। मां का सबसे पसंदीदा दिन चतुर्थी के दिन यहां शारदीय नवरात्र में मेला भी भरता है। मान्यता है कि इस दिन मां के दर्शन मात्र से ही मन की मुराद पुरी होती है। शारदीय नवरात्र शुरू होने पर मंदिर में दिन- रात नौ दिन की विशेष पूजा अर्चना शुरू हो गई है। यात्रियों को सरकार की ओर से विशेष प्रसाद का भोग दिया जा रहा है। नवरात्र में लोगों को व्रत वाला प्रसाद दिया जाता है। नौ दिन मां का अलग अलग दिन के हिसाब से श्रृंगार की व्यवस्था की गई है। मंदिर में घट स्थापना हो चुकी है। नौ दिन दिन तक विशेष पूजा अर्चना की जाएगी। मान्यता है कि इस मंदिर में आठवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने पूजा अर्चना की थी। वर्ष 1929 में कश्मीर के राजा सुचेत सिंह की मन्नत पूरी होने के बाद उन्होंने इस मंदिर का जीर्णोद्वार कराया था।

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