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प्रदेश में किसानों का सिंचाई खर्च चार गुना तक बढ़ा, ये हैं प्रमुख वजहें

मौसम की बेरुखी ने इस साल किसानों की कमर तोड़ दी। बारिश न होने की वजह से किसान अपनी फसलों को बचाने के लिए नलकूप और नहरों पर निर्भर रहे हैं। बारिश होने पर किसानों को एक-दो बार ही नहर-नलकूप के पानी की...

प्रदेश में किसानों का सिंचाई खर्च चार गुना तक बढ़ा, ये हैं प्रमुख वजहें
हिन्दुस्तान टीम, देहरादून। चंद्रशेखर बुड़ाकोटीTue, 23 Mar 2021 10:55 AM
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मौसम की बेरुखी ने इस साल किसानों की कमर तोड़ दी। बारिश न होने की वजह से किसान अपनी फसलों को बचाने के लिए नलकूप और नहरों पर निर्भर रहे हैं। बारिश होने पर किसानों को एक-दो बार ही नहर-नलकूप के पानी की जरूरत पड़ती थी। लेकिन इस साल अब तक पांच से सात बार नलकूपों से सिंचाई करनी पड़ी। इससे जहां खेती की लागत बढ़ गई है वहीं, अगले साल भूजल के स्तर में कमी आने का खतरा भी मंडरा गया है। सोमवार को आपके अपने अखबार ‘हिन्दुस्तान’ ने बारिश की कमी से जूझ रहे किसानों से बात की तो चिंताजनक तस्वीर सामने आई। बारिश की कमी की वजह से सरकार दावा कर रही है कि मैदानी जिलों में सूखे की स्थिति नहीं है, लेकिन हकीकत यह है कि किसानों की जेब और धरती की कोख दोनों ही सूखते जा रहे हैं। 

यूं बढ़ गया खर्च:सरकारी ट्यूबवेल से सिंचाई के लिए पानी का प्रतिघंटा शुल्क लिया जाता है। रबी की फसल में यह 2.40 रुपये और खरीफ की फसल में 4.80 रुपये प्रति घंटा न्यूनतम है। इसी प्रकार नहर से पानी लेने पर गन्ने की फसल के लिए 300 रुपये हेक्टेयर, गेहूं और सब्जी के लिए प्रति हेक्टेयर 173 रुपये तय हैं। जहां पहले तक बामुश्किल दो बार ही टयूबवेल-नहर से सिंचाई की जरूरत पड़ती थी, इस बार किसानों को पांच से सात बार तक सिंचाई करानी पड़ी है। तराई किसान यूनियन के अध्यक्ष बिजेंद्र सिंह विर्क कहते हैं कि एक बार की सिंचाई में प्रति हेक्टेयर पांच हजार रुपये तक खर्च आता है। अब कई-कई बार सिंचाई करानी पड़ रही है। इससे यह लागत बढ़ती ही जा रही है।

भूगर्भ जल का अत्यधिक दोहन खतरनाक : भारती
पाणी राखो आंदोलन के प्रणेता सच्चिदानंद भारती कहते हैं भूगर्भ जल धरती का जल गुल्लक है। यदि गुल्लक से पैसा निकालते ही रहेंगे वो एक दिन खाली हो जाएगी। लेकिन इस विषय को कोई गंभीरता से नहीं ले रहा है। उन्होंने कहा कि अत्यधिक जल का इस्तेमाल होने से कई स्थानों पर जल स्तर गिरता जा रहा है। यदि धरती को सुरक्षित रखना है तो हम सभी को जल संरक्षण की ओर ध्यान देना होगा।

मानक के अनुसार 33% से अधिक फसल का नुकसान होने पर सूखा माना जाता है। क्रॉप कटिंग के आंकड़ों के आधार पर इसका आकलन किया जा रहा है। बारिश कम हुई है, लेकिन सूखे के हालात अभी नहीं है। सरकार किसानों के हितों की रक्षा के लिए गंभीर है। 
सुबोध उनियाल, कृषि मंत्री

नहर में पानी नहीं और सरकारी ट्यूबवेलों पर नंबर नहीं आता। मेरा अपना निजी ट्यूबवेल है। बारिश होने पर उसे दो बार ही चलाना पड़ता था। इस बार पांच बार चलाना पड़ा। डीजल से ट्यूबवेल चलाने वालों को तो और ज्यादा मुश्किल उठानी पड़ रही है। 
नित्यानंद भट्ट, मियांवाला, देहरादून

सिंचाई को ट्यूबवेल का ही सहारा है। इस साल सिंचाई के लिए 6-7 बार ट्यूबवेल इस्तेमाल करना पड़ा है। सामान्य बारिश में अधिकतम दो से तीन बार ट्यूबवेल की जरूरत पड़ती थी। किसान सिंचाई विभाग के नलकूप व निजी नलकूपों से सिंचाई कर रहे हैं। यह काफी महंगा पड़ रहा है। 
गजेंद्र सिंह, गैंडीखाता, हरिद्वार

फसलों की सिंचाई को किसान सालभर नहर व नलकूप पर निर्भर रहा। बारिश होने पर टयूबवेल का इस्तेमाल एक दो बार ही होता था। इस साल तीन से चार बार ट्यूबवेल से सिंचाई करनी पड़ी। इससे प्रति एकड़ चार से पांच हजार रुपये तक का खर्च बढ़ गया है। बाकी खर्च अलग हैं।
बिजेंद्र सिंह विर्क, यूएसनगर

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