उत्तराखंड: पूर्व सीएम हरीश रावत पर मुकदमे को हाईकोट की हरी झंडी
हाईकोर्ट में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के स्टिंग मामले में सोमवार को लगभग 3 घंटे तक चली सुनवाई के बाद फिलहाल राहत नहीं मिली है। कोर्ट ने कहा कि सीबीआई मामले में हरीश रावत पर एफआईआर दर्ज करे, उसे...
हाईकोर्ट में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के स्टिंग मामले में सोमवार को लगभग 3 घंटे तक चली सुनवाई के बाद फिलहाल राहत नहीं मिली है। कोर्ट ने कहा कि सीबीआई मामले में हरीश रावत पर एफआईआर दर्ज करे, उसे ऐसा करने से किसने रोका है। हालांकि, कोर्ट ने कहा है कि पूर्व सीएम हरीश रावत को अंतिम आदेश तक गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। मामले में सुनवाई की तिथि 1 नवंबर नियत करते हुए कहा कि यदि सुनवाई के बाद तत्कालीन राज्यपाल का सीबीआई जांच की संस्तुति का आदेश गलत साबित होता है तो जांच स्वत: ही औचित्यहीन मानी जाएगी। वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की न्यायालय में मामले की सुनवाई हुई। सोमवार को हुई सुनवाई में हरीश रावत की ओर से पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल जबकि सरकार व सीबीआई की ओर से ससिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल राकेश थपलियाल ने बहस की।
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न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की एकलपीठ में बहस करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सिब्बल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने एसआर मुंबई मामले में कहा है राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्यपाल द्वारा लिए गए निर्णय असंवैधानिक हैं। उत्तराखंड प्रदेश के इस मामले में भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद राज्य की सरकार फिर बहाल हुई। इसके बाद कैबिनेट ने स्टिंग मामले की एसआइटी से जांच का निर्णय लिया। सरकार के अधिवक्ता थपलियाल ने कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि जिस पर आरोप हैं, उसे जांच एजेंसी तय करने का अधिकार नहीं है। सिब्बल ने इस पूरे प्रकरण को साजिश करार दिया। उन्होंने कहा कि रविवार (अवकाश का दिन) होने के बावजूद सीडी की प्रमाणिकता को लेकर चंडीगढ़ लैब से रिपोर्ट आ गई। सिब्बल ने हरक सिंह रावत और उमेश शर्मा के बीच बातचीत का ब्योरा भी कोर्ट के सामने प्रस्तुत किया। इस दौरान उन्होंने दोनों के बीच हुई बातचीत के अंश भी प्रस्तुत किए।
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बता दें कि बीती सुनवाई में सीबीआई की ओर से कोर्ट को अवगत कराया कि वह स्टिंग मामले की प्रारम्भिक जांच रिपोर्ट कोर्ट में पेश करना चाहती है, जिससे इसमें अग्रिम कार्रवाई कर एफआईआर दर्ज की जा सके। जबकि हरीश रावत के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि सीबीआई को इस मामले में जांच करने का अधिकार ही नहीं है। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश फ्लोर टेस्ट के बाद सत्ता में आई तत्कालीन सरकार ने राष्ट्रपति शासन के दौरान सीबीआई जांच की संस्तुति और नोटिफिकेशन को वापस कर जांच के लिए एसआईटी का गठन कर लिया था। सोमवार को कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद सीबीआई से कहा कि वह एफआईआर के लिए स्वतंत्र है, यह उसका अधिकार है। लेकिन इसकी कार्रवाई 1 नवंबर की सुनवाई और अग्रिम आदेशों पर निर्भर करेगी।
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