उत्तराखंड के जंगलों में भोजन और प्रजनन विकास के हालात अनुकूल होने से वन्यजीवों की संख्या तेजी से बढ़ी है। नतीजतन वन्यजीवों का क्षेत्र घटने के चलते उनके आपसी संघर्ष के साथ आबादी में घुसने से मानवों पर हमले बढ़ गए हैं।
आंकड़ों पर गौर करें तो उत्तराखंड में छह साल के अंदर 250 गुलदार, पांच साल में 102 बाघ और तीन साल में 187 हाथी बढ़ चुके हैं। विशेषज्ञों की मानें तो जंगल में वन्य जीवों के प्रबंधन को लेकर जल्द ठोस उपाय नहीं किए गए तो वन्य जीवों के साथ-साथ जंगलों के पास रहने वाली आबादी के लिए जोखिम बढ़ता जाएगा।
उत्तराखण्ड का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 53483 वर्ग किमी है। इसमें वनों का कुल क्षेत्रफल 34651 वर्ग किमी है, जो कुल भौगोलिक क्षेत्र का 64.79 प्रतिशत है। इन वनों में हर प्रकार के वन्यजीव रहते हैं। इंसान के बदलते नजरिए और सख्त नियमों के चलते वन्यजीवों की संख्या में भी तेजी से वृद्धि हो रही है। ऐसे में जंगलों में इनका क्षेत्र सीमित होने से यह जंगलों से निकलकर बाहर आ रहे हैं। इस कारण मानवों से आमना-सामना होने से दोनों की मौतें हो रही हैं।
राज्य में बढ़ रहे हैं वन्यजीव
गुलदार : 2014 में 600, 2021 की गणना में 839
बाघ : 2014 में 340, 2019 की गणना में 442
हाथी : 2017 में 1839, 2020 की गणना में 2026
दो साल में 121 लोगों की मौत, 546 घायल
उत्तराखंड में 2019 में वन्यजीव हमलों में 58 लोगों की मौत हुई और 260 घायल हुए।
2020 में वन्यजीवों के हमले में 63 लोगों की मौत हुई है, जबकि 286 लोग घायल हुए।
एक दूसरे के क्षेत्र में नहीं घुसती कैट फैमिली
कैट फैमली में शामिल बाघ, गुलदार आदि अपना बनाया कई किलोमीटर का क्षेत्र होता है। इसमें वे अपनी प्रजाति के दूसरे वन्यजीव को उस क्षेत्र में आने की इजाजत नहीं होती है। जब दूसरा बाघ गुलदार क्षेत्र में घुसता है तो वन्यजीव का आपस में भी संघर्ष बढ़ेगा।
हाथियों का क्षेत्र सिकोड़ने की तैयारी
24 नवंबर 2020 को स्टेट वाइल्ड लाइफ बोर्ड की बैठक में देहरादून जौलीग्रांट एयरपोर्ट के विस्तार के लिए शिवालिक एलिफेंट रिजर्व खत्म करने का निर्णय लिया गया। शिवालिक एलिफेंट रिज़र्व उत्तराखंड में विशाल हाथियों का इकलौता अभ्यारण्य है। ये एशियाई हाथियों का घर है, जो अफ्रीकन हाथियों के बाद धरती के दूसरे सबसे विशालकाय हाथी होते हैं। उत्तराखंड का ये क्षेत्र करीब 5 हजार वर्ग किलोमीटर का है। इसके खत्म होने से हाथियों का एरिया सिकुड़ जाएगा, जिसके चलते इनके आबादी में आने और मानव वन्यजीव संघर्ष और बढ़ेगा ही। हालांकि यह मामला हाइकोर्ट में विचाराधीन है।