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छठी क्लास से ही प्रोफेशनल स्किल्स से जुड़ेंगे बच्चे : ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय के संस्थापक डॉ. कमल घनशाला

करीब डेढ़ शताब्दी गुजरने के बाद देश उस लबादे को उतार फेंकने वाला है जिसे लार्ड बैबिंगटन मैकाले की शिक्षा प्रणाली कहते हैं। 19वीं सदी के मध्य में भारत की समृद्ध संस्कृति व शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त...

छठी क्लास से ही प्रोफेशनल स्किल्स से जुड़ेंगे बच्चे : ग्राफिक एरा विश्वविद्यालय के संस्थापक डॉ. कमल घनशाला
हिन्दुस्तान टीम, देहरादून Sat, 01 Aug 2020 11:51 AM
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करीब डेढ़ शताब्दी गुजरने के बाद देश उस लबादे को उतार फेंकने वाला है जिसे लार्ड बैबिंगटन मैकाले की शिक्षा प्रणाली कहते हैं। 19वीं सदी के मध्य में भारत की समृद्ध संस्कृति व शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त करने और देश की नई नस्ल को रट्टू तोता बनाने की रणनीति के तहत लार्ड मैकाले ने उस शिक्षा प्रणाली की बुनियाद डाली थी।

मोदी सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2020 नई उम्मीदें जगाने वाली है। लार्ड मैकाले की जिस सड़ी गली शिक्षा प्रणाली को बुद्धिजीवी हमेशा से सवालों और शंकाओं के कठघरे में खड़ा करते आये हैं, ये नई शिक्षा नीति उनसे छुटकारा पाने की एक ईमानदार कोशिश के रूप में सामने आई है।

इस शिक्षा नीति की एक बहुत बड़ी विशेषता इसे तैयार करने के तरीके और नीयत से भी जुड़ी हुई है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मसौदा उन लाखों लोगों से सुझाव लेने और उन पर मंथन करने के बाद वजूद में आया है, जो नई पीढ़ी की बुनियाद को मजबूत बनाने के हिमायती हैं और किसी न किसी रूप में इस कार्य में अपनी भूमिका निभाते आये  हैं।

इन लोगों में शिक्षाविद, विशेषज्ञ, नौकरशाह, अभिभावक, छात्र और निर्वाचित जनप्रतिनिधि शामिल हैं। इन सबके विचारों के खजाने के मंथन ने शिक्षा नीति को विश्व की सर्वश्रेष्ठ शिक्षा नीति बना दिया है। दुनिया में संभवत: ये एकमात्र उदाहरण है जब कहीं शिक्षा नीति बनाने के  लिए दो लाख से अधिक लोगों के सुझाव एकत्र करके उनका विशद अध्ययन किया गया हो।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति देश की नई पीढ़ी को रटने की प्रवृत्ति से निजात दिलाने के बहुत महत्वपूर्ण उद्देश्य को पाने की दिशा में एक बसे ड़ी छलांग तो है ही। यह नीति बच्चों को कक्षा छह से ही प्रोफेशनल स्किल से जोड़ने की एक और बड़ी रणनीति भी लेकर आई है, जो शिक्षा संस्थानों को बेरोजगार तैयार करने वाले कारखानों से बदल कर युवाओं को रोजगार से जोड़ने और आत्मनिर्भर बनाने की बहुत महतवाकांक्षी योजना से जोड़ देती है।

इस तरह यह नीति प्रधानमंत्री के देश को पांच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के सपने को सच करने की दिशा में आगे बढ़ाने वाली है। शिक्षा क्षेत्र की एक बड़ी समस्या बीच में पढ़ायी छोड़ने की युवाओं की मजबूरी है। इस मजबूरी को से लेते हुए बहुत गंभीरता राष्ट्रीय शिक्षा नीति के जरिये इस चुनौती पर दो तरह से निशाना साधा गया है। 

कक्षा छह से प्रोफेशनल स्किल सिखाने की व्यवस्था किशोरावस्था में पढ़ायी छोड़ने वालों को भी आत्मनिर्भर बनने का मौका देगी क्योंकि कुछ वर्षों में भी वे इतना हुनर तो सीख ही जाएंगे कि कहीं भी काम करके गुजर बसर कर सकें।

दूसरे, बीच में पढ़ाई छोड़ने की स्थिति में किशोरों को तब तक की पढ़ायी के आधार पर सार्टिफिकेट और डिप्लोमा देने की व्यवस्था किशोरों की तब तक की पढ़ायी को बेकार नहीं जाने देगी। मानव संसाधन विकास मंत्री (अब केंद्रीय शिक्षा मंत्री) डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति में यह प्रावधान किया है कि बारहवीं के बाद एक साल बाद पढ़ायी छोड़ने वालों को सार्टिफिकेट और दो साल बाद शिक्षा छोड़ने पर डिप्लोमा दिया जाएगा।

तीन – चार साल की शिक्षा के बाद डिग्री दी जाएगी। इस तरह बीच में पढ़ायी छूटने पर उससे पहले की पढ़ायी बेकार नहीं होगी।राष्ट्रीय शिक्षा नीति में छात्र-छात्राओं की परफोरमेंश के आकलन की नई व्यवस्था भी 21वीं सदी की सोच का अहसास कराने वाली है और पारदर्शी निष्पक्षता की ओर इशारा करती है। शिक्षा का खर्चा बढ़ाकर जीडीपी का छह प्रतिशत करने का लक्ष्य भी नई उम्मीदें जगाता है।

नई शिक्षा नीति का ये दस्तावेज दरअसल भारत को तक्षशिला और नालंदा के गौरवपूर्ण और समृद्ध अतीत से जोड़कर शिक्षा क्षेत्र में विश्व गुरु बनाने  की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है। बाबू बनाने वाली लार्ड मैकाले की शिक्षा प्रणाली को जड़ से उखाड़ फेंकने और बचपन से नई पीढ़ी को उसकी दिलचस्पी के क्षेत्र में दक्ष प्रोफेशनल बनाने की संभावना के बीज इस नीति में विद्यमान हैं।

डॉ. निशंक ने इस शिक्षा नीति के रूप में जहां देश को नासूर बनती बेरोजगारी की समस्या की एक कारगर दवा देकर कुशल और भविष्यदृष्टा रणनीतिकार होने का प्रमाण दिया है, वहीं उन्होंने देश को आने वाले दशकों के लिए मजबूत आर्थिक संबल देने का कार्य किया है। इस ऐतिहासिक शिक्षा नीति ने शिक्षा जगत में डॉ. निशंक का सम्मान बढ़ाने के साथ ही उन्हें विश्व के श्रेष्ठ नीति निर्माताओं की पंक्ति में पहुंचा दिया है।

(लेखक डॉ. कमल घनशाला देश के शीर्ष 100 विश्वविद्यालयों में शामिल ग्राफिक एरा यूनिवर्सिटी के संस्थापक अध्यक्ष और कम्प्यूटर साईंस इंजीनियरिंग के ऐसे विख्यात शिक्षाविद हैं, जो आज भी खुद क्लास लेते हैं)

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