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प्राकृतिक आपदाओं की मार झेलता आ रहा यमुनोत्री धाम की सुरक्षा को लेकर आज भी कोई ठोस योजना नहीं

प्राकृतिक आपदाओं  की मार झेलता आ रहा यमुनोत्री धाम की सुरक्षा को लेकर आज भी कोई ठोस योजना नहीं बन सकी है। जबकि साल दर साल यमुनोत्री धाम आपदा की घटनाएं घटित होती रहती हैं। आपदा की दृष्टि से...

प्राकृतिक आपदाओं  की मार झेलता आ रहा यमुनोत्री धाम की सुरक्षा को लेकर आज भी कोई ठोस योजना नहीं
लाइव हिन्दुस्तान,बड़कोट। द्वारिका सेमवालWed, 19 Sep 2018 01:21 PM
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प्राकृतिक आपदाओं  की मार झेलता आ रहा यमुनोत्री धाम की सुरक्षा को लेकर आज भी कोई ठोस योजना नहीं बन सकी है। जबकि साल दर साल यमुनोत्री धाम आपदा की घटनाएं घटित होती रहती हैं। आपदा की दृष्टि से संवेदनशील धाम की सुरक्षा के लिए कोई दीर्घकालिक योजना नहीं बन पाने से तीर्थपुरोहित सरकारी तंत्र की इस बेरुखी से खफा हैं। यमुनोत्री धाम के लिए जहां ऊपर से कालिंदी पर्वत खतरा बना हुआ है तो, वहीं इससे भी ज्यादा खतरा बरसात के हर मौसम में यमुना नदी में बाढ़ आने का बना रहता है। यमुना में बाढ़ आने का मुख्य कारण त्रिवेणी में बनने वाली झील है। यमुनोत्री से दो-तीन किमी आगे त्रिवेणी के आसपास पहाड़ी से भूस्खलन हो रहा है। भूस्खलन के कारण यमुना का प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है और यहां पर झील बन जाती है। झील कभी भीषण रूप धारण कर लेती है। जो बाद में टूटने पर बाढ़ का रूप लेकर यमुनोत्री धाम सहित जानकीचट्टी व आसपास के क्षेत्रों में तबाही मचा देती है।  सामाजिक कार्यकर्ता महावीर पंवार का कहना है कि त्रिवेणी के आसपास पहाड़ों से हो रहे भूस्खलन को यदि समय रहते रोकने के प्रयास नहीं किये गए तो आगे भी त्रिवेणी में झील बनाने तथा बाढ़ आने का खतरा यमुनोत्री धाम पर मंडराता रहेगा।
क्या कहते हैं तीर्थ पुरोहित
यमुनोत्री मंदिर समिति के सचिव एवं तीर्थ पुरोहित कीर्तेश्वर उनियाल का कहना है कि यमुनोत्री धाम में बाढ़ आने का प्रमुख कारण यमुनोत्री धाम के दो किमी आगे तिरवेणी में बनने वाली झील है। जिससे यमुनोत्री धाम को ज्यादा खतरा है। झील बनने वाले इस स्थान का तथा सम्पूर्ण धाम क्षेत्र का का स्थाई ट्रीटमेंट होना आवश्यक है। वर्ष 2004 की आपदा के बाद हर साल यमुनोत्री में आपदाओं का सिलसिला जारी है। लेकिन शासन प्रशासन यमुनोत्री धाम की सुरक्षा को लेकर कतई भी संवेदनशील नहीं हैं। उन्होंने कहा है कि यमुनोत्री में आपदा की त्रासदी को बीते, डेढ़ माह हो गए हैं। अभी तक पुनर्निर्माण कार्य शुरू नही हो सके हैं। यमुनोत्री धाम को लेकर शासन प्रशासन की बेरुखी से तार्थ पुरोहितों में रोष है। 
आपदा के दो माह बाद भी पुनर्निर्माण नहीं
बड़कोट। बीते 16 जुलाई को यमुना में आई बाढ़ ने यमुनोत्री धाम में तांडव मचा दिया था। बाढ़ ने यमुनोत्री मंदिर परिसर सहित 10 दुकानें, अतिथि स्वागत कक्ष, स्नान घाट व मंदिर परिसर को जोड़ने वाला पुल क्षतिग्रस्त हो गया था। इतनी तबाही के बाद भी आज दो महीने बीतने के बाद भी अभी तक यमुनोत्री धाम में पुनर्निर्माण कार्य शुरू नहीं हो सके हैं। जिससे तीर्थ पुरोहितों व क्षेत्र की जनता में भारी आक्रोश है। तीर्थ पुरोहित पवन उनियाल का कहना है कि यमुनोत्री धाम में इतनी बड़ी त्रासदी हुई है, लेकिन अभी भी पुनर्निर्माण कार्य शुरू ही नहीं हो सके हैं। इससे जाहिर होता है कि प्रदेश सरकार यमुनोत्री धाम के लिए बिलकुल भी संवेदनशील नहीं है। उन्होंने केदारनाथ धाम की तरह यमुनोत्री धाम में भी निर्माण कार्य किये जाने की मांग की।
यमुनोत्री धाम में हुई आपदा की घटनाएं
वर्ष 1983 में ग्लेशियर टूटने से यमुनोत्री धाम में भारी नुकसान पहुंचा तथा गरुण गंगा को जोड़ने वाला पुल यमुना नदी में समा गया। 
वर्ष 2004 में यमुनोत्री मंदिर परिसर के ठीक उपर से कालिंदी पर्वत के दरकने से मंदिर परिसर को भारी नुकसान हुआ तथा इस तबाही ने 6 स्थानीय लोगों की जान चली गईं थी। 
वर्ष 2005 में त्रिवेणी में बनी झील के टूटने से मंदिर परिसर का भारी कटाव हुआ।
वर्ष 2006 में यमुना में बाढ़ आने से मंदिर परिसर तथा स्नानघाट क्षतिग्रस्त हुए।
वर्ष 2008 में यमुना नदी में बाढ़ आने से यमुनोत्री मंदिर परिसर बह गया। 
वर्ष 2010 में कालिंदी पर्वत से यमुनोत्री में पत्थर गिरे, बाल-बाल बचे लोग।
16-17 जुलाई 2018 में यमुना में आई बाढ़ से यमुनोत्री मंदिर परिसर, अतिथि स्वागत कक्ष, स्नान घाट, मंदिर परिसर को जोड़ने वाला पुल तथा एक दर्जन दुकानें क्षतिग्रस्त हई हैं।

 
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