रेन पैटर्न में बदलाव से पहाड़ का संतुलन बिगड़ना हुआ खतरनाक, विशेषज्ञों ने ये जताई चिंता
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन की लगातार बढ़ती घटनाओं के लिए बेतरतीब निर्माण कार्य और जलवायु परिवर्तन अहम वजह है। राज्य आपदा प्रबंधन एवं न्यूनीकरण केंद्र डीएमएमसी के पूर्व...
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उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन की लगातार बढ़ती घटनाओं के लिए बेतरतीब निर्माण कार्य और जलवायु परिवर्तन अहम वजह है। राज्य आपदा प्रबंधन एवं न्यूनीकरण केंद्र डीएमएमसी के पूर्व अधिशासी निदेशक प्रो. आरके पांडे बताते हैं कि राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में वर्षों से मानवीय गतिविधि बहुत ज्यादा बढ़ गई है। निर्माण कार्यों की वजह से पहाडों के प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहे हैं। मसलन, एक पहाड़ का एक तय स्लोप होता है।
जब इसमें सड़क बनाने या किसी और निर्माण कार्य के लिए समतल जमीन काटी जाती है तो पहाड़ का यह एंगल तत्काल प्रभावित हो जाता है। पहाड़ वजन एक तय मानक के अनुसार विभाजित होता हुआ जमीन तक जाता था, वो बीच में कटिंग होने से बिगड़ जाता है। इसी प्रकार बारिश का पानी भी सीधा नीचे न जाकर समतल जमीन में जमा कर रिसने लगता है। प्रो. पांडे कहते हैं हालिया कुछ वर्षों में बारिश का पैटर्न भी बदल गया है।
पहाड़ों में ज्यादा कटिंग से बढ़ा खतरा
पहाड़ों में लगातार बड़ी बड़ी परियोजनाओं पर काम चल रहा है। चाहे वह जल विद्युत परियोजना हो या ऑल वेदर रोड या बड़ी बड़ी सुरंग परियोजना। सभी में बड़े पैमाने पर पहाड़ों में कटिंग हुई है। जिसने नए भूस्खलन जोन पैदा कर दिए हैं। यही नहीं, पुराने भूस्खलन जोन भी सक्रिय कर दिए हैं। वाडिया के वैज्ञानिक सुशील कुमार के मुताबिक, पहाड़ों की बेतरतीब कटिंग से पहाड़ कमजोर हुए हैं। ऐसे में भूकंप के हल्के झटके भी बड़े भूस्खलन का कारण बन सकते हैं। पर्यावरण साइंस, वानिकी विभाग के रानीचौरी कैम्पस के एचओडी डा.एसपी सती के मुताबिक, बरसात के समय भूकंप आने के गंभीर नतीजे हो सकते हैं।
पहाड़ पहले ही भूस्खलन के कारण कच्चे हैं। ऐसे में भूगर्भीय हलचल पुरानी दरारों को और भी चौड़ा कर देती है। इस तरह के छोटे छोटे झटकों से जल स्रोत भी अपना रास्ता बदल देते हैं। भूगर्भ का पानी नए रास्ते तलाशता है तो वहां भी भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है। सती के अनुसार, करीब पांच सौ साल से गढ़वाल-कुमाऊं क्षेत्र में कोई ऐसा बड़ा भूकंप नहीं आया है, जिसकी तीव्रता 7.6 से ऊपर रही हो।