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आस्थाःप्रदेश के कई शिवालयों में उमड़ा शिव भक्तों का रैला-VIDEO

प्रदेश के कई शहरों में शिवालयों में भगवान भोले शंकर का जलाभिषेक करने के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। शिवालय सुबह से ही बम बम भोले के जयकारों से गुंजायमान रहे। मंदिरों में तड़के से ही...

आस्थाःप्रदेश के कई शिवालयों में उमड़ा शिव भक्तों का रैला-VIDEO
लाइव हिन्दुस्तान टीम,देहरादून Thu, 09 Aug 2018 04:58 PM
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प्रदेश के कई शहरों में शिवालयों में भगवान भोले शंकर का जलाभिषेक करने के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। शिवालय सुबह से ही बम बम भोले के जयकारों से गुंजायमान रहे। मंदिरों में तड़के से ही श्रद्धालुओं की कतार लगी थी। महाशिवरात्रि के अवसर पर पर टपकेश्वर और अन्य शिवालयों को विशेष तौर पर सजाया गया था। शिव मंदिरों में सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगी थी। धार्मिक मान्यता के अनुसार श्रद्धालुओं ने शिवालयों में जलाभिषेक कर बेलपत्र आदि चढ़ाए। शिव महिमा का पाठ मंदिरों में हुआ। बारिश के बाद भी श्रद्धालुओं की कतार मंदिरों में लगी रही। दिन चढ़ने के साथ ही जलाभिषेक के लिए श्रद्धालु की संख्या में इजाफा हुआ। लोगों ने व्रत रखकर शिव पूजन किया और आशीर्वाद लिया। प्रशासन की ओर से मंदिरों में पुलिस की तैनाती की गई  ताकि शिवभक्तों को पूजा करने किसी तरह  की परेशानी न हो। इसके अलावा, पौडी में स्थित किंकालेश्वर महादेव मंदिर, श्रीनगर में कमलेश्वर महादेव मंदिर, रुदप्रयाग में कोटेश्वर महादेव मंदिर और ऋषिकेश में  नीलकंठ महादेव में भी भक्तों की भीड़ देखने को मिली। 

टपकेश्वर महादेव: 
टपकेश्वर महादेव: टौंस नदी के किनारे बना टपकेश्वर महादेव एक प्रसिद्ध मंदिर है। गुफा में स्थित शिवलिंग पर चट्टान से पानी की बूंदे टपकती रहती हैं। इसी कारण इसका नाम टपकेश्वर  महादेव पड़ा है। वैसे तो यहां साल भर श्रद्धालु दर्शन के लिए आते रहते है लेकिन सावन के महीने हर सोमवार और महाशिवरात्रि  पर्व पर आयोजित मेले में  बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचकर श्रद्धा सुमन अर्पित करते है। 
मान्यता 
माना जाता है कि मंदिर में आने वालों भक्तो की मनोकामना जल्द पूरी होती है। क्योंकि शिव की तपस्थली होने के कारण शिव जल्दी खुश होकर भक्तों की हर मुराद पूरी करते है। उत्तराखंड में भगवान शिव को समर्पित सबसे पुराने मंदिरों में से एक टपकेश्श्वर महादेव मंदिर को माना जाता है। मंदिर में मुख्य भगवान शिव है। यहां दो शिवलिंग हैं। दोनों ही स्वयं प्रकट हुए हैं। आस-पास में संतोषी माँ और श्री हनुमान के लिए मंदिर हैं। यह माना जाता है कि मंदिर साढ़े छह हजार वर्ष पुराना र्है। 

विशेषता:
प्राकृतिक गुफा मंदिर के अंदर स्थित है और गुफा की छत पर एक प्राकृतिक झरना है। शिवलिंग पर छत से पानी की बूंदों की लगभग वर्षा होती रहती है। यह वातावरण एक तरह का "अभिषेक" ही है । गुफा का मंदिर , टौंस नामक एक मौसमी नदी के तट पर स्थित है। इस मंदिर के आस पास कई गंधक झरने है । शिवलिंगो में से एक रुद्राक्ष की 5151 मोतियों से बना है। गुफा बहुत छोटी सी जगह में स्थित है और काफी संकीर्ण भी है। दर्शन के लिए लगभग झुक कर घुटनो के बल जाना पड़ता है । आचार्य राजपाल गिरि ने बताया कि  यहा काफी प्राचीन मंदिर है। यहाँ आने भक्तो की मनोकामना पूरी होती है । जिसके चलते यहाँ साल भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता ही। यहाँ पर हर साल हजारों श्रद्धालु दर्शन को आते है।  बताया कि यह गुफा द्रोणाचार्य (पांडवों और कौरवों के लिए गुरु) का निवास स्थान माना जाता है।  इसके साथ ही द्रोणचार्य ने यहाँ पर तपस्या की थी । जिसके बाद शिव ने खुश हो कर उनसे वर मांगने को कहा था  जिसके बाद उन्होंने  धनुर्विद्या में निपुण होने का आशीर्वाद लिया था। इसलिए,गुफा को द्रोण गुफा  भी कहा जाता है। द्रोण के बेटे अश्वत्थामा इस गुफा में पैदा हुए थे । अपने जन्म के बाद, उसकी माँ उसे दूध नहीं पिला पा रही थी । उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना की और भगवान ने गुफा की छत से दूध टपकाते हुए उसे आशीर्वाद दिया। 


 

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