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उत्तराखंड में जेलों की हालत उप्र और बिहार से भी बदतर: हाईकोर्ट

उत्तराखंड की जेलों की भयावह स्थिति को लेकर बुधवार को मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान की अगुवाई वाली पीठ ने सरकार की जमकर खिंचाई की और अधिकारियों को जमकर लताड़ लगायी तथा जेल महानिरीक्षक को 07 दिसंबर तक सभी...

उत्तराखंड में जेलों की हालत उप्र और बिहार से भी बदतर: हाईकोर्ट
वार्ता, नैनीतालWed, 17 Nov 2021 06:45 PM
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उत्तराखंड की जेलों की भयावह स्थिति को लेकर बुधवार को मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान की अगुवाई वाली पीठ ने सरकार की जमकर खिंचाई की और अधिकारियों को जमकर लताड़ लगायी तथा जेल महानिरीक्षक को 07 दिसंबर तक सभी जेलों का दौरा कर जेलों के सुधारीकरण को लेकर वस्तिृत रिपोर्ट अदालत में पेश करने के नर्दिेश दिये हैं। मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ में आज जेलों की स्थिति को लेकर संतोष उपाध्याय और अन्य की ओर से पृथक पृथक रूप से दायर विभन्नि जनहित याचिकाओं पर सुनवाई हुई।

गृह सचिव रंजीत सन्हिा और जेल महानिरीक्षक दीपक ज्योति घल्डियिाल वर्चुअली अदालत में पेश हुए। जेलों की वर्तमान स्थिति को लेकर पूर्व जेल महानिरीक्षक एपी अंशुमान की ओर से रिपोर्ट अदालत में पेश की गयी लेकिन अदालत ने इसे  खारिज कर दिया। रिपोर्ट में साफ-साफ कहा गया कि प्रदेश की जेलों में कैदियों को क्षमता से दोगुने बंदियों को रखा गया हैै। प्रदेश में जेलों की कुल क्षमता 3540 बंदियों की है जबकि 7421 बंदी भरे गये हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि प्रदेश में एकमात्र केन्द्रीय जेल है और उसमें भी क्षमता से अधिक कैदी रखा गया हैं। 

रिपोर्ट में नयी जेलों के नर्मिाण को लेकर कुछ भी नहीं कहा गया है। जिसे अदालत ने गंभीरता से लिया और प्रदेश सरकार और अधिकारियों को बुरी तरह से लताड़ लगायी। अदालत ने कहा कि पिछले 21 सालों में प्रदेश में जेलों के सुधार के नाम पर कुछ नहीं हुआ और प्रदेश की जेलों की स्थिति उत्तर प्रदेश और बिहार से भी बदतर है। अदालत ने कहा कि जेलों में बंदियों और उनके परिजनों के द्वारा मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन किया जा रहा है। अदालत ने प्रदेश के उधमसिंह नगर जनपद के सितारगंज स्थित एकमात्र केन्द्रीय जेल को लेकर भी सवाल उठाये।

अदालत ने इस पर भी सवाल दागा कि क्यों नहीं अभी तक दूसरी जेल का नर्मिाण किया गया। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि सरकार बंदियों के अधिकारों को लेकर कतई गंभीर नहीं है और जेलों में संविधान की धारा 21 का खुल्लमखुला उल्लंघन हो रहा है। अदालत ने सरकार को आईना दिखाते हुए कहा कि तेलंगाना जैसे राज्य ने जेल सुधार के नाम पर देश में एक उदाहरण पेश किया है। यहां जेल परिसरों में आठ फैक्ट्री संचालित की जा रही हैं और उन्हें जेल बंदियों की ओर से संचालित किया जा रहा है। कैदी कम्यूटर के पुर्जे, एलईडी बल्ब और फर्नीचर का नर्मिाण कर रहे हैं।

यही नहीं जेल कैदियों द्वारा दो पेट्रोल पंप संचालित किये जा रहे हैं। महिला बंदी कन्फैक्शनरी की फैक्ट्रियां संचालित कर रही हैं और अच्छा उत्पादन कर रही हैं। इसके अलावा कैदियों द्वारा जेलों में फर्नीचरों का नर्मिाण किया जा रहा है और सरकारी कार्यालयों में इन्हीं फर्नीचरों को  इस्तेमाल किया जा रहा है। मुख्य न्यायाधीश ने यह भी कहा कि कोरोना महामारी में भी तेलंगाना की जेलों ने बेहतरीन कार्य किया है और फर्श साफ करने वाला क्लीनर के साथ साथ सेनिटाइजर्स और मास्क का उत्पादन कर खतरनाक जैसी महामारी में देश का सहयोग किया है। 

अदालत ने आश्चर्य व्यक्त किया कि चंपावत की एक जेल की छोटी (छह बाय छह) की कोठरी में आठ महिला कैदियों को जानवरों की तरह से ठूंसा गया है। साथ ही उनका खाना बाथरूम में बनाया जा रहा है। अदालत ने पिथौरागढ़ की सात करोड़ रुपये की लागत से तैयार की गयी जेल की दीवार पर भी नाराजगी जताई और कहा कि जेल कर्मियों के क्वार्टर से अधिक जरूरी बंदियों की बैरकों का नर्मिाण हैं।  अदालत ने साफ साफ कहा कि सरकार के पास न तो जेलों के सुधार का कोई विजन है और न ही इच्छाशक्ति।

उन्होंने सरकार की आंखे खोलते हुए कहा कि हैदराबाद के चेरापल्ली जेल में आज बंदियों का पूरा खाना आधुनिक मशीनों से तैयार किया जा रहा है। अदालत ने कहा कि जेलों में भीड़ को कम करने के लिये एक जेल से दूसरे जेल में बंदियों को स्थानांतरित कर दिया जा रहा है। अदालत ने इस पर भी नाराजगी जताई कि पौड़ी, टिहरी, चमोली एवं उत्तरकाशी जनपद की जेलों से कैदियों को हरद्विार और देहरादून की जेलों में शफ्टि कर दिया जा रहा है। इसी प्रकार पिथौरागढ़, अल्मोड़ा और नैनीताल जनपदों से भी भीड़ कम करने के लिये बंदियों को हल्द्वानी या सितारगंज केन्द्रीय जेल में भेजा जा रहा है। 

अदालत ने इसे कैदियों और उनके परिजनों के मौलिक अधिकारों का हनन बताया और कहा कि कैदी हमारे समाज का हस्सिा हैं और सरकार कैदियों के सुधार के लिये कुछ नहीं कर रही है। इस मामले में हुई मैराथन सुनवाई के बाद अदालत ने जेल महानिरीक्षक दीपक ज्योति घल्डियिाल को नर्दिेश दिये कि वह 07 दिसंबर तक प्रदेश की सभी जेलों का दौरा कर जेलों की वर्तमान स्थिति, जेलों एवं कैदियों के सुधार के लिये उपयुक्त कदमों के साथ ही प्रदेश में ओपन जेल की अवधारणा एवं जेल प्रशासन के समूल ढांचे में सुधार के लिये क्या क्या कदम उठाये जा सकते हैं, इसकों लेकर एक रिपोर्ट पेश करे। इस मामले में अदालत 08 दिसंबर को सुनवाई करेगी।    

 

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