चमोली त्रासदी: ‘हे भूकण्या देवता हमारी रक्षा करना’, आधे घंटे तक पानी में अटकी रहीं सांसें
चमोली के गांव रैणी में हिमस्खलन के बाद मची तबाही को 50 घंटे से ज्यादा का वक्त बीत चुका है। लेकिन दून अस्पताल के ईएनटी वार्ड में भर्ती लामबगड़ के रहने वाले जेसीबी चालक विक्रम चौहान की आंखों में सैलाब...
चमोली के गांव रैणी में हिमस्खलन के बाद मची तबाही को 50 घंटे से ज्यादा का वक्त बीत चुका है। लेकिन दून अस्पताल के ईएनटी वार्ड में भर्ती लामबगड़ के रहने वाले जेसीबी चालक विक्रम चौहान की आंखों में सैलाब का खौफ साफ दिख रहा है। खौफनाक तबाही के बारे में बात करते समय उनकी जुबान लड़खड़ाने लगती है। 49 वर्षीय विक्रम चौहान को इमरजेंसी से डा. अमित ने ईएनटी वार्ड में शिफ्ट करा दिया है। यहां पर ईएनटी विशेषज्ञ डा. नितिन उनका उपचार कर रहे हैं।
उनके कान में जो बालू जमी थी, उसे साफ कर दिया गया है, अब खांसी भी कम हो गई है। नेबुलाइजर दिया जा रहा है। वह बताते हैं कि करीब 20 मीटर पानी और मलबा अचानक आया था, जिसमें बड़े-बड़े बोल्डर भी थे। पानी इतना ठंडा था कि शरीर सुन्न हो गया था, कुछ दूरी पर जाकर कुंड में गर्म पानी आया तो सांस में सांस आई। आधा घंटा तक पानी में सांसें अटकी रहीं। लगा जैसे ईष्ट देवता ने उन्हें पानी से बाहर फेंक दिया। डिप्टी एमएस डॉ एनएस खत्री ने बताया कि घायल के उपचार में विशेषज्ञ डाक्टर लगे हैं। उनकी हालत सामान्य है।
परिवार को आर्थिक मदद जल्द मिले
अस्पताल में पहुंचे परिजनों का कहना था कि जो रोजगार था वह छिन गया है। वहीं पत्नी, तीन बच्चों के भरण पोषण का सहारा था। जो पास में रुपया पैसा था वह सब बह गया। ऐसे में परिवार की मदद को सरकार से मदद की दरकार है। सरकार ने कुछ घोषणा की है तो वह जल्द उन्हें मिलनी चाहिये, ताकि परिजनों को कुछ राहत मिल सके।
रैणी पुल की जगह अब नया वैली ब्रिज बनाया जाएगा
तपोवन। रैणी पुल बाढ़ में ध्वस्त होने की वजह अलग थलग पड़ी मलारी वैली को जोड़ने के लिए बीआरओ ने युद्धस्तर पर तैयारी शुरू कर दी। नदी का फाट दो गुने से ज्यादा बढ़ जाने की वजह से नई साइट तलाशी जा रही है। यहां से चीन सीमा महज 80 किलोमीटर दूर होने की वजह से मलारी वैली को जल्द से जल्द संपर्क मार्ग से जोड़ना सामरिक लिहाज से भी बेहद महत्वपूर्ण है। बीआरओ के चीफ इंजीनियर एसएस राठौर अपनी टीम के साथ मौके पर मुस्तैदी से मौजूद हैं। राठौर और उनकी टीम ब्रिज के लिए नई साइट को चिह्नित कर रही है। मालूम हो कि वर्तमान में रैणी में वर्ष 1990 में 90 मीटर स्पान का पुल बना हुआ था। बाढ़ के प्रवाह में पूरा पुल बह चुका है। बाढ़ के पानी ने यहां जमीन का काफी कटान किया है। कभी नदी का स्पान 90 मीटर हुआ करता था, आज वो 200 मीटर है। बीआरओ अधिकारियों के अनुसार फौरी तौर पर संपर्क मार्ग को वैली ब्रिज के जरिए ही तैयार किया जा सकता है। लेकिन इसमें एक तकनीकी समस्या यह है कि वैली ब्रिज अधिकतम 180 फीट तक ही बनाया जा सकता है।
हे भूकण्या देवता हमारी रक्षा करना
रैणी। ऐतिहासिक चिपको आंदोलन की धरती गौरा देवी का गांव रैणी, इस समय आपदा का केंद्र बिंदु बना हुआ है। रैणी से 20 किमी के दायरे में आपदा का ख़ौफ़ पसरा हुआ है। स्थानीय निवासी लोक देवता भूकण्या से सलामती की दुआ मांग रहे हैं। रैणी की सरहद पर धौलीगंगा और ऋषिगंगा का संगम होता है। आपदा के तीसरे दिन भी ऋषिगंगा में पानी की जगह मलबा ही बह रहा है। रैणी के युवा विराज के मुताबिक रैणी के लोग इस कदर खौफजदा हैं कि बीते तीन दिन से अपनी सामान्य दिनचर्या भी पूरी नहीं कर पा रहे है। स्थानीय निवासी 67 वर्षीय रुक्मिणी देवी के मुताबिक आपदा तो कई बार आई, 2013 में भी नदी में भरपूर पानी था लेकिन भूकण्या देवता की कृपा से क्षेत्र पूरी तरह सुरक्षित रहा, लेकिन इस बार बिना मौसम ही जैसे मौत ने झपट्टा मार दिया। मलारी घाटी के निवासी बलबीर सिंह राणा के मुताबिक क्षेत्र के पांच लोग और दो लोग रैणी के भी लापता हैं।
टनल में फंसी गाड़ियों से उम्मीद
इधर रैणी से दस किमी नीचे तपोवन सुरंग तक पूरी नदी में आपदा के जख्म साफ दिखाई दे रहे हैं। एचसीसी कम्पनी के कर्मचारी जयबीर फर्सवाण के मुताबिक सुरंग में अभी दो डम्पर और एक जेसीबी फंसी है। उम्मीद है अंदर फंसे लोग वाहनों में शरण लिए हों, ऐसे में उन्हें चमत्कार की पूरी उम्मीद है।
इमरजेंसी अस्पताल तैयार
आपदा में प्रभावितों को ध्यान में रखते हुए सेना ने इमरजेंसी अस्पताल भी शुरू कर दिया है। छह बेड का अस्पताल तैयार किया गया है। इसमें वेंटीलेटर, ऑक्सीजन, हॉर्ट पंप, ईसीजी समेत तमाम दूसरे उपकरण उपलब्ध है। सैन्य ऑपरेशन की कमान मेजर जनरल यूपी सब एरिया राजीव छिब्बर संभाले हुए हैं।