पहले सीबीआई केस, अब विजिलेंस का छापा; बीजेपी से अलग होते ही कैसे बढ़ीं हरक सिंह की मुश्किलें
बीते दो दशकों में उत्तराखंड की राजनीति में सुर्खियों में रहने वाले कद्दावर नेता हरक सिंह की मुश्किलें, भाजपा से अलगाव के बाद बढ़ती ही जा रही हैं। अब विजिलेंस की छापेमारी से मुसीबत आन पड़ी।

बीते दो दशकों में उत्तराखंड की राजनीति में सुर्खियों में रहने वाले कद्दावर नेता हरक सिंह की मुश्किलें, भाजपा से अलगाव के बाद बढ़ती ही जा रही हैं। इस क्रम में उन पर पहली सियासी चोट तब पड़ी जब हरक खुद विधानसभा चुनाव नहीं लड़े। उन्होंने अपनी जगह अपनी पुत्रवधु को चुनावी मैदान में उतारा, जिन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद सीबीआई कोर्ट में स्टिंग मामले के रूप में उन्हें दूसरी चुनौती का सामना करना पड़ा और अब विजिलेंस की छापेमारी की मुसीबत आन पड़ी।
उत्तराखंड गठन के बाद से राज्य की राजनीति में हरक का सितारा हमेशा बुलंद रहा। इस दौरान वो अलग-अलग सीटों से ना सिर्फ लगातार विधायक बने,बल्कि कैबिनेट मंत्री व नेता प्रतिपक्ष जैसे अहम पद भी संभाले। अपनी इस सियासी यात्रा में हरक सिंह, कांग्रेस से भाजपा और फिर वापस कांग्रेस का रुख कर चुके हैं। हरक की इस रफ्तार पर, गत विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जनवरी 2022 में भाजपा से अलगाव के साथ ब्रेक लग गया। भाजपा ने उन्हें पार्टी से क्या निकाला कि, हरक की कांग्रेस में वापसी भी कठिन होती गई। नतीजतन हरक राज्य बनने के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव से प्रत्यक्ष तौर पर बाहर हो गए।
अब आलम यह है कि वो बीते डेढ़ साल से कांग्रेस में भी तकरीबन अकेले ही अपनी राह तलाश रहे हैं। लोकसभा चुनाव से कुछ समय पहले हरक पर विजिलेंस का भी शिकंजा कसने से उन पर सियासी संकट गहराता जा रहा है।
दरअसल, हरक हरिद्वार लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। इस बाबत वे सार्वजनिक मंचों से ऐलान भी कर चुके हैं, हालांकि टिकट पर अंतिम फैसला कांग्रेस हाईकमान को लेना है। लेकिन अब जिस तरह से हरक विजिलेंस जांच के दायरे में आए हैं, उससे उनके राजनीतिक भविष्य को लेकर सवाल उठने लगे हैं।
पूर्व मंत्री पर सीबीआई का भी चल रहा मुकदमा
पूर्व मंत्री डॉ.हरक सिंह रावत पर इस समय देहरादून की सीबीआई कोर्ट में वर्ष 2016 के चर्चित स्टिंग केस का भी मामला चल रहा है। हरक सिंह इस प्रकरण में खुद शिकायतकर्ता थे, लेकिन कानूनी प्रक्रिया के दौरान वो स्वयं भी इसके लपेटे में आ चुके हैं। अब उनसे जुड़े संस्थानों पर विजिलेंस की छापेमारी से हरक सिंह की मुश्किलों का नया अध्याय शुरू हो गया है। देखना यह है कि अपने राजनैतिक कौशल से वो इस संकट से कैसे उबर पाते हैं।
