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देहरादून के जांबाजों ने 54 साल पहले भी पाकिस्तान को चटाई थी धूल

पुलवामा आतंकी हमले के बाद जिस तरह से भारतीय वायुसेना के जांबाजों ने वीरता व साहस का परिचय दिखाते हुए पाक अधिकृत कश्मीर में आतंकी ठिकानों पर जवाबी कार्रवाई की वह देश को गौरवंतित करने वाली है। वहीं अगर...

देहरादून के जांबाजों ने 54 साल पहले भी पाकिस्तान को चटाई थी धूल
लाइव हिन्दुस्तान, देहरादून। संजय बिंजोला Fri, 01 Mar 2019 11:23 AM
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पुलवामा आतंकी हमले के बाद जिस तरह से भारतीय वायुसेना के जांबाजों ने वीरता व साहस का परिचय दिखाते हुए पाक अधिकृत कश्मीर में आतंकी ठिकानों पर जवाबी कार्रवाई की वह देश को गौरवंतित करने वाली है। वहीं अगर देहरादून की बात करे तो वीर चक्र से सम्मानित दून निवासी विंग कंमाडर सुरपति भट्टाचार्य, फ्लाईट लेफि्टनेंट विनोद कुमार नेब और विंग कमांडर सुबोध चंद ममगांई भी एयरफोर्स में रहकर 54 साल पहले 1965 की लड़ाई में पाकिस्तान को सबक सिखा चुके है। दून रेलवे स्टेशन में लगा तीनों वीरों का शिलापट आज भी उनकी बहादुरी के किस्से की याद दिलाता है। दून का सेना से बहुत पुराना नाता रहा है। इसी कारण दून को सेना का गढ़ माना जाता है। एयरफोर्स के जांबाजों का जब भी नाम लिया जाता है तो 1965 में दुश्मन देश के छक्के छुड़ाने वाले दून निवासी वीर सैनिकों का जिक्र जरुर होता है।  विंग कमांडर सुरपति भट्टाचार्य पश्चिमी सेक्टर में एक ऑपरेशनल फाइटर स्क्वाड्रन के फ्लाइट कमांडर थे।  सन 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध में उन्होंने 12 सितंबर 1965 को स्क्वाड्रन की कमान संभाली।

इस दौरान दुश्मन के टैंक, बख्तरबंद वाहनों और सेना की एकाग्रता को नष्ट करने में सफल रहा। इसके चलते 12 सितंबर 1965 को वीर चक्र देकर सम्मानित किया गया।  विंग कमांडर सुबोध चंद्र ममंगाई को भी 10 फरवरी 1962 में वायुसेना में कमीशन किया गया। सन  1965 में सितंबर माह में पाकिस्तान ने कलिकुंडा हवाई क्षेत्र में छह कृपाण जेट विमान से हमला किया तो फ्लाइंग ऑफिसर सुबोध ममगांई ने डटकर सामना किया। वहीं पूरे युद्ध में अद्भुत वीरता, साहस व पराक्रम दिखाने के चलते 7 सितंबर 1965 को वीर चक्र से सम्मानित किया गया। इसके साथ ही 4 दिसंबर 1971 के युद्ध में को ढाका परिसर में कुर्मितोला एयरफील्ड पर हवाई हमला में दुश्मन के वायुयान का सामना कर मार गिराने और पूरे ऑपरेशन में अदम्य साहस, शौर्य, व कुशलता परिचय देने के लिए 1972 में उन्हे वीर चक्र से सम्मानित किया गया। तीनों जांबाजों के बहादुरी की मिशाल आज भी गर्व से पूरे देश में दी जाती है। वहीं दून रेलवे स्टेशन में तीनों जाबांजों के नाम का शिलापट जांबाजों के पराक्रम को दर्शाता है।

 
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