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उत्तराखंड में 2020 में 22 हाथियों की हो चुकी है मौत, ट्रेन व करंट से मरने वालों की संख्या अधिक

प्रदेश में इस साल अब तक 22 हाथियों की मौत हो चुकी है। हाथियों की मौत से पर्यावरण प्रेमी चिंतित हैं। वे लगातार बढ़ रहे हादसों पर अंकुश लगाने की मांग कर रहे हैं। साथ ही हाथियों की सुरक्षा को लेकर...

उत्तराखंड में 2020 में 22 हाथियों की हो चुकी है मौत, ट्रेन व करंट से मरने वालों की संख्या अधिक
हिन्दुस्तान टीम, देहरादून Fri, 27 Nov 2020 04:59 PM
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प्रदेश में इस साल अब तक 22 हाथियों की मौत हो चुकी है। हाथियों की मौत से पर्यावरण प्रेमी चिंतित हैं। वे लगातार बढ़ रहे हादसों पर अंकुश लगाने की मांग कर रहे हैं। साथ ही हाथियों की सुरक्षा को लेकर विशेष योजना बनाने की भी मांग उठ रही है। 

इस साल अब तक विभिन्न वन प्रभागों में 22 हाथियों की मौत हो चुकी है। जिसमें सबसे ज्यादा हरिद्वार डिवीजन में हैं। इसमें ट्रेन से कटकर या करंट से मरने वालों की संख्या सबसे ज्यादा है।  

वहीं पिछले पांच सालों में देखें तो ये संख्या करीब 175 के आसपास बैठती है। यानी करीब 35 हाथी हर साल ऐसे ही मारे जाते हैं। पिछले कुछ दिनों में हरिद्वार और आसपास तीन हाथी करंट और रेल हादसे में मारे गए।

लेकिन इसके बाद भी विभाग की ओर से कोई ठोस कदम इन हादसों को रोकने के लिए नहीं किए जा रहे। इसे लेकर तमाम संस्थाएं और पर्यावरण प्रेमी चिंतित हैं।

उनका कहना है कि हाथियों की मौतें रोकने के बजाए सरकार ने उनके लिए आरक्षित एलिफेंट रिजर्व ही खत्म करने का जो फैसला लिया है वो गलत है। इसका पूरी तरह विरोध किया जाएगा। मैड ने तो एलिफेंट रिजर्व खत्म करने के खिलाफ केंद्र में शिकायत और कानूनी लड़ाई लड़ने की बात कही है।

हाथियों की मौतों को लेकर सरकार गंभीर है। कुछ मामलों की जांच भी बैठायी गई है। इसके अलावा कुछ मामलों में हादसों के कारणों को रोकने के उपाय किए जा रहे हैं। ट्रांसफार्मर और बिजली लाइनों की ऊंचाई बढ़ाने के निर्देश दिए गए हैं।  इसके अलावा रेलवे ट्रैकों के किराने हाथियों को रोकने के कई उपाय हो रहे हैं।
डा. हरक सिंह, वन मंत्री

हाथियों की मौतें लगातार बढ़ रही हैं। ऐसे में एलिफेंट रिजर्व खत्म करना गलत है। हाथियों की मौतों को रोकने के लिए विभाग को ठोस कदम उठाने होंगे। सिर्फ बड़ी बड़ी परियोजनाओं के लिए वन और वन्यजीवों की बलि देने का हम विरोध करते हैं। जौलीग्रांट एयरपोर्ट का विस्तार भी पर्यावरण को  नुकसान  पहुंचाकर हो रहा है। जो गलत है।
हिमांशु अरोड़ा, सचिव सिटीजन फार ग्रीन दून

 

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