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सूखे से निपटने वाले बीज विकसित करें: राज्यपाल

वातावरण परिवर्तन एवं भूमंडलीय ऊष्मीकरण को देखते हुए वैज्ञानिकों को विभिन्न फसलों के सूखा अवरोधी बीजों का विकास करना चाहिए, ताकि किसान को कम बारिश या अधिक तापमान हो जाने पर भी उचित पैदावार हासिल हो...

वातावरण परिवर्तन एवं भूमंडलीय ऊष्मीकरण को देखते हुए वैज्ञानिकों को विभिन्न फसलों के सूखा अवरोधी बीजों का विकास करना चाहिए, ताकि किसान को कम बारिश या अधिक तापमान हो जाने पर भी उचित पैदावार हासिल हो...
1/ 3वातावरण परिवर्तन एवं भूमंडलीय ऊष्मीकरण को देखते हुए वैज्ञानिकों को विभिन्न फसलों के सूखा अवरोधी बीजों का विकास करना चाहिए, ताकि किसान को कम बारिश या अधिक तापमान हो जाने पर भी उचित पैदावार हासिल हो...
वातावरण परिवर्तन एवं भूमंडलीय ऊष्मीकरण को देखते हुए वैज्ञानिकों को विभिन्न फसलों के सूखा अवरोधी बीजों का विकास करना चाहिए, ताकि किसान को कम बारिश या अधिक तापमान हो जाने पर भी उचित पैदावार हासिल हो...
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वातावरण परिवर्तन एवं भूमंडलीय ऊष्मीकरण को देखते हुए वैज्ञानिकों को विभिन्न फसलों के सूखा अवरोधी बीजों का विकास करना चाहिए, ताकि किसान को कम बारिश या अधिक तापमान हो जाने पर भी उचित पैदावार हासिल हो...
3/ 3वातावरण परिवर्तन एवं भूमंडलीय ऊष्मीकरण को देखते हुए वैज्ञानिकों को विभिन्न फसलों के सूखा अवरोधी बीजों का विकास करना चाहिए, ताकि किसान को कम बारिश या अधिक तापमान हो जाने पर भी उचित पैदावार हासिल हो...
हिन्दुस्तान टीम,रुद्रपुरSat, 24 Feb 2018 07:05 PM
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वातावरण परिवर्तन एवं भूमंडलीय ऊष्मीकरण को देखते हुए वैज्ञानिकों को विभिन्न फसलों के सूखा अवरोधी बीजों का विकास करना चाहिए, ताकि किसान को कम बारिश या अधिक तापमान हो जाने पर भी उचित पैदावार हासिल हो सके। यह बात विश्वविद्यालय के कुलाधिपति राज्यपाल डॉ.कृष्ण कांत पॉल ने शनिवार को पंतनगर विश्वविद्यालय के 103वें किसान मेले के शुभारंभ समारोह को संबोधित करते हुए कही। इससे पहले राज्यपाल डॉ.पॉल ने पंतनगर विश्वविद्यालय परिसर स्थित गांधी मैदान में लगे किसान मेले का रिबन काटकर उद्घाटन किया। इस दौरान उन्होंने विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एके मिश्रा के साथ मेले में लगे स्टॉलों को भी देखा। राज्यपाल डॉ.पॉल ने कहा कि वातावरण का बदलाव दीर्घकालीन है, जिसे देखते हुए हमें भी बदलना होगा, ताकि उत्पादन कम न हो और किसानों को नुकसान न हो। राज्यपाल ने पानी की कमी को देखते हुए उसके कम से कम प्रयोग से अधिक से अधिक पैदावार हासिल करने की तकनीकों का विकास करने और उन्हें किसानों तक पहुंचाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों का आह्वान किया कि फसल के अवशेषों को खेतों में जलाये जाने से होने वाले प्रदूषण के प्रति किसानों को जागरूक करें। क्योंकि इससे आखिरकार खेती को भी नुकसान होता है। डॉ. पॉल ने कहा कि किसानों की आय दोगुना करने के लिए उत्पादन दोगुना करने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि यह सोचना है कि खेती से जुड़े अन्य अवयवों से किसानों की आय में वृद्धि कैसे की जाए। कुलपति प्रो. एके मिश्रा ने कहा कि कृषि लागत में कमी और कृषि उत्पादकता में वृद्धि से किसानों की आय दोगुना करने के लिए मेले में विभिन्न स्टॉलों से जानकारी दी जा रही है। प्रो. मिश्रा ने किसानों को फलों, दूध सब्जियों इत्यादि के मूल्यवर्धित उत्पाद बनाये जाने की भी सलाह दी। ताकि उनकी आय में वृद्धि हो सके। कुलपति ने समन्वित खेती के साथ ही कृषि आधारित व्यवसायों-मशरूम उत्पादन, मुर्गी पालन, पशुपालन, मछली पालन इत्यादि को अपनाने पर भी जोर दिया। किसान मेले में उत्तराखंड के विभिन्न जनपदों के साथ-साथ अन्य प्रदेशों और नेपाल के किसान भी बड़ी संख्या पहुंचते हैं। इस मौके पर पंतनगर विवि के निदेशक प्रसार शिक्षा डॉ. डबास, निदेशक शोध डॉ. एसएन तिवारी, क्षेत्रीय विधायक राजेश शुक्ला, विवि प्रबंध परिषद के सदस्य राजेन्द्र पाल सिंह समेत बड़ी संख्या में गणमान्य लोग और कृषि वैज्ञानिक मौजूद रहे।

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