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पुलिस सेवा नियामावली मामले में सरकार को जबाव दाखिल करने के निर्देश

उत्तराखण्ड पुलिस कर्मियों ने विभाग द्वारा हाल ही में जारी पुलिस सेवा नियामावली 2018 (संसोधन सेवा नियमावली 2019) को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। खण्डपीठ ने मामले को सुनने के बाद सरकार को जबाव दाखिल...

 पुलिस सेवा नियामावली मामले में सरकार को जबाव दाखिल करने के निर्देश
हिन्दुस्तान टीम,नैनीतालTue, 13 Oct 2020 09:22 PM
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उत्तराखण्ड पुलिस कर्मियों ने विभाग द्वारा हाल ही में जारी पुलिस सेवा नियामावली 2018 (संसोधन सेवा नियमावली 2019) को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। खण्डपीठ ने मामले को सुनने के बाद सरकार को जबाव दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। सुनवाई हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश न्यायमूर्ति रवि कुमार मलिमथ व न्यायमूर्ति रविन्द्र मैठाणी की खंडपीठ में हुई। पुलिसकर्मी सत्येंद्र कुमार व अन्य द्वारा दायर हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है। कहा गया है कि विभाग की सेवा नियमावली के अनुसार पुलिस कॉन्स्टेबल आर्म्स फोर्स को पदोन्नति के अधिक मौके दिए हैं। जबकि सिविल व इंटलीजेंस को पदोन्नति के लिये कई चरणों से गुजरना होगा। याचिकाकर्ता पुलिसकर्मियों का कहना है कि उच्च अधिकारियों द्वारा उप निरीक्षक से निरीक्षक व अन्य उच्च पदों पर अधिकारियों की पदोन्नति निश्चित समय पर केवल डीपीसी द्वारा वरिष्ठता/ज्येष्ठता के आधार पर होती है।

परन्तु पुलिस विभाग की रीढ़ कहे जाने वाले, पुलिस के सिपाहियों को पदोन्नति हेतु उपरोक्त मापदण्ड न अपनाते हुये, कई अलग-अलग प्रकियाओं से गुजरना पडता है। विभागीय परीक्षा देनी पड़ती है। पास होने के बाद 5 किमी की दौड़ करनी पड़ती है। इन प्रक्रिया को पास करने के उपरान्त कर्मियो के सेवा अभिलेखों के परीक्षण के बाद पदोन्नति होती है। इस प्रकार उच्च अधिकारियों द्वारा निचले स्तर के कर्मचारियों के साथ दोहरे मानक अपनाए जाते है । जिस कारण 25 से 30 वर्ष की संतोषजनक सेवा (सर्विस) करने के बाद भी सिपाहियो की पदोन्नति नही हो पाती है। अधिकांश पुलिसकर्मी सिपाही के पद पर भर्ती होते है और सिपाही के पद से ही बिना पदोन्नति के सेवानिवित्त हो जाते है। क्योकि निचले स्तर के कर्मचारियों की पदोन्नति हेतु कोई निश्चित समय अवधि निर्धारित नही की गई है, और न ही उच्च अधिकारियों द्वारा इस ओर कभी कोई ध्यान दिया गया है। यह नियमावली में समानता के अवसर का भी उल्लंघन है ।

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