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आजीवन कारावास को तीन साल की सजा में बदला

हाईकोर्ट ने 30 रुपये वापस करने को लेकर हुए विवाद के बाद हुई मौत के मामले में शुक्रवार को सुनवाई की। निचली अदालत के आजीवन कारावास के फैसले के खिलाफ दायर इस याचिका में अदालत पहले पिता को रिहा कर चुकी...

आजीवन कारावास को तीन साल की सजा में बदला
हिन्दुस्तान टीम,नैनीतालFri, 08 Dec 2017 08:19 PM
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हाईकोर्ट ने 30 रुपये वापस करने को लेकर हुए विवाद के बाद हुई मौत के मामले में शुक्रवार को सुनवाई की। निचली अदालत के आजीवन कारावास के फैसले के खिलाफ दायर इस याचिका में अदालत पहले पिता को रिहा कर चुकी है, वहीं आज बेटे की सजा में कटौती कर दी है। अदालत ने बेटे को आजीवन कारावास के बजाय तीन साल की सजा मुकर्रर की है। न्यायमूर्ति राजीव शर्मा व न्यायमूर्ति आलोक सिंह की संयुक्त खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की। आरोपी को सितारगंज जेल से पुलिस हाईकोर्ट लाई थी ।

हल्द्वानी के वनभूलपुरा निवासी फिरोज खान ने पुलिस में 3 फरवरी 2016 को प्राथमिकी दर्ज कराई थी। इसमें कहा था कि क्षेत्र के निवासी पुत्तन की पुत्री 50 रुपये का नोट लेकर उसके पिता की दुकान में सामान लेने आई थी। उसने 20 रुपये का सामान खरीदा। उसके पिता ने लड़की को 30 रुपये वापस कर दिए, लेकिन घर में उसने पैसे नहीं दिए और कहा कि दुकानदार ने वापस नहीं किए हैं। इस पर पुत्तन और उसका लड़का आदिल दुकान पर पहुंचे। दोनों ने पिता शमीम व मौके पर मौजूद उसकी माता पर लाठी-डंडों से वार किया। इसमें पिता शमीम की मौके पर ही मौत हो गई। निचली अदालत ने 29 अप्रैल 2017 को दोनों अभियुक्तों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। दोनों ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओ के अधिक्वता दीप चंद जोशी ने कोर्ट को बताया कि डॉक्टर की रिपोर्ट और फॉरेंसिक रिपोर्ट में भिन्नता है। अदालत ने भी पाया कि शमीम की मौत हार्ट अटैक आने के कारण हुई है। कोर्ट ने पुत्तन को इसी का लाभ देते हुए पूर्व में बरी कर दिया था, लेकिन बेटे को धारा 302 के तहत मिली आजीवन कारावास की सजा को बदल दिया है। अदालत ने उसके अपराध को 304 बी की श्रेणी में रखा और उसे तीन साल की सजा सुनाई है।

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