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वेद, दर्शन व उपनिशद ही संस्कृति का आधार-डॉ सत्यपाल

धार-डॉ सत्यपाल हरिद्वार। मुख्य संवाददाता विश्वविद्यालय के कुलाधिपति व पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि संस्कृत केवल भाषा नहीं है...

वेद, दर्शन व उपनिशद ही संस्कृति का आधार-डॉ सत्यपाल
हिन्दुस्तान टीम,हरिद्वारFri, 24 Sep 2021 05:20 PM
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विश्वविद्यालय के कुलाधिपति व पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि संस्कृत केवल भाषा नहीं है अपितु इसका विशद् साहित्य ही सत्य सनातन वैदिक संस्कृति का आधार है जिसमें मनुष्य बनाने की विद्या निहित है। यह बात गुरुकुल कांगडी विश्वविद्यालय की संस्कृत विभाग द्वारा आयोजित शुक्रवार को संस्कृत महोत्सव के उद्घाटन के अवसर पर कहे। डा. सत्यपाल सिंह ने कहा कि स्वामी श्रद्धानंद ने गुरुकुल कांगडी की स्थापना प्राचीन वेद-वेदांग की विद्याओं के साथ-साथ आधुनिक विद्याओं को एक साथ पढाने हेतु की थी। संस्कृत भाषा में विद्यमान वेद, दर्शन, उपनिषद् आदि ही संस्कृति का आधार है।

उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. रूपकिशोर शास्त्री ने कहा कि संस्कृत विभाग द्वारा आयोजित यह सप्ताह भर चलने वाला संस्कृत महोत्सव विभिन्न विषयों पर नई-नई जानकारियां प्रदान करने वाला होगा। संस्कृत साहित्य में स्वास्थ्य संरक्षण के उपाय विषय पर शोधगोष्ठी में मानव जीवनोपयोगी विचारों को सुनने का अवसर मिलेगा। सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी के कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी ने कहा कि भारत सरकार ने नई शिक्षानीति में संस्कृत साहित्य की कई विधाओं की व्यावहारिक रूप में पढ़ाने की संकल्पना दी है, इसलिए आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के साथ संस्कृत व दर्शन को पढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया है।

पतंजलि विवि के प्रतिकुलपति प्रो. महावीर अग्रवाल ने कहा कि संस्कृत की रक्षा ही मानवता की रक्षा का आधार बन सकती है। भारत ही नहीं विश्वस्तर के गांव गांव व नगर नगर जब संस्कृत पहुंचेगी तभी विश्व की एकता संभव होगी। विश्वविद्यालय के वित्ताधिकारी राजीव तलवार ने कहा कि प्रशासनिक सेवाओं की प्रतियोगी परिक्षाओं में संस्कृत बहुत सहायक रहती है। कार्यक्रम में प्राच्यविद्या संकाय के अध्यक्ष प्रो. ब्रह्मदेव विद्यालंकार व विभागाध्यक्ष प्रो. सोमदेव शतांशु ने अतिथियों का स्वागत किया। इस दौरान विश्वविद्यालय के प्रो. एसके श्रीवास्तव, प्रो. रामप्रकाश वर्णी, प्रो. बीके सिंह, प्रो. सोहनपाल आर्य, प्रो. मदान, प्रो एलपी पुरोहित, प्रो. धर्मेन्द्र कुमार, प्रो. नमिता जोशी, प्रो. संगीता विद्यालंकार, प्रो. राकेश जैन, डा. मौहर सिंह, डा. दीनदयाल वेदालंकार आदि शामिल रहे।

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